🌹सोला का भोजन 🌹
परमपूज्य मुनिराजों एवं त्यागी व्रतियों के चौको में अक्सर सोला शब्द प्रयोग किया जाता है कई बार जानकारी के अभाव में सोला शब्द एक रूढ़िवादी परम्परा सा लगने लगता है।
लेकिन सोला को सोला क्यों कहा जाता है आइये हम इस पर जैन आगम का सामान्य जानकारी देने वाली यह ज्ञान वर्धक पोस्ट का स्वाध्याय करे
*भोजन निर्माण संबंधी सोलह नियम -*
भोजन निर्माण प्रक्रिया के सोलह नियम चार वर्गों में विभाजित हैं ।
१ द्रव्य शुद्धि २ क्षेत्र शुद्धि ३ काल शुद्धि ४ भाव शुद्धि
*द्रव्य शुद्धि -*
*अन्न शुद्धि -* खाद्य सामग्री सड़ी गली घुनी एवं अभक्ष्य न हो ।
*जल शुद्धि -* जल जीवानी किया हुआ और प्रासुक हो ।
*अग्नि शुद्धि -* ईंधन देखकर शोध कर उपयोग किया गया हो ।
*कर्त्ता शुद्धि -* भोजन बनाने वाला स्वस्थ हो , स्नान करके धुले शुद्ध वस्त्र पहने हो , नाखून बडे न हो , अंगुली वगैरह कट जाने पर खून का स्पर्श खाद्य वस्तु से न हो , गर्मी में पसीने का स्पर्श न हो या पसीना खाद्य वस्तु में ना गिरे ।
*क्षेत्र शुद्धि -*
*प्रकाश शुद्धि -* रसोई में समुचित सूर्य का प्रकाश रहता है ।
*वायु शुद्धि -* रसोई में शुद्ध हवा का संचार हो ।
*स्थान शुद्धि -* रसोई लोगों के आवागमन का सार्वजनिक स्थान न हो एवं अधिक अंधेरे वाला स्थान न हो ।
*दुर्गंध शुद्धि -* हिंसादि कार्य न होता हो , गंदगी से दूर हो ।
*काल शुद्धि -*
*ग्रहण काल -* चंद्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण के काल में भोजन न बनाया जाय ।
*शोक काल -* शोक दुःख अथवा मरण के समय भोजन न बनाया जाय ।
*रात्रि काल -* रात्रि के समय भोजन नहीं बनाना चाहिए ।
*प्रभावना काल -* धर्म प्रभावना अर्थात् उत्सव काल के समय भोजन नहीं बनाना चाहिए ।
*भाव शुद्धि -*
*वात्सल्य भाव -* पात्र और धर्म के प्रति वात्सल्य होना चाहिए ।
*करुणा भाव -* सब जीवों एवं पात्र के ऊपर दया का भाव रखना चाहिए ।
*विनय भाव -* पात्र के प्रति विनय का भाव होना चाहिए ।
*दान भाव -* दान करने का भाव रहना चाहिए ।
🙏 जो भी सोला का भोजन लेते है,उन्हे ये सोलह नियम जरुर बता दें।

