श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज के मंगल प्रवचन 08-03-2018 दिन- गुरूवार
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क्रोध तात्कालिक पागलपन है त्रैकालिक नहीं........🌿
श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, अशोकनगर (म. प्र.) में श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज ने अपने प्रवचन में बताया कि -एक स्वभाव होता है ,और एक विभाव होता है। व्यक्ति स्वभाव में 24 घण्टे रह सकता है लेकिन विभाव में अधिक से अधिक 48 मिनट से ज्यादा नहीं रह सकता। हमारी आत्मा का स्वभाव दया ,क्षमा, प्रेम ,वात्सल्य, मैत्री भाव, ज्ञाता, दृष्टा आदि है। इसके अलावा जो विभाव है, अवगुण है, बुराई है जो हमारी आत्मा को पतन कराते है वो निर्दयता ,क्रोध, मान, माया, लोभ ,हिंसा ये सब विभाव के अंतर्गत आते है।
🖊मुनिश्री ने बताया एक व्यक्ति मेरे पास आया और कहता है कि- मुनिराज! क्रोध करना मेरा स्वभाव हो गया है। मैंने उससे कहा- क्रोध कभी किसी का स्वभाव हो ही नहीं सकता है। क्रोध तभी आता है जब कोई निमित्त मिलता है, बिना निमित्त के कभी क्रोध नहीं मिलता ।जैसे पानी का स्वभाव शीतलता है लेकिन जब उसे अग्नि का निमित्त मिलता है ,और जब तक अग्नि और पानी का संयोग रहता है तब तक पानी उबाल देता है ,गरम रहता है और जिस क्षण अग्नि को अलग और पानी को अलग कर दिया जाये तो वह पानी अपने स्वभाव में आना प्रारम्भ कर देता है ।उसी प्रकार जीव का स्वभाव क्षमा है, जब जीव को निमित्त मिलता है तो वह क्रोधित हो जाता है ,विभाव में चला जाता है। किसी वस्तु पर, किसी व्यक्ति पर जब क्रोध आता है तो जब तक वह सामने रहता है तब तक क्रोध करता है और वह सामने से अलग हुआ तो वह अपने स्वभाव में आ जाता है ,क्षमा धारण कर लेता है। जैसे आपके बच्चे से काँच का गिलास टूट जाता है तो आप बच्चे को एक थप्पड़ मार देते है ।क्या थप्पड़ मारने से बो गिलास जुड़ जाता है? नहीं जुड़ता। अब जब तक वह बच्चा सामने रहेगा तब तक आपको क्रोध आएगा या जब तक वो गिलास फैला हुआ डला रहेगा तब तक आपको क्रोध आएगा। वह गिलास आपने उठा कर फेंक दिया, बच्चा चला गया आपका गुस्सा अपने आप ही शांत हो जायेगा।
🌿मुनिश्री ने बताया स्वभाव में आने के पहले विभाव को जानने की आवश्यकता है। क्षमा को धारण करने के पहले क्रोध को जानने की आवश्यकता है। हम पहले क्रोध को जाने ,आचार्यो ने बताया है क्रोध ,कषाय को बढ़ाने से संसार को बढ़ाने बाल कर्म बन्ध बढ़ता है तथा तप करने से जो प्राप्त की हुई समता है वह शीघ्र ही समाप्त हो जाती है ,ऐसा 'शास्त्र सार समुच्चय' ग्रन्थ में बताया गया है।
🖊मुनिश्री ने बताया क्रोध को जीता नहीं जाता ,जाना जा सकता है ।उसको जानने का प्रयाश कीजिये ।क्रोध है क्या? किन बातों से क्रोध आता है? क्या कारण बनते है? उसको जानने की आवश्यकता है। क्रोध मत करो उसका अभिनय करो, दिखावा करो। जैसे की फिल्मों में होता है ,हीरो विलन को मारता है ,विलन हीरो को मारता है ।लेकिन क्या किसी को चोट लगती है? नहीं लगती न। बस वैसे ही आपको भी अभिनय करना है क्रोध का ।घर में परिवार में आपके सदस्यों के द्वारा यदि कोई गलती हो जाती है तो क्रोध का अभिनय जरूर करें, क्रोध मत करे। दिखावा जरूर करे यदि क्रोध का दिखावा नहीं करोगे तो हो सकता है आपके परिवार के सदस्य गलत मार्ग पर आगे बढ़ जाये। महावीर ने चण्ड कौशिक सर्प को काटने का त्याग करवा दिया, किसी को काटना मत लेकिन लोगो ने उसके नियम का गलत फायदा उठा कर उसको परेशान करना प्रारम्भ कर दिया था। महावीर जब लौटकर बापिस आये तो सर्प से कहा- हे चण्ड कौशिक सर्प! तुम्हारा ये हाल किसने कर दिया ।तो वह बोलता है -मुनिराज !सब आपके नियम का प्रभाव है। तो महावीर कहते है- हे चण्ड कौशिक !मैंने तुम्हे काटने का नियम दिया था के किसी को काटना मत ।ये नहीं कहा था कि फुस्कारना मत ।यदि बो फुस्कारता तो कोई व्यक्ति उसके पास आता ही नहीं। आज के समय में भले ही आप किसी को काटो मत लेकिन फुस्कारने की आवश्यकता तो होती ही है। जैसे की क्रोध मत करना लेकिन क्रोध का अभिनय तो जरूर करना वर्ण चार प्रकार की हठ होती है, बाल हठ, स्त्री हठ, राज हठ और साधु हठ ।हाथ के कारण भी व्यक्ति को क्रोध आ जाता है। बच्चे ने किसी प्रकार की हठ कर ली तो क्रोध आ ही जाता है उससे बचने का प्रयाश करना चाहिए। 🌿मुनिश्री ने बताया सन्त कभी क्रोध नहीं करते ।चार प्रकार का क्रोध होता है- अनंतानुबंधी क्रोध, अप्रत्यख्यान क्रोध, प्रत्यख्यान क्रोध और संज्वलन क्रोध ।अनंतानुबंधी क्रोध सम्यग्दर्शन नहीं होने देती। अप्रत्यख्यान कषाय देश संयमे धारण नहीं करने देती ।प्रत्यख्यान कषाय महाव्रत धारण नहीं करने देती और संज्वलन कषाय यथाख्यात चारित्र प्राप्त नहीं होने देती है । मुनिराज की संज्वलन कषाय होती है। जल पर रेखा खींचने के समान जैसे जल पर रेखा खिंची और मित जाती है। वैसे ही मुनिराज की कषाय होती है मुनिराज जो बोलते है वह अपने आचरण से बोलते है।
🖊मुनिश्री ने बताया सन्त मुख से नहीं मन से बोलते है, जिव्हा से नहीं जीवन से बोलते है। क्रोध जब भी आता है वेहोश अवस्था में आता है। क्रोध में व्यक्ति बोलता नहीं है वकता है। ध्यान रखना बोलना बुरा नहीं है वकना बुरा है, बोलना पाप नहीं है वकना पाप है ।जब व्यक्ति क्रोध में वकता है तो वह ये भूल जाता है कि मैं कहाँ हूँ ? कौन मेरे सामने है? किस स्थान पर हूँ? वह तो बोलना प्रारम्भ कर देता है। क्रोध तात्कालिक पागलपन है त्रैकालिक नहीं वह कुछ समय के लिया आता है और चला जाता है। त्रैकालिक तो क्षमा होती है।
🌿मुनिश्री ने बताया क्रोध अधोगामी होता है ,नीचे की ओर जाता है। जैसे पति- पत्नी में झगड़ा हो गया तो पति अपनी गुस्सा उतारता है नोकर पर, नोकर अपनी गुस्सा उतरता है फाइल्स पर ,और जब पत्नी को गुस्सा आता है तो वह अपनी गुस्सा बच्चे पर उतारती है, बच्चा अपनी नोकरानी पर उतरता है, और नोकरानी कपड़ो और बर्तन पर उतारती है। ध्यान रखना उस दिन कपड़े और बर्तन बिलकुल साफ हो जाते है। क्रोध अधोगामी होता है ।
🖊मुनिश्री ने बताया क्रोध का प्रारम्भ तो मूर्खता से होता है और अंत पश्चाताप से होता है। व्यक्ति मूर्खता में क्रोध करना प्रारम्भ करता है। बच्चे को थप्पड़ मार देता है उसकी गलती पर लेकिन बाद में पश्चाताप करता है कि मुझे नहीं मारना चाहिए था।उसे अपने अपराध का बोध हो जाता है और अपराध का बोध हो जाना ही सबसे बड़ा प्राश्चित है।
🌿मुनिश्री ने क्रोध से बचने के कुछ उपाय बताए -
1. किसी को जबाब सहसा न दे, सोचे विचारे फिर बोले ।
2. मौन हो जाओ।
3. चिन्तन की धारा में उतर जाओ।
4. अपना चहरे दर्पण में देख लिया करो।
5. मुह में ठंडा पानी भर लिया करो, न पीओ और न बाहर फेको।
6. उल्टी गिनती या उल्टा णमोकार मंत्र पढ़ना प्रारम्भ कर दे ।
देखना आप भी क्रोध को दूर कर सकते है। क्रोध दूर होने पर ईंट का जबाब फूल से, ईंट का जबाब प्यार से ,गाली का जबाब गीत से देना प्रारम्भ हो जायेगा।
🖊मुनिश्री ने बताया क्रोध तब आता है जब हमारी अपेक्षा की उपेक्षा हो जाती है। कभी किसी से अपेक्षा मत रखो ,अपेक्षा की जब उपेक्षा होती है तो क्रोध आता ही है और जिस व्यक्ति को क्रोध आता है उस व्यक्ति का खून भी जहर बन जाता है। उसके सफेद कण लाल में परिवर्तित हो जाते है और क्रोध बढ़ जाता है। क्रोधी व्यक्ति बड़ा जहरीला होता है। न्यूयार्क के एक वैज्ञानिक ने एक क्रोध व्यक्ति का खून निकालकर एक स्वस्थ्य खरगोश में डाला तो वह स्वस्थ्य खरगोश भी तड़प-तड़प कर मर गया ।इतना जहर उस क्रोधी व्यक्ति के पास होता है। क्रोधी व्यक्ति जिस पगडण्डी से निकल जाये उस पर घास तक नहीं उगती है।
🖊मुनिश्री ने बताया क्रोध और करुणा आत्मा से ही निकलता है ।क्रोध तात्कालिक होता है और करुणा त्रैकालिक होती है। क्रोध में व्यक्ति 48 मिनट ही रह सकता है पर करुणा में दिन भर रह सकता है। इसलिए हम उस स्वभाव को प्राप्त करने का प्रयत्न करें ,क्रोध को छोड़कर क्षमा को धारण करने का प्रयाश करे ।
🌿मुनिश्री ने बताया क्रोध के बारे में जानने में बहुत चिन्तन की आवश्यकता है ।चिन्तन का विषय है अभी हम 2 दिन और क्रोध के विषय में जानेंगे की क्रोध क्या है? कैसे आता है? कब आता है? क्या करके जाता है? हम उससे कैसे बचें ?अपने जीवन को पावन कैसे बनाये ?जानेंगे और समझेंगे।🌿🌿🌿
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