श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज के मंगल प्रवचन 29-03-2017 दिन- गुरुवार
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जिसको चाहता है वही राग है और जिसको नहीं चाहता है वही द्वेष है..........🌹✍🏻🌹
कोटा में श्रमण श्री विभंजनसागर जी ने प्रवचनसार ग्रन्थ की व्याख्या करते हुए बताया कि एक राहगीर जब मार्ग में चलता है तो अनेक द्रव्यों को देखता है पर एक द्रव्य पर भी न राग दृष्टि है न द्वेष दृष्टि है मात्र उपेक्षा भाव है ।हम कहाँ- कहाँ राग लेकर जायेगे, कहाँ- कहाँ द्वेष लेकर जायेगे तीव्र रागी भी उपेक्षा में जीता है। जिसमे राग है उसमें ही राग कर पा रहा है शेष में उपेक्षा उसकी भी चल रही है। जिससे द्वेष है उससे ही द्वेष कर रहा है शेष में उपेक्षा उसकी भी चल रही है।
मुनिश्री ने बताया रावण लंका से बाहर निकल कर युद्ध करने आया ,राम अयोध्या से जाकर लंका युद्ध करने पहुँचते है। क्या नगर के बाहर आते समय रावण को कोई भिन्न पुरुष नहीं मिले होंगे ? क्या राम को अवधपुरी से जाते समय कोई भिन्न पुरुष नहीं मिले होंगे? इस बीच में कही भी युद्ध कर सकते थे लेकिन नहीं उन सब से उपेक्षा भाव थे ,न राग था न द्वेष था ।किसी भी पुरुष पर न राम ने वाण चलाया न रावण ने ,ठीक उसी प्रकार तीव्र काषाय वाला पुरुष भी नियत पर ही कषाय कर रहा है यदि अनियत पर कषाय कर बैठता, अनियत कषाय के बैठता तो विश्वास रखना पर को घात करने वाला स्वयं ही मरण को प्राप्त हो जाता।
मुनिश्री ने बताया नियत द्रव्य पर राग होता है ,नियत द्रव्य पर द्वेष होता है प्रत्येक वस्तु पर राग द्वेष नहीं होता ।जिसको चाहता है वही राग है और जिसको नहीं चाहता है वही द्वेष है। नहीं चाहने वाली वस्तुये बहुत कम है और चाहने वाली वस्तुये बहुत कम है ,जो न चाही जाये ऐसे द्रव्य भी बहुत सीमित है ,पर जिसमे चाहने की भावना है और न चाहने की भावना है ऐसे द्रव्य सर्वाधिक है ।उनके प्रति क्या भाव है आपके? उपेक्षा भाव- न राग और न द्वेष ।जिनमे आपको राग- द्वेष नहीं है उनमें कोई प्रयोजन नहीं रखते हो ।जिन द्रव्यों को तुम जानना भी नहीं चाहते हो ,छोड़ना भी नहीं चाहते हो, स्वीकारना भी नहीं चाहते हो वे द्रव्य आपको कष्ट दे रहे है क्या? यदि कही कोई हादसा हो जाता है, कोई बिल्डिंग गिर जाती है ,कही आग लग जाती है, कोई घटना -दुर्घटना हो जाती है तो बताइए कितने लोगो की आँखों में आंसू आये ? उस बिल्डिंग में जिस -जिस व्यक्ति के सगे सम्बन्धी होंगे मात्र उनकी आँखों में ही आंसू आये ,क्योकि उनका राग था ।इस कारण से उनकी आँखों में आंसू आये।
मुनिश्री ने बताया जिसमे ममत्व रखते हो वो ही क्षेत्र, काल, भाव, द्रव्य आपके लिए बन्ध का कारण है। जिसमे ममत्व नहीं रखते हो वह द्रव्य ,क्षेत्र, काल ,भाव तुम्हारे बन्ध का कारण नहीं बनता। इसलिये बन्ध किसमें है  द्रव्य में, क्षेत्र में, काल में, भाव में की ममत्व में ? भैया ममत्व में बन्ध है, मित्र भाव में भी बन्ध नहीं है ।क्या भाव में बन्ध ही है? जिनागम में यदि भाव में बन्ध ही है तो जब तक जीव भावातीत नहीं होता तब तक भावातीत नहीं होता।
मुनिश्री ने बताया बन्ध का प्रबल कारन कोई है तो वो है राग- द्वेष ममत्व भाव ।आचार्य पूज्यपाद स्वामी ने इष्टोपदेश ग्रन्थ में 26 नं. श्लोक में बताया है - आप कही भी जाकर बैठ जाना चाहे ,विदेह क्षेत्र में चले जाना, चाहे भरत क्षेत्र में चले जाना, साक्षात् तीर्थंकर भगवान के समवशरण में जाकर बैठ जाना तब भी महत्व भाव में नियम से बन्ध को प्राप्त होगा और यदि तू अपने घर के आंगन में भी बैठ जाना ममत्व हीन है ।ममता से ,राग-द्वेष से रहित है तो नियम से मुक्त होगा इसलिये केंद्र पर आइये। द्रव्यों को निमित्त मात्र बनाइये परन्तु निमित्त में महा निमित्त ,बन्ध का कोई है तो तेरे उपादान का ममत्व भाव है। मैं वंदना क्यों कर रहा हूँ पंच परमेष्ठि की? उन्होंने द्रव्य में, क्षेत्र में, काल ने, भाव में माध्यस्थ भाव जिया है, निर्ममत्व भाव जिया है। निर्ममत्व भाव में जिया है वही वंदनीय हुआ है। इस निर्णय तक पहुँचने के लिए बहुत त्रतस्थ होकर जीना पड़ेगा ।ममत्व से बच लेगा फिर वस्तु तेरा क्या कर लेगी अर्थात न वस्तु से राग करे, न द्वेष करे और न ममत्व भाव करे। राग- द्वेष कर्म बन्ध का कारण है ममत्व परिग्रह का कारण है। राग- द्वेष पर ममत्व को छोड़कर निर्ममत्व का जीवन जीने का प्रयाश करे।