श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज के मंगल प्रवचन 22-03-2018 दिन- गुरुवार
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जब तक बस्तु को देखते रहोगे तब तक ब्रह्म पर जा नहीं सकते हो........✍🏻
आज प्रातः काल श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज छबड़ा से विहार करते हुए
श्री मुनिसुव्रतनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर , दीलोद हांथी, जिला- बारां (राजस्थान) में मंगल आगमन हुआ।
जहाँ पर मुनिश्री ने अपने प्रवचनसार ग्रंथ के स्वाध्याय के माध्यम से बताया कि जब तक बस्तु को देखते रहोगे तब तक ब्रह्म पर जा नहीं सकते। तो जब तक बस्तु को देखते रहोगे तब तक शुद्ध को समझ ही नहीं सकते हो ।साधु पुरुष बस्तु को देखना बंद कर देते है और दृष्टि को देखना प्रारम्भ कर देते है। सारे दोष, सारे गुण बस्तु में नहीं होते दृष्टि में होते है।
मुनिश्री ने बताया अतिशय क्षेत्र, तीर्थ क्षेत्र, सिद्ध क्षेत्रो के दर्शन करके मन आनन्दित, प्रफुल्लित होता है और निज दर्शन होते है। निज दर्शन करने का साधन है जिन दर्शन ।बस्तु के स्वरूप को जानने का साधन है सम्यग्दर्शन, जो निज दर्शन से प्राप्त होता है इसलिये बस्तु स्वरूप को समझे और अपनी दृष्टि बदले का प्रयाश करे। हम बाहरी पदार्थों में फंसे हुए है ,अपनी आत्मा का वाहन नहीं कर पा रहे है।
मुनिश्री ने बताया कोई बस्तु में दोष नहीं है ।बस्तु को छानने के लिए योगी नहीं बनना पड़ता ,दृष्टि को छानने के लिए योगी बनना पड़ता है। बस्त्र से छान कर पानी पवित्र हो जाता है उसके मल घट जाते है, जीवाणु हट जाते है। बस्त्र से छाना पानी पवित्र हो सकता है परन्तु बस्त्र से छान कर के आत्मा शुद्ध नहीं हो सकती है। कहा गया है- 'दृष्टि पोत साधु' अर्थात दृष्टि को जो छान रहा है उसका नाम साधु है ।इसलिए दृष्टि छानिये जैसे पानी छानते है वैसे दृष्टि छानिये। कपको कोई गलत आदमी नहीं मिलेगा, कोई अशुभ बस्तु नहीं मिलेगी ।हम को ये पसन्द नहीं आते जब तब मुझे ये खराब लगने लगते है।
मुनिश्री ने बताया किसके घर में लड़ाई झगड़ा नहीं होता ,सभी के घर लड़ाई झगडा होता ही है। झगड़े का कोई भी कारण नहीं है, पिता जी चाहते है जैसे मैं सोच रहा हूँ वैसे दादा जी सोचे लेकिन दादा जी चाहते है जैसा मैं चाहता हूँ वैसा बेटा सोचे। ठीक है न इसलिये झगड़ते है। पर इन दोनों को पता होना चाहिए की एक दूसरे की सोच एक हो नहीं सकती ,अपनी -अपनी सोच को शौच प्रधान करो, झगड़ना बंद करो। चाहे साधु पुरुष हो ,चाहे असाधु पुरुष हो जो भी तनाब में डूब रहे है बे बेचारे अपने सोच के अनुशार दूसरे को देखना चाह रहे है। वो कभी सम्भव नहीं है गाय को पानी भी पिलाओगे तो दूध देगी ,लेकिन कालिया नाग को दूध पिलाओगे तो वह जहर ही देगा। अब उसमे क्या है? उसका स्वभाव, उसका धर्म है उसी प्रकार जिसकी दृष्टि खोटी है उसके सामने अच्छा भी रखोगे तो उसे खोटा ही दिखेगा। और जिसकी दृष्टि पवित्र है वह खोटे में भी गुण देख लेगा ।
मुनिश्री ने बताया बस्तु को ठीक करने की मानसिकता बदल दो, दृष्टि को दृष्टि से देखने की मानसिकता प्रारम्भ कर दो। पर आप बस्तु को तो नहीं बदल पाओगे दृष्टि को ही बदल पाओगे। जो प्रथम गुणस्थान से लेकर अन्य गुणस्थानो की यात्रा कर रहे है वे बस्तुओं को नहीं बदल रहे है वे दृष्टि को बदल रहे है। मात्र दृष्टि की विशुद्धि कर रहे है जो आत्मा 14 वें गुणस्थान में है यही आत्मा अशरीरि सिद्ध परमात्मा बनता है। दृष्टि को शुद्ध करना प्रारम्भ कर दो ।जिनकी क्षदमस्त दृष्टि समाप्त हो गई और केवल दृष्टि प्रारम्भ हो गई तो कर्म नौ कर्म का ही अभाव हो गया ।मात्र ज्ञान शरीरी आत्मा, शुद्ध आत्मा शेष रह गया इसलिये कुछ नहीं कर सकते तो सबसे पहले अपनी दृष्टि को बदलने का प्रयाश करे। बस्तु के यथार्थ तत्व को जानने का प्रयाश करे ,बस्तु के स्वरूप को समझने का प्रयाश करे। जिस दिन बस्तु का स्वरूप समझ में आ जायेगा उस दिन आप भी ब्रह्म में आ जायेंगे।🌸🌸