कषाय

जो आत्मा को कसता है, दुख देता है, पराधीन करता है उसे कषाय कहते हैं ! समझने के लिए कह सकते हैं, कि कषाय वो पेचकस है,जो आत्मा रूपी लकड़ी को कर्म रूपी पेंचो से कसता रहता है. ये 8-कर्म रूपी पेंच खुले ओर जीव हुआ मुक्त. सो, जो आत्मा के सच्चे गुणों को प्रकट ना होने दे वो कषाय है !
कषाय के 4 भेद बताए हैं :-
1 - क्रोध
2 - मान
3 - माया
4 - लोभ/लालच


1 - क्रोध - क्रोध याने गुस्सा. वजह, बे-वजह दीन दुखी, अपने से कमज़ोर, निर्बल, अक्षम जीवों पर क्रोध करना, सबसे बड़ा पाप है. क्रोध का कारक है, प्रतिकूलता, मतलब की क्रोध हमे हमेशा तब आएगा जब परिस्थितियां विपरीत होंगी, जैसा हम चाह रहे होंगे उसके उलट होंगी ! तो कह सकते हैं की, अपेक्षायों और आशायें ही मूल कारण हैं क्रोध का.

2 - मान - मान यानी घमंड/अभिमान/मद. दूसरे को हमेशा नीचा दिखना, उनके गुणों को छिपाना, सदैव अपने गुणों का प्रदर्शन करके खुश होना, मद है.मान 8 प्रकार का बताया गया है :-
2आ - कुल(पिता क परिवार) का मद
2ब - जाति(मा क परिवार) का मद
2सी - ज्ञान का मद
2द - रूप(सुंदरता) का मद
2ए - धन(पैसे) का मद
2फ - बल(ताक़त) का मद
2ग - तप का मद और
2ह - प्रभुता का मद

3 - माया कषाय - छल-कपट, धोखाधडी, देखा कुछ-बताया कुछ और को माया कषाय या मायाचारी कहते हैं !
उदाहरण :- 1 लड़का सदा ही खेल-कूद मे लगा रहता है, किंतु माता-पिता क आने पर उन्हे धोखा देने के लिए पुस्तक उठा कर पढ़ाई करने लगता है.

4 - लोभ/लालच कषाय - विषयों के प्रति आसक्ति, भोग की वस्तुओं के प्रति आवश्यकता से अधिक झुकाव को लोभ कहते हैं ! लोभ या लालच का संबंध केवल पैसे से ही नही है. किसी भी वस्तु के प्रति अधिक आसक्ति लोभ है !


इन 4 कषायों को बड़ा शत्रु बताया है, इसीलिए तो हमारे महापर्व पर्यूषण पर्व के शुरू के 4 धर्म के लक्षणों में इन 4 कषायों के अभाव को बताया है !
उत्तम क्षमा धर्म - क्रोध का अभाव
उत्तम मार्दव धर्म - मान का अभाव
उत्तम आर्जव धर्म - माया का अभाव
उत्तम शौच धर्म - लोभ का अभाव