श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज के मंगल प्रवचन 20-03-2017 दिन- मंगलवार
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समता नहीं है तो क्षमता कुछ नहीं कर पाएगी........🌹
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, घट्टा, जिला- बारां, राजस्थान में आज श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज ने अपने मंगल स्वाध्याय के माध्यम से बताया जीवन में समता भाव धारण करना चाहिए ।समता मतलब होता है समान भाव जैसे मुनिराज समता भाव धारण करते है ।मुनिराज का सबसे बड़ा कोई धन है तो वह समता रूपी धन कहलाता है जो उनके पास हमेशा साथ रहता है। एक पल, एक क्षण के लिए भी उनसे अलग नहीं होता वह समता रूपी धन ।यदि मुनिराज के लिए कोई अर्घ चढ़ा रहा है, पूजन कर रहा है, सम्मान दे रहा है और या कोई उनके ऊपर तलवार का बार कर रहा है ,गाली दे रहा है, अपमान कर रहा है इन दोनों स्थितियों में ही मुनिराज समता भाव धारण करते है ।यही उनका आभूषण है।
मुनिश्री ने बताया एक सामायिक व्रत होता है एक सामायिक प्रतिमा होती है और एक सामायिक चारित्र होता है। सामायिक व्रत 2 प्रतिमाधारी श्रावक का होता है ,सामायिक प्रतिमा 3 प्रतिमाधारी श्रावक का होती है जिसमे तीनो टाइम पोर्व्हादिक, अपराणिक, मध्याणिक काल में सामायिक करना अनिवार्य होता है लेकिन सामायिक चारित्र मुनियो का होता है जो किसी समय विशेष के लिए नहीं जीवन पर्यंत के लिए होता है। इसलिए मुनिराज 24 घण्टे सामायिक में ही रहते है और जो तीन टाइम करते है वो देव वंदना कहलाती है।
मुनिश्री ने बताया दिगम्बर भेष अंतरंग, बहिरंग परिग्रह का त्याग करके प्राप्त होता है ।जिस प्रकार आप पूजा में पड़ते है 'परिग्रह 24 भेद ,त्याग करे मुनिराज जी' कवि ने बिलकुल सही लिखा - 10 प्रकार का बहिरंग परिग्रह और 14 प्रकार का अंतरंग परिग्रह इन दोनो परिग्रह का त्याग मुनिराज ही करते है। जो मुनिराज के पास 24 प्रकार के परिग्रह में से कुछ भी अपने पास रखते है उनकी परिग्रही सज्ञा होती है ।भले वो ये कहे मेरा नहीं है ये तो संघ संचालक का है ।लेकिन भैया आज्ञा निर्देशन जहाँ-जहाँ होगा वहाँ नियम से परिग्रही होगा। आगम की बात को काटना मत और आपके नहीं मानने से आगम नष्ट नहीं हो सकता है। यहाँ तक की देखा जाये तो पिच्छि कमण्डल को भी में परिग्रह मानता हूँ ।यह उपकरणभूत है वैसा परिग्रह नहीं है जो संस्थान जन्य होता है ,वैसा परिग्रह नहीं है जो हीरे ,मोती जन्य होता है ;संयम में साधन है इसलिए उपकरण है पर है तो परिग्रह। यथार्थ में देखा जाये तो कुछ भी दिगम्बर साधु के पास नहीं होता एक आत्मा ही धेय है ,शरीर भी उनके लिए परिग्रह है।
मुनिश्री ने बताया श्रावक कितने चतुर होते है कितने आराम से बोल देते है 'परिग्रह 24 भेद, त्याग करे मुनिराज जी' और स्वीकार करे श्रावकराज जी। भैया! श्रावक कहता है कि जैन पैसे वाले होते है तो जैन कहते है भैया हमारे भगवान सब छोड़ गए तो वो सब हमे मिल गया और दुनिया के भगवान पहने रहते है सो भगवान को ही चाहिए होता है तो आप गरीब रहते है ।समझो 'परिग्रह 24 भेद, त्याग कर मुनिराज जी' जो अंतरंग और बहिरंग परिग्रह 24 प्रकार के है इनको त्याग करने का उद्देश्य समझिए 148 प्रकार का परिग्रह है उनसे भिन्न होने के लिए मुनिगण 24 प्रकार के परिग्रह का त्याग करते है ।ये आगम के गूढ़ प्रकार के परिग्रह को छोड़ने का अभिप्राय तेरे भीतर नहीं आया तो 24 प्रकार के परिग्रह का त्याग करने का उद्देश्य क्या है? ज्ञानावरण आदि 8 कर्मो के उत्तर भेद 148 होते है ।वे पौदगलिक है ,मेरी आत्मा में सम्बद्ध है फिर भी निज स्वरूप नहीं है। उनसे भिन्न होने के लिए ही मैं मुनि बना हूँ ।तब भी तेरे मन में भाव चले की अब मेरा यश फैलना चाहिए ।भगवान के सामने शान्ति मंत्र पड़ रहा था और बोल रहा था- ' धन ,धान्यम वृद्धि रस्तु तथास्तु और यश वृद्धि कुरु -कुरु ' भैया कर्म क्षय के लिए भगवान के पास आया जाता है और तू भगवान से प्रार्थना कर रहा है ,धन ,धान्य, यश वृद्धि ,कीर्ति, वृद्धिम ,यश भी मांगा तो तूने कर्म ही तो मांगा है। मांगा क्या है? इसलिए कर्मातीत की भावना रखने वाले बहुत कम है ।
मुनिश्री ने कहाँ स्त्य को समझने के लिए कितनी क्षमता चाहिए ,सत्य को समझने के लिए कितनी समता चाहिए। समता नहीं है तो क्षमता कुछ नहीं कर पायेगी ।इतना आप सुन रहे हो धर्य से ये आपकी क्षमता व समता दोनों है। नहीं तो व्यक्ति तुरन्त बोल पड़ता -क्या करूंगा? क्या करोगे, नरक चले जाना जोड़ -जोड़ के। जोड़ -जोड़ कर मर गए विचारे पर ले नहीं जा पाए कुछ ।आप जोड़- जोड़ कर मर ही पाओगे ले नहीं जा पाओगे ।यदि विश्वास न हो तो तीर्थंकर भगवान की वाणी को स्मरण में कर लेना। इसलिये जाना तो सबको पड़ता है जोड़ - जोड़ कर जाना ही पड़ेगा तू कितना ही जोड़ ले ,सन्तोष- फिर भी सन्तोष नहीं है ।नाम सन्तोष होने से जीवन में सन्तोष नहीं है तो क्या काम का सन्तोष नाम ।व्यक्ति नाम रख लेता है लेकिन नाम जैसे काम नहीं करता। जैसा नाम वैसे कार्य करे और समता भाव धारण करते हुए अपनी क्षमता को बढ़ाए और अपने जीवन को धन्य करे।
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