श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज के मंगल प्रवचन 17-02-2018 दिन- शनिवार
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जहाँ राग है वहाँ संसार है और जहाँ राग का आभाव है वही मुक्ति की प्राप्ति है.........🍂
श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, थुबोन जी, जिला अशोकनगर (म. प्र.) में श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज विराजमान है ।उन्होंने आज प्रवचनसार के वाचना के माध्यम से बताया व्यक्ति राग करता है। जब तक राग का सद्भाव है तब तक संसार है और जब राग का आभाव हुआ तभी मुक्ति की प्राप्ति है। एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा- नारी मधुर है कि नहीं? तुरंत जबाब आया नारी विष की खान है ।भैया! गड़बड़ नहीं करना यदि विष की खान है तो विष में बैठा क्यों है? विष की खान तो नाग के कंठ में होती है। बिलकुल ठीक कह रहा है तू जैसे नाग उस विष को हेय नहीं मान रहा है ,उस विष के बल पर अपना जीवन जी रहा है ऐसे ही राग भी नारी को विष नहीं मानता है। उस विष के बल पर संतान को जन्म दे रहा है ।
🍂मुनिश्री ने बताया यदि रागी को नारी, नारी को रागी प्रतिभूति न लगते, अच्छे न लगते, स्वर्गभूत न लगते तो आज संसार सन्तान शून्य हो जाता। तुम्हारे राग की कृपा से ये सारा संसार दृष्टिगोचर हो रहा है। हे रागी! राग न होता तो तीर्थंकर का भी जन्म नहीं हो सकता था। तीर्थंकर का जन्म भी दो रागियो के संयोग से हुआ है। व्यवहार दृष्टि है ,राग बहुत श्रेष्ठ है उसके आभाव में संसार में कोई रह नहीं सकता ।संसार में रहने बालो के लिए राग प्रिय बस्तु है, उत्कृष्ट बस्तु है पर सिद्धशिला में जाने को राग जहर है।
🍂मुनिश्री ने बताया राग की सत्ता को स्वीकारिए, राग के स्वभाव को भी स्वीकारिए, राग के गुण को भी निहारिये। नरक है तो राग की सत्ता से है ,स्वर्ग है तो राग की सत्ता से है और भैया! तिर्यंच है तो राग की सत्ता से, मनुष्य है तो राग की सत्ता से। जब अप्रशस्त राग होता है तो नरक में गमन कर लेता है। जब अप्रशस्त राग मायाचारी के साथ होता है तो तिर्यंच गति में गमन करता है, जब प्रशस्त- अप्रशस्त धारा में होता है तो मनुष्य गति की प्राप्ति होती है। जब प्रशस्त राग होता है तो स्वर्ग की प्राप्ति होती है ,जहाँ राग का आभाव होता है तो मुक्ति की प्राप्ति होती है। अज्ञानी जो राग की सत्ता नहीं जानते वे उन्मत्त हो चुके है पर वैरागी नहीं हो सकते। जीव को वैराग्य शब्द से ही राग हो गया है और हर बस्तु के लिए कहता है कि कुछ नहीं अपना, ये कुछ नहीं अपना जबकि स्वीकार्य पूर्ण रूप से है। पर हर समय कहता है कुछ नहीं अपना। अरे भैया! कुछ नहीं अपना ये शब्द है ,इस शब्द से उसे राग हो गया है। इस शब्द राग से उन्मत्त होकर के न भगवान की वंदना करने जाता है ,न जिनवाणी सुनता है, न गुरु के पास जाता है ।मात्र कहता है कि कुछ नहीं अपना ,इसमें आनन्द मानता है। इस शब्द में इतना उन्मत्त हो चुका है कि मालूम ही नहीं है कि इस सब को स्वीकारेगा तो वैराग्य किससे होगा। इन सब की सत्ता को स्वीकारते हुए अपना स्वभाव भूत नहीं स्वीकारना उसका नाम वैराग्य है । जो द्रव्य की असत्ता को कहकर के वैराग्य को स्वीकारने जा रहा है वह घोर मिथ्यादृष्टि है। जो नारी को नारी नहीं कहना चाह रहा है, माँ को माँ नहीं कहना चाह रहा है, जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म ,आकाश, काल ,द्रव्य को उसके स्वभाव को नहीं मान रहा है ऐसा जीव कहता है मैं वैरागी हूँ। तू वैरागी नहीं है, तू मिथ्यादृष्टि है क्योंकि छः द्रव के आभाव का नाम वैराग्य नहीं है ।छः द्रव्यों की सत्ता को स्वीकारते हुए मेरी सत्ता ,छः द्रव्यों की सत्ता में असत्ता है। छः द्रव्यों में मेरी सत्ता पर द्रव्य की अपेक्षा असत्ता है ।पर में ,स्व जीव में जीव द्रव्य हूँ, ऐसा स्वीकारना उसको ही निज स्वरूप स्वीकारना ,उसी में अपने ज्ञान को ले जाना, उसमे ही अपने श्रद्धान को ले जाना ,चारित्र की ओर जाना उसका नाम वैरागी है।
🍂मुनिश्री ने बताया तत्व निर्णय किये बिना वैराग्य का भेष बनाना भी बहिरभाव है इसलिए भैया! त्यागी व्रती तत्व निर्णय पूर्वक जो वैराग्य को प्राप्त होगा वही चारित्र को प्राप्त कर सकता है। वैराग्य कठिन नहीं है तत्व निर्णय कठिन है। एक दिन के निर्णय में कोई व्यभिचार नहीं कर सकता और एक दिन के निर्णय में कोई मुनि नहीं बन सकता अर्थात राग को हटाने का प्रयाश करे। राग हटते ही संसार शरीर भोगो से विरक्ति हो जाती है और वैराग्य की ओर अग्रशर हो जाते है। इसलिए कहा गया राग का सद्भाव संसार है और राग का आभाव मोक्ष है।
🌷मुनि संघ का आज रात्रि विश्राम शाशकीय माध्यमिक विद्यालय, अमरोद, जिला- अशोक नगर, मध्य प्रदेश में होगा और कल की आहार चर्या श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, अशोक नगर, मध्य प्रदेश में होगी।🌼🌼
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