भरत चक्रवर्ती के 16 स्वप्न

जिन-शास्त्रों में कथन आता है कि सम्राट भरत चक्रवर्ती अपनी बहुमूल्य शैय्या पर शयन करते हुए एक बार अद्भुत फल दिखाने वाले कुछ स्वप्न देखते हैं !

उन स्वप्नों को देखने से उन्हें चित्त में कुछ खेद सा उत्त्पन्न होता है और वे जाग कर चिंतवन करने लगते हैं !
फिर प्रातः काल उठकर अपने मन में उत्त्पन्न हुई शंकाओं को शांत करने के लिए भरत देवाधिदेव भगवान श्री वृषभदेव जी के समवसरण की ओर प्रस्थान करते हैं !

- वे समवसरण की भूमि को देख नम्रीभूत होकर मस्तक पर कमल के समान जोड़े हुए अपने दोनों हाथों को रखकर नमस्कार करते हैं !

उस भूमि की प्रदिक्षणा देकर, फिर मानस्तम्भ, महाचैत्यवृक्ष, सिद्धार्थवृक्ष और पूजित स्तूपों को देखते हुए आगे की कक्षाओं को पार करते हुए भीतर प्रवेश करते हैं !

तदन्तर बहुत ऊँचे गोपुर दरवाज़ों के मार्ग से उन्होंने जहाँ गणधरदेव विराजित थे और जो श्रीमंडप से सुशोभित हो रही थी ऐसी सभाभूमि में प्रवेश किया !

उसके पश्चात तीनो जगत की लक्ष्मी को तिरस्कृत करने वाली "गंध-कुटी" के पास जा पहुँचते हैं !

फिर केवली भगवान के चरणकमलों को प्रणाम कर वह कहते हैं !

हे देव ! आज मैंने रात्रि के अंतिम पहर में सोलह स्वप्न देखे हैं और मुझे ऐसा जान पड़ता है कि ये स्वप्न प्राय: अनिष्ट फल देने वाले हैं !
हे परमेश्वर ! मैंने जिस प्रकार स्वप्न देखे उन्हें वैसे ही कहता हूँ, उनका जैसा फल हो उसे मेरी प्रतीति का विषय करा दीजिये !

फिर भरत क्रम से उन स्वप्नों को कहते हैं !

१- पर्वत पर 23 सिंह, २- सिंह के साथ हिरणों का समूह, ३- भारी बोझ से झुकी पीठ वाला घोडा, ४- सूखे पत्ते खाने वाले बकरों का समूह, ५- नाचते भूत, ६- हाथी के ऊपर बैठे वानर, ७- अन्य पक्षियों द्वारा त्रास किया हुआ उलूक, ८- मध्य भाग में सुख हुआ सरोवर, ९- मलिन रत्न राशि, १०- स्वान/कुत्ते का नैवैद्य आदि से सत्कार, ११- तरुण/जवान बैल, १२- मंडल से युक्त चन्द्रमा, १३- शोभा नष्ट २ बैल, १४- मेघों से ढका सूर्य, १५- छाया रहित सुख वृक्ष, और १६- जीर्ण पत्तों का समूह !

इन स्वप्नों के अर्थों का पढ़ना इसलिए और ज्यादा आवश्यक हो जाता है क्यूंकि ये सभी स्वप्न "दूरविपाकी" अर्थात बहुत समय बाद फल देने वाले थे ... जो अब पंचम काल में आकर फलीभूत हो रहे हैं !

- अपने देखे हुए सोलह स्वप्न बता कर भरत कहते हैं कि हे ज्ञानियों में श्रेष्ठ, इन स्वप्नों के फल के विषय में जो मुझे संदेह है, उसे दूर कर दीजिये !

भरत के प्रश्न समाप्त होने पर भगवान अपने वचनरूपी अमृत के सिंचन से समस्त सभा को संतुष्ट करते हुए कहते हैं कि :-

१- पर्वत पर 23 सिंह :- श्री महावीर स्वामी को छोड़कर शेष 23 तीर्थंकरों के समय दुष्ट नयों कि उत्पत्ति नहीं होगी !

२- सिंह के साथ हिरणों का समूह :- भगवान कहते हैं कि इस से प्रकट होता है कि महावीरस्वामी के तीर्थ में परिग्रह को धारण करने वाले अनेकों कुलिंगियों की उत्पत्ति हो जाएगी !

३- बड़े हाथी के उठाने योग्य बोझ से जिसकी पीठ झुक गयी हो ऐसे घोडे के देखने का अर्थ है कि :- पंचम काल के साधु तपश्चरण के समस्त गुणों को धारण करने में समर्थ नहीं हो सकेंगे !
कोई मूलगुण और उत्तरगुणों के पालन करने की प्रतिज्ञा लेकर उनके पालन करने में आलसी हो जायेंगे, कोई उन्हें मूल से ही भंग कर देंगे और कोई उनमे मंदता या उदासीनता को प्राप्त हो जायेंगे !

४- सूखे पत्ते खाने वाले बकरों का समूह देखने से यह मालूम होता है कि :- आगामी काल में सदाचार का अभाव होगा, दुराचारी मनुष्यों की उत्पत्ति होगी !

५- नाचते हुए बहुत से भूतों के देखने से मानना चाहिए कि :- व्यन्तरों को देव समझकर उनकी पूजा होगी !

६- हाथी के ऊपर बैठे वानर को देखने से जान पड़ता है कि :- आगे चलकर क्षत्रिय वंश का नाश हो जायेगा और नीच कुल वाले पृथ्वी का पालन करेंगे !

७- अन्य पक्षियों द्वारा उलूक को त्रास दिया जाना देखने से प्रकट होता है कि :- आगे चलकर मनुष्य धर्म की इच्छा से जैन मुनियों को छोड़कर अन्य मतों के साधुओं के पास जायेंगे !

८- जिसका मध्य भाग सूखा हुआ है और चारों ओर जल भरा हुआ है ऐसा सरोवर दिखाई देने का अर्थ है कि :- आर्यखण्ड में धर्म का अभाव हो जायेगा !

- आज से हज़ारों-लाखों वर्ष पहले देखे हुए इन स्वप्नों के अर्थ हम आज यथार्थ होते देख रहे हैं !
जिन आदिनाथ भगवान ने इन स्वप्नों के अर्थ हमें बतलाये उन्हीं परमवंदनीय भगवान आदिनाथ स्वामीजी ने हमे धर्म पर चलने और मोक्षरुपी महल को पाने का मार्ग भी बतलाया है !
सो जितना हो सके संभल कर समता-परिणाम रखने का तथा शुभ-भावनाएं भाने का प्रयत्न निरंतर करना ही चाहिए !

शेष आठ स्वप्नार्थ कल पढ़ेंगे ...

९- धूल से मलिन हुए रत्नों की राशि देखने से जान पड़ता है कि :- पंचमकाल में ऋद्धिधारी उत्तम मुनियों का अभाव होगा !

१०- आदर-सत्कार से जिसकी पूजा की गई है ऐसे स्वान/कुत्ते को नैवैद्य खाते देखने मालूम होता है कि :- आने वाले समय में व्रत रहित ब्राह्मणों का गुणी पात्रों जैसा सम्मान होगा !

११- तरुण/जवान बैल को चलते देखने का अर्थ है कि :- तरुण अवस्था में ही मुनिपद होगा !

१२- मंडल से युक्त चन्द्रमा दिखाई देने से मानो कि :- पंचमकाल में मुनियों में अवधि एवं मन:पर्यय ज्ञान का अभाव होगा !

१३- परस्पर मिलकर जाते हुए शोभा नष्ट २ बैल देखने का अर्थ है कि :- पंचमकाल में मुनिजन साथ-साथ रहेंगे, एकाकी(अकेले) विहार का अभाव होगा !

१४- मेघों से ढका सूर्य देखने से प्रकट होता है कि :- पंचमकाल में प्राय: केवलज्ञान रूपी सूर्य का उदय नहीं होगा !

१५- छाया रहित सूखा वृक्ष दिखाई देने का अर्थ यह मानो कि :- स्त्री-पुरुषों का चारित्र भ्रष्ट हो जायेगा !

१६- और जीर्ण पत्तों का समूह देखने से मालूम होता है कि :- महाऔषधियों का रस नष्ट होगा !

उस समय भगवान के दिव्यध्वनि को सुनने कि इच्छा से सावधान हुई सभा ऐसी प्रतीत हो रही थी मानो चित्र में बनी हुई हो ...

भगवान आगे कहते हैं कि हे वत्स, इस प्रकार इन स्वप्नों के फल को जानने के बाद यह भी जानो कि यह "दूरविपाकी" स्वप्न हैं माने बहुत समय के बाद फल देने वाले हैं !

इस समय इनका कोई दोष नहीं लगेगा इनका फल पंचमकाल में होगा !

और हुआ भी है, यही सब पंचम काल में हम देख रहे हैं !

- जिन-शास्त्रों में और भी स्वप्नों के कथन आते हैं ! सो आप अवश्य पढ़ें !

- मेरी भावना, बारह भावना, वैराग्य भावना इत्यादि का, पञ्चपरमेष्ठी भगवानों के गुणों का निश्चल तथा निष्काम ह्रदय से निरंतर चिंतवन करना चाहिए