भगवान श्री आदिनाथ स्वामी के मोक्ष जाने से 14 दिन पहले भरत चक्रवर्ती सहित आठ अन्य महान पुरुषों को आदिनाथ भगवान के निर्वाणसूचक आठ स्वप्न आये जिनके नाम और चिन्ह इस प्रकार कहे हैं :-
१- जिस दिन भगवान ने योगों का निरोध किया उसी दिवस की रात में भरत चक्रवर्ती को स्वप्न हुआ कि मानो सुमेरु पर्वत ऊँचा होकर सिद्धशिला से जाकर लग गया है !
२- भरत चक्रवर्ती के पुत्र अर्ककीर्ति को स्वप्न हुआ कि स्वर्गलोक के शिखर से एक महान औषधि वृक्ष आया था और वह जगत निवासी जीवों के जन्म, जरा, मृत्यु रूप रोगों का नाश कर पुनः लोक के शिखर जाने को उद्यत हुआ है !
३- भरत चक्रवर्ती के गृहपति रत्नशिष्य को स्वप्न हुआ कि उर्ध्वलोक से एक कल्पवृक्ष आया और वह जीवों को मनवांछित फल देकर पीछे स्वर्गलोक के शिखर जाएगा !
४- भरत चक्रवर्ती के मुख्यमंत्री को स्वप्न हुआ कि स्वर्गलोक से एक रत्नद्वीप आया वह जिन्हे रत्न लेने कि इच्छा थी उनको अनेकों रत्न देकर पीछे स्वर्गलोक को गमन करेगा !
५- भरत चक्रवर्ती के सेनापति को स्वप्न हुआ कि एक अनंतबल का धारी, अद्भुत पराक्रमी मृगराज कैलाश पर्वत रूपी पिंजरे को छेदकर ऊपर जाने को उत्सुक हो उछलने को अभियोगी हुआ !
६- जयकुमार के पुत्र अनंतवीर्य को स्वप्न आया कि एक अद्भुत, अनंत कला का धारी चन्द्रमा जगत में उद्योतकर अपने तारागण सहित उर्ध्वलोक को जाने को उद्यमी हुआ है !
७- भरत चक्रवर्ती की पटरानी सुभद्रा को स्वप्न हुआ कि वृषभदेव कि रानियां - दोनों एक स्थान पर बैठी हुई चिंता कर रही हैं !
८- काशीदेशाधिपति चित्रांगद को स्वप्न हुआ कि अद्भुत तेज का धारी प्रकाशमान सूर्य पृथ्वी पर उद्योतकर उर्ध्वलोक को जाना चाहता है !
- इस प्रकार धर्मोपदेशक आदिनाथ स्वामी के निर्वाणसूचक आठ स्वप्न आठ प्रधान पुरुषों को हुए, जिनके फल सूर्योदय होने पर उन्होंने पुरोहित से पूछे !
पुरोहित ने कहा कि ये सभी स्वप्न सूचित करते हैं कि भगवान श्री आदिनाथ स्वामी कर्मों को नि:शेष कर अब अनेक मुनियों के साथ मोक्ष को प्राप्त करने वाले हैं !
पुरोहित से इनके अर्थ जानकर चक्रवर्ती अन्य भव्य जीवों के साथ कैलाशपर्वत पहुंचे वहां भगवान की ३ प्रदिक्षणाएँ दी, स्तुति की, भक्तिपूर्वक पूजा-अर्चनाएं की !
इसी तरह चौदह दिन तक भगवान की सेवा की तदन्तर कैलाश पर्वत पर "माघ कृष्ण चौदस" को शुभ मुहूर्त और "अभिजीत नक्षत्र" में भगवन ने तीसरे "सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति नामक शुक्लध्यान" से मन-वचन और काय योगों का निरोध कर फिर अंत में चौदहवें गुणस्थान में ठहर कर जितनी देर में अ, इ, उ, ऋ, ऌ इन पांच ह्रस्व स्वरों का उच्चारण होता है उतने ही समय में चौथे "व्युतपरत क्रिया निवृति नामक शुक्लध्यान" से अघातिया कर्मों का भी नाशकर पर्यकासन(पद्मासन) से मोक्ष को प्राप्त किया !
ऐसे परम पूजनीय आदिनाथ स्वामी मुझे सम्यग्ज्ञान और शान्ति प्रदान करें