श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज के मंगल प्रवचन 03-04-2018 दिन- मंगलवार
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रहे सदा सत्संग उन्ही का ध्यान उन्ही का नित्य रहे ..........💐
श्री दिगम्बर जैन मन्दिर,
विज्ञान नगर, कोटा, (राजस्थान) में श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज ने आज मेरी भावना के ऊपर प्रवचन देते हुए कहा कि जैन धर्म में देव शास्त्र गुरु ही हमारे आराध्य है। देव में अर्हंत, सिद्ध आ जाते है। शास्त्र में द्वादशांग जिनवाणी आ जाती है और गुरु में आचार्य ,उपाध्याय ,साधु आ जाते है ।मेरी भावना के माध्यम से हमने सच्चे देव के बारे में जाना की जो वीतरागी, सर्वज्ञ और हितोपदेशी है वो सच्चे देव कहलाते है। और गुरु की परिभाषा जानते हुए हमने जाना की जो विषयो की आशा नहीं रखते ह् ,समता रूपी धन को अपने पास रखते है, स्व पर कल्याण के लिए रात दिन त्तपर रहते है, और स्वार्थ त्याग की सबसे कठिन तपस्या को बिना खेद करते है वही सच्चे ज्ञानी साधु है और वही जगत के दुःखो को हरण करते है। कवि यहाँ भावना भा रहा है कि ऐसे साधु ही हमें नित्य -प्रतिदिन उनका सांन्निध्य प्राप्त होता रहे। आगे पंक्ति कवि कहता है -'रहे सदा सत्संग उन्ही का ध्यान उन्ही का नित्य रहे ,उन्ही जैसी चर्या में यह चित्त सदा अनिरक्त रहे।।' यहाँ कवि कहना चाहता है कि साधु की संगति हमेशा मुझे मिलती रहे।
🌿मुनिश्री ने बताया अर्थ शास्त्र में चाणक्य ने कहा है-"सत्संगः स्वर्गवासः" अर्थात सत्संग में बैठना और स्वर्ग में निवास करना दोनों बराबर है। सत्संगति करने का जीवन में बड़ा प्रभाव है। सब संगति का असर है। हमारी जैसी संगति होती है वैसी हमारी परिणति हो जाती है जैसे पानी की बूंद यदि गन्ने में जाती है तो मिठास रूप ले लेती है, नीम में जाती है तो कड़वाहट ले लेती है, आंवले में जाती है तो कशायली हो जाती है अगर वह पानी की बूंद अमृत में जाये तो अमृत और जहर में जाये तो जहर का रूप ले लेती है ।और वही पानी की बूंद यदि स्वाति नक्षत्र में किसी शीप में चली जाए तो मोती का रूप ले लती है। वैसे ही हमारी संगति का प्रभाव हमारे ऊपर पड़ता है।
🌿मुनिश्री ने बताया हमे जीवन में न जाने कितने साधुओं की संगति मिली लेकिन उस संगति को जीवन में नहीं उतार पाये यदि जीवन में उतार लेते तो हम भी साधु संत बन जाते।
🌿मुनिश्री ने बताया श्रावक तीन प्रकार के होते है -एक पत्थर के समान ,एक कपड़े के समान और एक बर्फ के समान ।पत्थर पानी की संगति करता है ,कपड़ा पानी की संगति करता और बर्फ पानी की संगति करता है। पत्थर सालों साल पानी में पड़ा रहता है लेकिन जब निकालो वह अंदर से सूखा का सूखा ही निकलता है ।वैसे ही श्रावक होते है कितना ही प्रवचन सुन ले लेकिन जैसे है वैसे ही रहेंगे। जीवन निकल गया जिनवाणी की पूजा करते -करते ,जिनवाणी के पेज फ्ट गये लेकिन जीवन में कोई बदलाव नहीं आया वो पत्थर के समान श्रावक होते है। दूसरे श्रावक कपड़े के समान होते है ।कपड़ा भी पानी में जाता है बाहर निकाल के उसको सोखने के लिए टांग देते  है कुछ देर बाद वह सुख जाता है वैसे ही श्रावक होते है जब प्रवचन सुनते है तो अंतरंग से वैराग्य उमड़ता है और लगता है संसार अशार है ,दीक्षा लेने के भाव उमड़ते ह् लेकिन जैसे ही वह कपड़े की भांति सुख जाते ह् और संसार में ही फस जाते है। तीसरे श्रावक उच्च कोटि के श्रावक होते है जो बर्फ के समान होते है। जब बर्फ पानी के समीप जाता है और पानी में मिल जाता है उसी के समान हो जाता है उसी प्रकार श्रावक ऐसे श्रावक होते है जो सत्संगति में आते है, साधु के उपदेश को सुनते ह् और साधु बन जाते है हमे भी ऐसी ही संगति करना चाहिए।
🌿मुनिश्री ने एक द्रष्टान्त देते हुए बताया कि एक लकड़हारा जंगल में जा रहा था बिलकुल गरीब था एक मुनिराज को देखा और मुनिराज को देखकर के कहता है कि- ये  साधु तो मुझसे भी ज्यादा गरीब है ।मेरे पास तँ ढकने के लिए कपड़ा तो है इनके पास तो बो भी नहीं ।ये कैसे अपना भोजन करते होंगे? वह उनके पास बैठ जाता है ।मुनिराज आहार चर्या को जाते है। गाँव में सेकड़ो चोक लगे हुए है ।सभी लोग बुला रहे ह् हे स्वामी! नमोस्तु नमोस्तु ।यह देखकर वह अचंभित हो जाता है ।श्रावको ने बड़े भक्ति भाव से नवधा भक्ति पूर्वक मुनिराज का पड़गाहन किया, आहार करवाया और फिर उस व्यक्ति को भी अच्छे वस्त्र देकर भोजन करा दिया ।उसने सोचा मैं भी उन साथ ही रहूंगा। पहुँच गया जंगल में अगले दिन मुनिराज से कहता है कि भोजन करने तो नहीं चलना? तो मुनिराज कहते है- मैं तो महीने में एक दिन जाता हूँ ।अब वह सोचता है मैं क्या करूँ? वह मुनिराज का पिच्छि कमण्डल लेकर भोजन की इच्छा लेकर गाँव जाता है लेकिन उस समय उसको आहार नहीं मिलता है। दूसरे दिन जाता है, तीसरे दिन जाता है तीसरे दिन भी भोजन नहीं करता है और बापिस आ जाता है। तब मुनिराज कहते है- हे वत्स !तेरी आयु अब मात्र 24 घण्टे की है ।तू सच में अपना कल्याण कर ले और इस नकली भेष को छोड़कर असली रूप में दिगम्बर मुद्रा को धारण करके मुनि बन जा ।वह मुनि के उपदेश को ग्रहण कर लेता है और चारो प्रकार के आहार का त्याग करके यम सल्लेखना पूर्वक मुनि दीक्षा लेकर साधना में त्तपर हो जाता है। समाधि मरण करके देव पर्याय प्राप्त करता है और कालांतर में वही जीव चंद्रगुप्त सम्राट बन कर भारत की भूमि में जन्म लेता है ।कहने का मतलब तीन दिन की सत्संगति की तो वह सम्राट पड़ को प्राप्त हुआ ।हम भी जीवन में ऐसी संगति करे।
🌿मुनिश्री ने बताया कवि यहाँ बार- बार यही भावना भा रहा है -रहे सदा सत्संग उन्ही का और ध्यान उन्ही का नित्य रहे । मुनिराजों का ध्यान मन में हमेशा बना रहे ,भगवान का ध्यान हमेशा बना रहे ।आप अपने मोबाइल पर भगवान या गुरु की फोटो लगाते है ।जब- जब आप मो. उठाते है आपको भगवान और गुरु की याद आती है कोई बुरा नहीं है। अपने मो. में रिंगटोन लगाते है णमोकार मंत्र की जब -जब बो फ़ोन बजता है आपको अपने मंत्र का स्मरण होता है और उस समय शुभ भाव बनते है। यदि मो. में अपने गुरु का चित्र देखकर ,मो. में णमोकार मंत्र की रिंगटोन सुनते समय आपकी आयु कर्म का बन्ध हो गया तो निश्चित ही आपकी गति सुधर सकती है ।या आयु कर्म का क्षय हो गया तो मरते समय णमोकार मंत्र सुनते -सुनते जाओगे तो हो सकता है तुम्हारी गति सुधर जाये इसलिये मो. में णमोकार मंत्र सुनना कोई बुरा नहीं है बो भी एक समय की संगति है। वो भी एक समय का ध्यान है ।कि जो आप पड़ रहे ह् की ध्यान उन्ही का नित्य रहे उठते, बैठते, सोते, जागते हमेशा अपने प्रभु का गुरु का याद रहना चाहिए ।और उनकी जैसी चर्या है उसमें ही अपना चित्त लगाना चाहिए। बो महावृति है तो हम भी उन महाव्रतों को अणु रूप में धरण करे। उनकी जैसी चर्या में चित्त को लगजाये, स्थिर करे । आगे का विषय पाँच पापो का है की पाँच पापो का सर्वथा त्याग करना महाव्रत है और एक देश त्याग करना अणुव्रत है।🌿🌿