पहले चार धर्म- उत्तमक्षमा, उत्तममार्दव, उत्तमआर्जव, उत्तमशौच क्रमश:  हमारे अंदर के क्रेाध, मान, माया, एवं लोभ को शमन करते हैं। इसी तरह उत्तम सत्यधर्म आत्मबल में वृद्धि एवं उत्तम संयमधर्म अनुशासित बने रहने के लिये अनिवार्य है। उत्तमतपधर्म से इंद्रिय एवं मन पर नियंत्रण रहताहै।

उत्तम त्यागधर्म जीवन में संवेदनशीलता, सहिष्णुता एवं उदारता में वृद्धि करने में सहायक होता है। उत्तम आकिंचन अर्थात अपरिग्रह, परिग्रह के अभाव के साथ-साथ क्रेाध, मान, माया, एवं लोभ आदि विकारों, जो पदार्थ में आसक्ति के कारण उत्पन्न होते हैं को शमन करता है। उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म आत्मलीनता पूर्वक पांचों इंद्रियों के विशयों का त्याग, आत्मविष्वास, आत्मबल एवं गृहस्थाचार को नियमित करने का धर्म है।

यह दश  धर्म चारित्र सुधार की निर्मल पर्याय हैं। इनके साथ लगा उत्तम शब्द सम्यग्दर्शन  तथा सम्यग्ज्ञान की अनिवार्य सत्ता का सूचक है। अर्थात ये चारित्र की निर्मल दशायें सम्यग्ज्ञानी को ही प्रकट होती हैं। दश  धर्मों की भावना भाते हुए, उनको आत्मसात करते हुए हम अपनी निर्मलता को प्राप्त होते हैं। हमारे अंतर में समस्त प्राणीमात्र के प्रति क्षमा भाव उत्पन्न होते है। पर्यूषण पर्व ही ऐसा पर्व है, जो अपनी क्षमादि दशधर्म रूपी तरंगों से जीवन को शीतल एवं साफ सुथरा बनाता है। विकारी भावों का परित्याग एवं उदात्त भावों का ग्रहण इस पर्व का आधार है।