सप्त व्यसन

व्यसन = बुरी आदत / लत्त, जो क्रिया आदत बन जाए, रम जाए और आत्मा का कल्याण ना होने दे ! वह व्यसन कहलाती है ! व्यसन के कारण मनुष्य का शरीर, यश, धन, दौलत, सदाचार, यहाँ तक की परिवार भी नष्ट हो जाते हैं !
व्यसन के 7 भेद हैं :-
"जुआ खेलन, मांस, मद्द, वेश्या व्यसन, शिकार, चोरी, पर-नारी रमण, सातों व्यसन निवार"
1:- जुआ खेलना
2:- मांस खाना,
3:- शराब का सेवन,
4:- वेश्या गमन,
5:- शिकार करना,
6:- चोरी करना, और
7:- पर-नारी रमण करना
यह सात व्यसन बताये हैं !!!


1:- जुआ खेलना :- जिसमे हार-जीत का व्यवहार हो उसे जुआ कहते हैं ! यह पैसा से या अन्य प्रकार से शर्त लगाकर खेला जाता है !आपस में शर्त लगा कर दौड़ लगाना, या कोई खेल खेलना, सट्टा-लॉटरी इत्यादि भी जुआ हैं ! जुआ खेलने के कारण है पांडव जैसे महापुरुषों को अपना राज्य, द्रौपदी और प्रतिष्ठा से हाथ धोना पड़ा था !!!

2:- मांस खाना :- त्रस जीवों के घात से मांस कि प्राप्ति होती है ! मांस प्राप्ति में तो जीव हिंसा होती ही है, किन्तु कच्चे या पकते हुए मांस में भी निरंतर जीवों कि उत्त्पत्ति होती रहती है !अतः मांस भक्षण हेय है, मांस के साथ साथ चमड़े से बनी हुई वस्तुओं का उपयोग भी हेय है !!! *** हम दूसरे जीवों को अपने खाने के लिए नहीं मार सकते, क्यूंकि जिस तरह हमे जीना पसंद है, उन्हें भी है ...

3:- मद्दपान :- मांस की तरह ही शराब में ही प्रति-पल जीवों की उत्त्पत्ति होती ही रहती है ! शराब तो वैसे भी फलों को गुड को महुआ को सड़ा कर बनती है ! कहते हैं, की जितने पुराणी शराब हो उतनी ही अच्छी, और पुरानी तो कोई सी भी खाने की चीज़ हो हो उसकी मर्यादा तो वैसे ही खत्म हो जाती है ! फिर चाहे वो अचार,मंगोड़ी,पापड़ ही क्यूँ न हो ... फिर ये तो शराब है ! सब जानते हैं की शराब पीने वाल व्यक्ति विवेकशून्य हो जाता है ! शराब अपने-पराये का, हित-अहित का बोध ख़त्म कर देती है ! भाँगं,चरस,गांजा,तम्बाखू,गुट्खा इत्यादि जो भी पदार्थ नशीले हैं, उनके सेवन भी हेय है, छोड़ने योग्य है !!!

4:-वेश्या गमन :- जो स्त्री पैसे इत्यादि के लिए अपना शरीर बेचती है, उसे वेश्या या नगर-वधु कहते हैं ! ऐसी स्त्री के घर आना-जाना, उसके साथ सम्बन्धों में लिप्त होना वेश्या-गमन है ! ये चौथा व्यसन बताया है !!!

5:- शिकार करना :- अपना शौक पूरा करने या अपने खाने के लिए पशु-पक्षियों की अकारण हत्या करना, उनका शिकार कहलाता है ! यहाँ तक की लकड़ी, लोहे या पत्थर से बने घोड़े,हाथी इत्यादि का छेदन-भेदन भी नहीं करना चाहिए ! इसमें निरी हिंसा होती है और पंचेन्द्रिय जीव के प्राणों का घात करने का दोष भी लगता है !

6:-चोरी करना :- ये एक पाप भी है ... हमने पढ़ा था कि, बिना दिए किसी की गिरी हुई, रखी हुई या भूली हुई वस्तु को खुद ले लेना या किसी और को दे देना "चोरी" नामक तीसरा पाप है !!!

7:-परनर-परनारी रमण :- अपनी स्त्री या अपने पुरुष के अलावा पर स्त्री/पुरुष से रमण करना, बुरी-नज़र से देखना सो, सातवां व्यसन है ! इसमें भावों की भी महत्ता है ... यह कुशील नामक पाप भी है ! इसके लिए जो जग-विख्यात हुआ, उस रावण के बारे में तो हम सबने सुना है !