श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज के मंगल प्रवचन 06-02-2018 दिन- मंगलवार
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जिसका पुण्य क्षीण है उसकी बुद्धि भी गरीबी का काम करती है.......🌿
श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, चन्देरी ,अशोकनगर (म. प्र.) में श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज ने आज अपने मंगल प्रवचन के माध्यम से बताया कि वीतराग चारित्र से निर्वाण को प्राप्त होता है जीव ,और सराग चारित्र से देव, अशुर, राजा आदि की विभूति को प्राप्त होता है ।सराग चारित्र से विशिष्ट पुण्य का बन्ध होता है और परम्परा से निर्वाण को प्राप्त होता है सराग सम्यग्दृष्टि जीव ,लेकिन वीतराग चारित्र साक्षात् मोक्ष का कारण बनता है।
मुनिश्री ने बताया पुण्य तो करना पर पुण्य के फल की इच्छा मत करना। आपने जिनालयों की स्थापना की, मुनियों की सेवा कर रहे हो, तत्व सुन रहे हो लेकिन भैया भविष्य के सुख की इच्छा कभी मत करना मात्र धर्म करना ,धर्म के लिए आगामी में सुख की इच्छा के लिए धर्म मत करना।
मुनिश्री ने एक दृष्टांत देते हुए बताया एक नौकर ,नौकरी कर रहा था सेठ ने पहले तय नहीं किया कि कितना वेतन देगें पर सेठ ने ईमानदारी देखी सोच रहा था कि इसको 10,000 वेतन दूँगा और 5000 अलग से दूँगा ऐसा सेठ सोच रहा है उसकी ईमानदारी को देखकर। पर उसी दिन नौकर अधीर हो गया एक महीना होने वाला है सेठ जी ने कोई विचार ही नहीं किया कि वेतन भी देना चाहिए की नहीं। गरीब की बुद्धि मात्र पैसे से ही गरीब नहीं होती है उसकी पुण्य की बुद्धि भी गरीब होती है ,उसकी सोच भी गरीब हो जाती है ,विश्वास रखने जिसका पुण्य क्षीण है उसकी बुद्धि भी गरीबी का काम करती है वह ऊँचा सोच नहीं पाता। तो सेठ जी तो 15000 रू लेकर आये थे और नौकर को देने वाले थे , पर वो नौकर क्या बोलता है कि- सेठ जी मैं आज आपसे 2000 से एक पैसा कम नहीं लूँगा ,आप मुझे वेतन दो। उसने मुख से बोल ही दिया ।विचारे सेठ जी सर पे हाथ रखते है और सोचते है मैं तो इसे 15000 दे रहा था ।उन्होंने उसे धीरे से 2000 पकड़ा दिए ।कितने का घाटा लगा नौकर का? 13000 का ।ऐसे ही भैया जो विषय सुख के 2000 माँग लेते है वे 13 प्रकार के चारित्र का घाटा खा लेते है। मिलने वाला होता है मोक्ष सुख परन्तु निदान बन्ध के कारण सम्यक्त्व की विराधना करके अशुर पर्याय में जीव उत्पन्न हो रहा है ,मुनि बनके भी। कितना गम्भीर विषय है ।
मुनिश्री ने बताया मुनि बन के चारित्र का पालन करके अशुर पर्याय में निदान बन्ध के कारण जीव जा रहा है। सम्यक्त्व की विराधना की लेकिन चारित्र का फल तब भी विफल नहीं होगा। दोष तेरे निदान का है। वीतराग चारित्र उपादेय है, सराग चारित्र हेय है ऐसा समझना चाहिये।
मुनिश्री ने बताया पुण्य बेकार नहीं जाता उसका फल जरूर मिलता है बस माँगे मत ।हम भगवान के चरणों में जाकर पुण्य तो करते है, पुण्य का अर्जन करते है, जाप करके, पूजा करके, स्वाध्याय करके, गुरुओं को आहार देके, विहार करवा के ,कोई विधान, अनुष्ठान, पञ्च कल्याणक आदि विभिन्न कार्यो से पुण्य का अर्जन करते है। लेकिन उस पुण्य के फल की आकांक्षा करते है तो वह पुण्य हमारा क्षीण हो जाता है क्योंकि माँगने से पुण्य क्षीण होता है। जितना हमें मिलना होता है उतना नहीं मिल पाता जैसे की उस नौकर को मिलने थे 15000 रु और मिले 2000 रू। उसी प्रकार हम भी पुण्य की क्रियाएँ करे तो कोई इच्छा ,आकांक्षा को लेकर नहीं , भक्ति करे तो कोई लोभ लालच से नहीं, भगवान की अर्चना करें तो मन में कोई तमन्ना लेकर नहीं ,निश्वार्थ भावना से भक्ति करे और पुण्य का अर्जन करे। वह पुण्य का उदय जब आएगा तुम्हारी सारी विपत्तियों को दूर कर देगा ।वह संसार के सारे सुखों को भी प्रदान करेगा और भविष्य में निर्वाण पद की प्राप्ति भी कराएगा ।
मुनिश्री ने बताया श्रावक की कोई भी धार्मिक क्रियाये है वो सारी धार्मिक क्रियाएँ परम्परा से मोक्ष का कारण बनती है। चाहे वह पूजा हो और चाहे वह दान हो। 'चारित्रसार' में कहा है- "दानम पारंपरेण मोक्ष कारणम" अर्थात दान परम्परा से मोक्ष का कारण है। और रयणसार ग्रन्थ में कुन्द कुन्द स्वामी ने कहा है 'जो जिनेंद्र भगवान की पूजा करता है वो तीनो लोको में पूज्य बनता है' अर्थात श्रावक की भक्ति भी परंपरा से पुण्य का कारण है, इसलिए अपने पुण्य को बढ़ाए।
मुनिश्री ने बताया जिन जीवो का पुण्य क्षीण हो जाता है उनकी बुद्धि भी क्षीण हो जाती है। बो पैसे से भी गरीब होते है और पुण्य से भी गरीब होते है। उनकी सोच भी छोटी हो जाती है यही कारण है कि बो धर्म से विमुख हो जाते है। किसी कवि ने कहा है-' धर्म बड़े तो धन बड़े, धन बड़ मन बड़ जाये; मन बड़त सब बड़त है, बड़त -बड़त बढ़ जाये।।' और इसकी दूसरी पंक्ति बताई है - 'धर्म घटे तो धन घटे, धन घट मन घट जाये; मन घटत सब घटत है, घटत -घटत घट जाये।।' इसलिये सर्वप्रथम धर्म को बढ़ाने का प्रयाश करे ,धर्म बढेगा तो धन बढेगा ,धन बढेगा तो मन बढेगा और मन बड़ गया तो सब कुछ बढ़ता ही चला जायेगा। अपने धर्म को बढ़ाने का प्रयाश करे।
मुनिश्री का आज दोपहर 2 बजे अतिशय क्षेत्र गोलाकोट की ओर मंगल विहार होगा। कल की आहार चर्या बड़ीबामोर में सम्पन्न होगी 🌴🌴