पार्ट-2

श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज के मंगल प्रवचन 04-03-2018 दिन- रविवार
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घर -घर चर्चा रहे धर्म की, दुष्कृत दुष्कर हो जावे ........🌹
श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर , अशोक नगर (म. प्र.) में श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज ने मेरी भावना के माध्यम से प्रवचन देते हुए कहा कि पवित्र भावना ही संसार में कल्याण सूत्रों को विकशित करती है ।मेरी भावना पं. जुगल किशोर मुक्तार जी द्वारा रचित जिसमें सभी की कल्याण की भावना और सभी की मन की भावना को लिखने का प्रयाश किया गया है । आगे की पंक्ति लिखते हुए बताया जा रहा है- 'घर- घर चर्चा रहे धर्म की ,दुष्कृत दुष्कर हो जावे ;ज्ञान चरित्र उन्नत कर अपना ,मनुज जन्म फल सब पावे' पं. जुगल किशोर जी भावना भा रहे है घर -घर में चारित्र रहे, घर -घर में धर्म की चर्चा हो ।ईंट, चुने, पत्थर के घर हम समझते है ,कुटुंब परिवार को घर समझते है ,पर इतने मात्र का नाम घर नहीं है ,घर तो प्रत्येक प्राणी के शरीर का नाम है ।
मुनिश्री ने रामायण का दृष्टांत देते हुए कहा कि तुलसीदास जी ने कहा है -'दया धर्म का मूल है ,पाप मूल अभिमान; तुलसी दया न छोड़िए, जब तक घट में प्राण' शरीर यानि घर ,जैन पं. विद्वान है उन्होंने कहा प्रत्येक शरीर धारी के अंदर धर्म की चर्चा होनी चाहिए तो आचार्य भगवन कहते है स्वयं ही सुख ,शान्ति का साम्राज्य छा जायेगा ।फिर शान्ति की प्रार्थना नहीं करनी पड़ेगी। सुख शान्ति मांगने से नहीं मिलती ,सुख किसी भी वृक्ष ,खड्यां या फैक्ट्री से प्राप्त नहीं होता वह तो अन्तरात्मा के पवित्र विचारों से उत्पन्न होता है।
मुनिश्री ने बताया एक व्यक्ति एक बार भगवान से प्रार्थना करने के लिए गया, भगवन मुझे मकान मिल जाये तो मैं सुखी हो जाऊँगा अन्यथा दुःखी रहूंगा इस बात को एक शिष्य ने सुन लिया और वह एक गुरु के पास उनके लेकर गया, उसने मकान की प्रार्थना की, दूसरा आया उसने जमीन की प्रार्थना की ,तीसरा रोगी आया उसने स्वस्थ होने की प्रार्थना की ,चौथा बच्चा आया उसने पास होने की प्रार्थना की जो -जो व्यक्ति आया उन सभी ने अपनी प्रार्थना की लेकिन उन गुरु ने किसी से कुछ नहीं कहा तो वह व्यक्ति उन गुरु से कहता है कि- आप सब के दुःखो को दूर करके सुख को प्रदान करे सभी सुख चाहते है ।तो वह गुरु कहते है- तीन भुवन में अनंत जीव है वह सभी सुख ही चाहते है ,एक काम करो जितने भी लोग आये है जबकि लिस्ट तैयार करो और बताओ सुख किसे चाहिए ? उस व्यक्ति ने ढ़िढोरा पिटवा दिया और सभी जीवो की लिस्ट बनाई ,सभी जीवो ने जो- जो आवश्यकता की वस्तु थी उन्हीने सब कुछ बताया, सब कुछ लिखा किसी ने घर ,किसी ने मकान, किसी ने दूकान ,किसी ने कुछ -किसी ने कुछ सब कुछ लिख दिया ।और फिर गुरु के समक्ष आई तो गुरु ने कहा देखो उस लिस्ट में ऐसा क्यों सा व्यक्ति है जो सुख चाहता है। पूरी लिस्ट देख ली लेकिन सुख किसी की लिस्ट में नहीं लिखा था। कहने का मतलब आज हर व्यक्ति बस अपनी आशाएं, इक्षाये पूरी करने मैं ही लगा हुआ है। जबकि कवि यहाँ पर कहते है - 'घर- घर चर्चा रहे धर्म की ' आचार्य गुणभद्र स्वामी ने आत्मानुशाशन ग्रन्थ में कहाँ है- 'आशा गर्त प्रति प्राणी, यस्मिन विश्व मणुपम्म् ,कस्य किं कियेदायति ,वृथा वो विषयेशिता' उन्होंने बताया प्रत्येक प्राणी का आशा रूपी गढ्ढा इतना बड़ा है कि उसमे सारा विश्व भी अणु मात्र प्रतीत होता है। एक प्राणी जब तीनो लोको की सम्पदा चाहता है तो अनंत प्राणियों की कितनी होगी? जितना विचार हम पर पदार्थो के विषय में करते है उतना अपनी आत्मा के विषय में नहीं कर पाते फलतः आत्मा सुखी नहीं हो पाती। जितना हम ध्यान बाह्य संसार का रखते है उतना धर्म का रखने लगे जाये तो व्यक्ति दुःखी नहीं अपितु सुख ,शांति ,आनन्द से भर जायेगा।
मुनिश्री ने बताया ये पंक्ति हमे यही बताना चाहती है कि घर- घर में धर्म की चर्चा हो और दुष्कृत दुष्कर हो जाये। धर्म की चर्चा, सुख की चर्चा, शांति की चर्चा हर घर में हो जहाँ सन्त होते है वहाँ घर -घर में धर्म की चर्चा होती है। कोई स्वाध्याय की चर्चा करता है तो कोई प्रश्नमंच की ,कोई बैयावृत्ति की तो कोई प्रवचन की ,कोई आहारे चर्या की सभी जगह धर्म की चर्चा होने लगती है। सन्त जन है तो घर- घर में धर्म का मंगलाचार होता है। ध्यान रखना जितने समय धर्म चर्चा होगी तो उतने समय दुष्कृत दूर हो जाएंगे।
मुनिश्री ने बताया कि एक व्यक्ति हमारे पास आया और कहता है- ऐसे प्रवचन सुनने से क्या लाभ जिन्हें सुनकर भी एक भी नियम न हो सके ?तो मुनिश्री ने बताया ऐसा मत करना ,मन्दिर जरूर आना, स्वाध्याय जरूर करना, जाप जरूर करना, पूजा जरूर करना, आहार दान जरूर करना, भले ही मन लगे या न लगे, जितना मन लगे उतना करना यदि एक माला फेरते समय दो चार दाने में ही मन लग जाये तो वह दो चार दाने ही जीवन की उन्नति में कारन बन जायेंगे। इसलिये जितना बने उतना धर्म जरूर करना ,स्वाध्याय भले ही एक पेज पड़ना पर जरूर पढ़ना वह तुम्हारे आत्म उन्नति का कारण बन सकते है। किसी -किसी को स्वाध्याय में नींद आती है ,लार भी गिरने लगती है कोई बात नहीं स्वाध्याय में आना मत छोड़ना कुछ तो शब्द कान में पड़ेंगे और बो कुछ शब्द ही न जाने कब- कौन सी पर्याय में आपको केवलज्ञान प्राप्त करने में निमित्त का कारण बन जयेंगे। हमारे जितने भी दुष्कृत है वो सब दुष्कर हो जायेंगे और समाप्त हो जाएंगे। 'ज्ञान चरित्र उन्नत कर अपना ,मनुज जन्म फल सब पावे ' ज्ञान और चरित्र की उन्नति हो ,प्रखर हो ।ज्ञान को देहली का दीपक कहा जाता है जो दोनों कमरों को प्रकाशित करता है। एक ओर श्रद्धा को निर्मल बनाता है तो दूसरी ओर चारित्र को उन्नत शील बनाता है ।ज्ञान के बाद चारित्र की चर्चा है ,ज्ञान की प्राप्त करे और चरित्र भी धारण करें। जीवन निकल गया एक भी व्रत, संयम नियम नहीं लिया, क्या अपना जीवन ऐसा ही चला जायेगा? छोटा-छोटा नियम भी जीवन में बहुत बड़ा प्रभाव करता है।पुरे परिवार प्रभावित करता है। एक व्यक्ति के नियम ने घर के।  वातावरण को निर्मल कर दिया। घर का एक सदस्य नियम लेता है तो सारे सदस्यों का पालन होता जाता है। मनुष्य जन्म का यही फल है जीवन को उत्साह शक्ति से भरे, व्रत संयम से प्रभावित करे।🌹🌹