पाप === ऐसे अशुभ कार्य जो आत्मा के पतन का कारण बनें, वो "पाप" हैं !!! पाप के पांच भेद हैं :-
हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह .
१- हिंसा :- अपने या दूसरे के प्राणों का घात करना या पीड़ा पहुचाना, हिंसा है ! हिंसा 2 रूपों में होती है ...द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा
क:- द्रव्य हिंसा :- षटकाय के जीवों में से किसी को मारना या पीड़ा देना, द्रव्य हिंसा है !
अर्थात, जहाँ सच में प्रत्यक्ष रूप से हिंसा कि जाए !
ख:- भाव हिंसा :- किसी को मारने या पीड़ा देने का भाव रखना, भाव हिंसा है !
*** जहाँ द्रव्य हिंसा होगी, वहाँ भाव हिंसा होगी ही होगी, किन्तु भाव हिंसा में यह ज़रूरी नहीं है कि द्रव्य हिंसा हो ही हो !!!
हिंसा 4 प्रकार की बतायी है :-
१ - संकल्पी हिंसा :- संकल्प माने इरादा, संकल्पपूर्वक अर्थात जानबूझ का पहले से इरादा करके जो हिंसा होती ऐ वो संकल्पी हिंसा है ! जैसे :- किसी पशु,पक्षी या मनुष्य को मारने के इरादे से मार देना !
२ - आरंभी हिंसा :- घर के काम-काजों (खाना बनाना-अनाज कूटना, आग जलना, जल भरना इत्यादि) को करने में जो हिंसा होती है, वह आरंभी हिंसा है !!!
३ - विरोधी हिंसा :- अन्यायपूर्ण कार्यों के विरोध करने में कि हुई हिंसा, विरोधी हिंसा कही जाती है !!!
जैसे :- मंदिर को, धर्म को शत्रु से बचाने में कि हुई हिंसा !
४ - उद्यमी हिंसा :- खेती, व्यापार, उद्योग इत्यादि में होने वाली हिंसा को उद्यमी हिंसा कहते हैं !!!
*** गृहस्थ केवल संकल्पी हिंसा से बच सकता है बाकियों से नहीं !!!
२:- झूठ :- जैसा देखा या सुना हो, उसे वैसा नहीं कहना/बताना ही झूठ है ! जिन वचनों से किसी धर्मात्मा या निर्दोष प्राणी का घात हो, ऐसे सत्य वचन बोलना भी झूठ कि श्रेणी में आता है !!!
३:- चोरी :- बिना दिए किसी की गिरी हुई, रखी हुई या भूली हुई वस्तु को खुद ले लेना या किसी और को दे देना "चोरी" नामक तीसरा पाप है !!! चोरी को स्तेय भी कहते हैं ! कुशील :- कुशील माने अब्रह्म ... काम-वासना का भाव रखना, पराई स्त्री/पुरुष को खोटी दृष्टि से देखना या उनके साथ रमण करना/करने की इच्छा रखना "कुशील" नाम चौथा पाप है !!!
५:- परिग्रह :-पदार्थों के प्रति ममत्व का भाव रखना परिग्रह है ! संसारी चीज़ों (ज़मीन,मकान,पैसा,पशु,गाड़ियां, कपड़े इत्यादि) को आवश्यकता से अधिक रखना और इन्हे और ज्यादा बढ़ाने/पाने की इच्छा रखना परिग्रह है !
*** समस्त पापों का मूल कारण परिग्रह है !!! अंतरंग और बहिरंग के भेदों से परिग्रह 24 प्रकार का है :-
(क) अंतरंग परिग्रह :- रागादि रूप अंतरंग परिग्रह 14 प्रकार का होता है !
1- मिथ्यात्व,
4- कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) और,
9- नो-कषाय (हास्य, रति, आरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद)
(ख) बहिरंग परिग्रह :- सांसारिक वस्तुओं के प्रति आसक्ति रखना ... यह 10 प्रकार का होता है !
1:- क्षेत्र (खेत, भूमि),
2:- वास्तु (मकान),
3: -हिरण्य (चांदी,रुपया),
4:- स्वर्ण (सोना),
5:- पशुधन (गाय,भैंस आदि),
6:- धान्य (अन्नादि),
7:- दासी (नौकरानी),
8:- दास (नौकर),
9:- कुप्य (कपडे) और
1०:- भांड (बर्तन)