दीवाली / दीपमालिका / दीपावली

# क्या हमे दीवाली मनानी चाहिए ?
हाँ, दीवाली हम जैनियों का एक प्रमुख पर्व है ! हमे इसे उत्साह और श्रद्धापूर्वक मनाना चाहिए !
# हरिवंश पुराण से ज्ञात होता है की, भगवान महावीर स्वामी जी ने सर्वज्ञता की प्राप्ति के बाद भव्यजन को तत्वों का उपदेश देकर, पावानगरी के
"मनोहर" नामक उद्यान से, स्वाति नक्षत्र के उदय होने पर कार्तिक कृष्णा अमावस्या के अत्यंत प्रातः काल की शुभ बेला में "अघातिया कर्मों" को नष्ट करके "सिद्धावस्था/निर्वाण" को प्राप्त किया था !
# उस समय दिव्यात्माओं ने भगवान् की पूजा की और अत्यंत प्रकाशमान जलती हुई प्रदीप-पंक्ति के प्रकाश से आकाश तक पावानगरी सुशोभित हुई !
# उसी दिन शाम को भगवान के प्रथम गणधर गौतम स्वामी ने मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्त किया, और देवों ने रत्न्मयि दीपकों द्वारा प्रकाशोत्सव मनाया !
प्र :- दीवाली कैसे मनाएं ?
उ :- प्रातः काल उठकर, नहा धो कर, स्वच्छ वस्त्र पहन कर, मंदिर में भगवान महावीर की पूजा करनी चाहिए, निर्वाण कल्याणक, निर्वाण क्षेत्र पूजा, निर्वाण काण्ड, महावीराअष्टक बोल कर निर्माण लड्डू के स्थान पर गोला या बादाम चढ़ाना चाहिए !
उसके बाद आरती करनी चाहिए, आरती का अर्थ दिया जलाना नहीं, आरती का अर्थ स्तुति या गुणगान होता है ...
बिना दीपक जलाये आरती करनी चाहिए... और शाम को तो आरती निषेध ही है !!!
फिर ये कल्पना करने की कोशिश करनी है की,
कैसा रहा होगा वो दृश्य, जब भगवान के शरीर से पूरे आसमान को प्रज्वलित करती हुई आत्मा निकली होगी, और सारे देवों ने उस परमात्मा को नमन किया होगा ...
# हठरी, खिलौने सही गलत ???
वैसे तो शास्त्रों में इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता, ना जाने कबसे, किसने ये प्रथा चलाई, किन्तु फिर भी :-
- हठरी, समवसरण का प्रतीक है,
- खिलौने, समवसरण में स्थित लोगों के प्रतीक हैं, और,
- लक्ष्मी, का अर्थ है मोक्ष रुपी लक्ष्मी ...
ये कोई बहस का विषय नहीं है, अपने विवेक को उपयोग में लेते हुए, खुद ही इस विषय पर निर्णय लें...
पर्युषण पर्व, महावीर जयंती की ही तरह दीवाली हमारा प्रमुख पर्व है ... इसे सहर्ष मनाएं !!!