श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज के मंगल प्रवचन 02-03-2018 दिन- शुक्रवार
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न्याय मार्ग से मेरा कभी न ,पद डिगने पावे.......💐
श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, अशोक नगर (म. प्र.) में श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज ने मेरी भावना के ऊपर अपना प्रवचन देते हुए बताया 'मेरी भावना का एक -एक शब्द गहन समुद्र की तरह है ।जितने जिसमे उतरते जाओ फिर भी कोई थाह नहीं मिलती तथा नये -नये चिन्तन रूपी उस समुद्र से निकलते ही जाते है।
मुनिश्री ने बताया पं. जुगल किशोर मुक्तार जी आगे पंक्ति में कहते है -' कोई बुरा कहो या अच्छा ,लक्ष्मी आवे आ जावे; लाखो वर्षो तक जीउ या ,मृत्यु आज ही आ जावे।। अथवा कोई कैसा ही भय ,या लालच देने आवे ;तो भी न्याय मार्ग से मेरा, कभी न पद डिगने पावे।।' इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि चाहे कैसी भी स्थिति हो मैं अपने न्याय मार्ग से कभी दिग न जाऊ। अन्याय पूर्ण नहीं मेरा जीवन न्याय वन्त हो । जहाँ न्याय है वहाँ सब कुछ है। जहाँ अन्याय है वहाँ अशांति है ।व्यक्ति कभी -कभी अन्याय पूर्वक बहुत कुछ पा लेता है ।अन्याय से प्राप्त सम्मान ,प्रतिष्ठा अधिक समय तक नहीं टिकती ,अन्याय अनीति से कमाई धन संपदा अधिक से अधिक 12 वर्षो में मूल समूल समाप्त हो जाती है।
मुनिश्री ने कहा कि कवि प्रार्थना करता है न्याय की सूखी रोटी, टूटी- फूटी झोपडी अच्छी है, न्याय के फ़टे वस्त्र भी अच्छे है लेकिन अन्याय के मखमली वस्त्र भी नहीं चाहिए। कवि कहता है -' कोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी आवे आ जावे' अरे आज न्याय नीति का जमाना नहीं है। सभी प्राणी अपने लिए तो न्याय चाहते है और दूसरों के लिए अन्याय। स्वयं मुसीबत आये तो कहते हो न्याय कीजिये और दूसरों के लिए न्याय की बात नहीं।
मुनिश्री ने दृष्टांत देते हुए बताया महाराज श्रेणिक एक न्यायवन्त राजा थे। उन्होंने न्याय करते समय अपने बेटे पर भी राग नहीं किया और वारिषेण को मृत्यु दण्ड दे दिया। वो तो वारिषेण के व्रत ,नियम, संयम का प्रभाव था कि तलवार भी हार बन गई।
मुनिश्री ने बताया हमारे देश में वीर, प्रतापी हुए जिन्होंने लोभ, लालच आ जाने पर भी न्याय को नहीं छोड़ा। परन्तु कभी -कभी व्यक्ति न्याय अन्याय को भी भूल जाता है। जैसे की वो द्वारपाल जिसने झाँसी में अंग्रेजों के लिए द्वार खोल दिया ।थोड़े से लालच में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को अपने प्राण खोने पड़े। न्याय छूटा तो संकट आ जाते है ।एक व्यक्ति अन्याय करता है सारे लोगो को सजा भोगनी बढ़ती है। और कभी -कभी एक व्यक्ति न्याय करता है और उपलब्धियां सभी को मिलती है।
मुनिश्री ने दृष्टांत देते हुए बताया कि एक बार राजा श्रेणिक के पास न्याय करने के लिए 2 महिलाएं पहुँची एक बच्चे को लेकर और दोनों कहती है ये मेरा बच्चा है तब राजा श्रेणिक के पुत्र अभय कुमार ने न्याय किया और तलबार से उस बच्चे के 2 टुकड़े करना चाहा तब असली माँ कहती है इसी को दे दो मेरा बेटा नहीं है क्योंकि कभी भी माँ अपने बच्चे को मरते हुए नहीं देख सकती। इस प्रकार अभय कुमार ने सही निर्णय कर के असली माँ को उस पुत्र को दे दिया। न्याय के मार्ग पर मुसीबतें आ सकती है कष्ट भी आ सकते है परन्तु अंततः न्यायवान ही सुख को पाते है। न्याय वन्त धन दौलत की कीमत नहीं करते, न्याय का एक पैसा क्यों न हो हजारो की कीमत रखेगा।
मुनिश्री ने बताया कवि ने कहा है-' कोई बुरा कहो या अच्छा ' चाहे मुझे कोई गली दे, चाहे मेरी प्रसंशा करे, चाहे मेरी नींद करे, चाहे मेरे पास धन आये या जो है मेरे पास वो सब चला जाये, चाहे मेरा चतुर्थ काल में जन्म हो जाये या पंचमकाल में जन्म हो जाये ,भोग भूमि में जन्म हो या कर्म भूमि में जन्म हो ,लाखो वर्षो तक मैं जीऊ या आज ही मरण हो जाये, अथवा मुझे कोई भी किसी भी प्रकार का लालच देने आये तब भी मैं अपने न्याय के मार्ग से न डिगु। न्यायवन्त को कष्ट ,दुःख तकलीफ तो सहना पड़ सकती है परन्तु वह न्याय शान्ति को प्रदान कराने वाला होता है। न्याय से कमाई गई इज्जत ,सम्मान स्थाई रहता है जबकि अन्याय से यदि इज्जत सम्मान मिल भी जाये तो वह क्षणिक ही होता है।
मुनिश्री ने बताया अन्याय का सिंघासन जमीन पर ला देता है जबकि न्याय की जमीन भी सिंघासन पर बैठा देती है। राजा वशु ने अन्याय किया फलस्वरूप वे नरक में गये तथा नारद ने न्याय को अपनाया तो वह स्वर्ग गया। इसलिये जीवन में कभी अन्याय के मार्ग को नहीं चुने न्याय के मार्ग पर बढ़ते जाये ,स्थिर रहे और अपने जीवन को सफल बनायें।
होली के पर्व पर सभी को आशीर्वाद देते हुए कहा कि
*HOLI*----का मतलब है-
*H*--- hate (घृणा)
*O*--- out (बाहर)
*L*--- (love) (प्रेम)
*I*-- (in) (भीतर)
*होली* का अर्थ है नफरत और घृणा को बाहर निकालकर प्रेम करो।
नफरत की होलिका जलाओ,
प्रेम का रंग बरसाओ;
मस्ती में डूब जाओ,
हंसो और हंसाओ।
🍂मुनि श्री ने सभी को आशीर्वाद देते हुए कहा कि
होली की हर्षित बेला पर,
खुशियां मिले अपार |
यश,कीर्ति, सम्मान मिले,
और बढे सत्कार ||
शुभ-शुभ रहे हर दिन हर पल,
शुभ-शुभ रहे विचार |
उत्साह. बढे चित चेतन में,
निर्मल रहे आचार ||
सफलतायें नित नयी मिले,
बधाई बारम्बार |
मंगलमय हो कार्य आपके,
सुखी रहे परिवार ||
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