संहनन

शरीरों कि बात की है तो उनसे ही सम्बंधित अन्य विषय ...

सर्वार्थसिद्धि के 8वें अध्याय के 11वें सूत्र में लिखा हैं कि,

"यस्योदयादस्थिबंधनविशेषो भवति तत्संहनननाम !"

याने,

नाम कर्म के जिस भेद के उदय से "हड्डियों/अस्थियों का बंधन विशेष" होता है, उसे संहनन नाम कर्म कहते हैं !!!

--- संहनन :- सहने की शक्ति, मज़बूती,दृढ़ता ... किसमे ? हड्डियों में ...

नारकी, देवों, एकिन्द्रिय और विग्रह-गति में संहनन नहीं होता है ! अर्थात इन अवस्थाओं में हड्डियां नहीं होती हैं !!!

संहनन 6 प्रकार का होता है !

१ - वज्रऋषभ नाराच संहनन

२ - वज्रनाराच संहनन

३ - नाराच संहनन

४ - अर्धनाराच संहनन

५ - कीलक संहनन, और

६ - असंप्राप्ता संहनन ...

इनमे से पहला वाला, वज्रऋषभ नाराच संहनन तीर्थंकर आदि तदभव मोक्षगामी जीवों के होता है और वर्त्तमान में अधिकांश मनुष्यों के अंतिम वाला असंप्राप्ता संहनन होता है !!!

वज्रऋषभ नाराच संहनन :- इसमें हड्डियां/अस्थियां वज्र की तरह मज़बूत होती हैं, और उनमे कीलक बंध होता है !

असंप्राप्ता संहनन :- जिसमे भीतर हड्डियों में आपस में जुड़ाव न हो मात्र बाहर से वह मांस, नसों और मांसपेशियों इत्यादि लपेटकर संघटित की हुई होती हैं !

--- ॐ ---