नव-देवता ...

देव किसे कहते हैं ? 

देव उसे कहते हैं, जो धन,धर्म,भोग और मोक्ष के कारणभूत ज्ञान को देते हैं ! 

देव शब्द "दिव्‌" धातु से बना है, और "दिव्‌" के जय करना, क्रीड़ा करना इत्यादि अनेक अर्थ हैं, 

- जो परम सुख में क्रीड़ा करते हैं, वह सिद्ध देव हैं ... 

- जो लोकालोक को जानते हैं, वह अरिहंत देव हैं ... 

- जो सम्यत्व के धारी हैं, और अपने मार्ग में लीन हैं, वह आचार्य, उपाध्याय, साधु देव हैं !



इन पञ्च-परमेष्ठियों के अतिरिक्त, जिन-धर्म, जिन-वाणी, जिन-चैत्य और जिन-चैत्यालय को भी देवता माना गया है ! ये नव-देवता कहलाते हैं !!! 

आदि के पांच हम जान (णमोकार मंत्र में) चुके ... 

6 - जिन-धर्म :-  जिन (सर्वज्ञ, वीतरागी, हितोपदेशी) भगवान् द्वारा कहे गए धर्म को, जिन-धर्म कहते हैं ! 

7 - जिन-वाणी :- अरिहंत भगवान् के कथनानुसार गणधर और आचार्यों द्वारा रचे गए शास्त्रों को जिन-वाणी/जिन-आगम कहते हैं !!! 

8 - जिन-चैत्य :- जिनेन्द्र भगवान् कि प्रतिमा को जिन-चैत्य कहते हैं ! यह प्रतिमाएं कुछ खड़ी और कुछ बैठी हुई मुद्रा में होती हैं ! अरिहंत प्रतिमा के साथ अष्ठ-मंगल द्रव्य और प्रतिहार्य होते हैं !!! 

9 - जिन-चैत्यालय  :-  चैत्य + आलय = मूर्ति/प्रतिमा + स्थान !  जिस स्थान पर जिनेन्द्र भगवन कि प्रतिमा विराजमान की जाती है, उसे जिन-चैत्यालय कहते हैं ! ये 2 प्रकार के होते हैं :- 

१ - अकृत्रिम चैत्यालय :- ऐसे जिन चैत्यालय जिन्हे किसी ने बनाया नहीं है, जो स्व-प्रतिष्ठित हैं, शाश्वत हैं अधोलोक में भवनवासी देवों के भवनों में, मध्य लोक में तथा वैमानिक देवों के विमानों में गिनने योग्य अकृत्रिम चैत्यालयों की संख्या 8,56,97,481 है ! इसके अलावा अधोलोक और मध्य लोक में स्थित व्यंतर देवों के निवास स्थानों में असंख्यात अकृत्रिम चैत्यालय हैं ! तथा मध्य लोक में ज्योतिषी देवों के विमानों में भी असंख्यात अकृत्रिम चैत्यालय हैं ! गिनने योग्य अकृत्रिम चैत्यालयों की ऊपर लिखी संख्या में से 458 अकृत्रिम चैत्यालय मध्य लोक में हैं !!! 

२ - कृत्रिम चैत्यालय :- जिन चैत्यालयों को मनुष्यों के द्वारा बनाया गया है ! ये मनुष्य लोक में ही होते हैं, इन्हे जिन-मंदिर भी कहते हैं !!!