अभिक्ष ज्ञानोपयोगी प्रज्ञा श्रमण गुरुवर अमित सागर जी महाराज के प्रवचन के अंश :
   
        "परिग्रह कम करना ही आकिंचन धर्म "

त्याग के बाद ही आकिंचन धर्म आता है इसका संबंध परिग्रह से है । त्याग के बाद भी मूर्च्छा बनी रही तो वो त्याग नही है ।वर्तमान वस्तु में जो आसक्ति है उसी का नाम परिग्रह है  आगामी वस्तु के संग्रह की चाह उसका नाम इच्छा है ।
परि याने जो चारों तरफ से ग्रहण करता है उसे परिग्रह कहते हैं ।बहुत आरंभ और बहुत परिग्रह दुर्गति के कारण हैं ।बहुत आरंभ से जीवों की हिंसा होती है ।मनुष्य परिग्रह के कारण ही आरंभ करता है ।ग्रह नो होते हैं जिसके पास परिग्रह होता है उसको ही ये ग्रह लगते हैं, परिग्रह सबसे बड़ा ग्रह है ।आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह करना पाप है, परिग्रह है ।ये मेरा और मैं इनका ऐसा जी राग चेतना में लगा हुआ है वही परिग्रह है ।मनुष्य अपने परिग्रह सर दुखी नहीं दूसरे के पास जो परिग्रह है उससे ज्यादा दुखी है ।दूसरे  के पास इतना धन वैभव है मेरे पास नहीं इसमें ही घुन रहा है ।परिग्रह पाप की जड़ है इसको कम करना ही आकिंचन धर्म है ।

श्रवण बेलगोला में विराजमान गुरुवर अमित सागरजी महाराज को कोटि कोटि नमन ।