श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज के मंगल प्रवचन 19-02-2018 दिन- सोमवार
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आगम व्यक्तिगत धर्म नहीं दिखाता आगम बस्तुगत धर्म दिखाता है..........🌹
श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, अशोकनगर (म. प्र.) में श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज विराजमान है। आज उन्होंने प्रवचनसार ग्रन्थ की व्याख्या के माध्यम से बताया कि जो जिनदेव, जिन गुरु और जिनवाणी का अबलम्बन लेता है उसे और किसी की आवश्यकता नहीं पड़ती। देव-शास्त्र- गुरु ही सबसे बड़े अबलम्बन है।कुन्द कुन्द देव ने नियमसार ग्रन्थ में ये भी सम्बल दिया है, बल दिया है, ओज दिया है कि देव-शास्त्र- गुरु के अलाबा कोई भी हमारे आलम्बन नहीं है। कुन्द कुन्द स्वामी के पूरे ग्रन्थों का अबलम्बन लेना चाहिए और भेष, देखना, बन्ध करना, आगम देखना प्रारम्भ करना चाहिए।
🍀मुनिश्री ने बताया आगम के देखने के आभाव में हम व्यक्तिगत धर्म देखते है। आगम व्यक्तिगत धर्म नहीं दिखाता आगम बस्तुगत धर्म दिखाता है। व्यक्तिगत धर्म प्रमाणित नहीं है,बस्तुगत धर्म प्रमाणित है इसलिए किसी की रूढ़ियों को नहीं स्वीकारना, किसी की परम्परा को नहीं स्वीकारना, किसी की विपर्याश को नहीं स्वीकारना।
🍀मुनिश्री ने बताया वैराग्य सरल है बस्तु का निर्णय करना कठिन है ।चारित्र कठिन है वैराग्य सरल है। वैराग्य जब तक न हो तब तक चारित्र नहीं आता, वैराग्य हीन चारित्रवान उसी तरह है जैसे की आचार्य कुन्द कुन्द स्वामी ने रयणसार ग्रन्थ में कहा है-
'"विणओ भत्ति विहीणो,
महिलाणं रोदणं विणा णेहं।
चागो वेरग्ग विणा,
एदेदो वारिया भणिदा।।"
रयणसार ग्रन्थ में बताया गया है कि भक्ति से रहित विनय, स्नेह के बिना महिलाओं का रोना, और वैराग्य के बिना चारित्र सम्भव ही नहीं है। मुनि के सामने सर पटक रहा है, हाँथ जोड़ रहा है, नमोस्तु- नमोस्तु पर भीतर भक्ति नहीं है। भक्ति से विहीन विनय और वैराग्य से विहीन चारित्र कैसे? जैसे महिलाओं का बिना स्नेह का रोना ।यह मैं नहीं कह रहा कुन्द कुन्द देव कह रहे है। जब कभी इनको अपना काम बनाना होता है तो गंगा जमना की धारा बहने लग गई और काम बन गया ,पता नहीं कहाँ गये आँशु, बिना स्नेह के आँशु।
🍀मुनिश्री ने बताया बड़े -बड़े सहरो में रोने बाले किराए भराते है। जैसे भजनकार, संगीतकार किराए पर बुला लेते हो तो वैसे ही किसी की मृत्यु हो गई तो वे रोने बाले किराए पर बुलाते है। बे सच में नहीं रोतीं ,सच में आँशु बहाने लगी तो उनकी आँखें खराब हो जायेगी। हाव भाव प्रकट करती है ,खूब छाती कूट रही है पर स्नेह नहीं है ।उसी प्रकार वैराग्य के आभाव में चारित्र और बिना स्नेह के माताओं का रोना व्यर्थ है ऐसा समझना चाहिये।
🍀मुनिश्री ने बताया वैराग्य के आभाव में भेष बना लेना ये आजीविका का साधन है ।जीवन जीने की शैली है और वैराग्य सहित चारित्र जन्म मरण से रहित होने की शैली है इसलिये कहा गया वैराग्य सरल है चारित्र कठिन है। तत्व निर्णय कठिन है।
🍀मुनिश्री ने बताया यदि तुम्हे वैराग्य होता है तो तू मुनि तो बन जायेगा ,बस्त्र तो उतार लेगा लेकिन पंथ के कपड़े नहीं उतार पायेगा। इसलिये सबसे पहले पंथ के कपड़े उतारने की आवश्यकता है । वैराग्य हुआ है पर तत्व का निर्णय वैराग्य से कठिन है ।यदि तू अपने पंथ के कपड़े नहीं उतार पाया तो भैया तुझे वैरागी तो कह दूँगा पर सम्यक चारित्रवान नहीं कह पाऊँगा। चाहे वो तेरह बाला हो या बीस बाला हो। मतलब तेरह पंथी हो या बीस पंथी हो ।किसी भी पंथ का पुरुष होगा उसको वैराग्य हो जाये ,कपड़े उतार लेगा, मुनि बन जायेगा ,निर्दोष संयम पालने लग जायेगा पर पंथ का राग मुझे टपकते दिखेगा मैं उसको स्पष्ट बता सकता हूँ। भैया! अभी उसको तत्व का निर्णय नहीं हुआ है ,वस्त्रों से रहित हुआ है पंथ से रहित नहीं हुआ ।
🍀मुनिश्री ने कहा जब तक पंथ से रहित नहीं होगा तब तक जिन शासन में भाव लिंगि मुनि नहीं बन सकता है। गुरु परम्परा वही होती है जो आगम परम्परा है और आगम से रहित परम्परा है उसे मैं गुरु परम्परा नहीं मानता व्यक्तिगत परम्परा मानता हूँ।
🍀मुनिश्री ने बताया आगम , आगम है। आगम व्यक्तिगत नहीं चलता ।जैसे की आज वर्तमान में महराज शब्द कहने की परम्परा प्रारम्भ हो गई है लेकिन महाराज शब्द हमारी दिगम्बर जैन आमना में नहीं आता। किसी भी आगम ग्रन्थों में महराज शब्द का उल्लेख नहीं आता है ।हमारे यहाँ ऋषि, मुनि, यति, अनगर, पूलाक, बकुश, निरग्रंथ ,स्नातक, आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, सेक्ष, गिलान, गुण, संघ, साधु ,मनोज्ञ, ऋषिवर, मुनिवर, यतिवर, गुरुवर, मुनिश्री इन शब्दों का प्रयोग दिगम्बर जैन साधु के लिए प्रयोग किया गया। कहीँ भी महराज शब्द का उल्लेख नहीं आया।वैष्णो साम्प्रदाय का शब्द महराज शब्द है ।दिगम्बर जैन आमना का शब्द महराज नहीं है। कोई भी आये और कुछ भी बताये स्वीकार न करे ।पहले आगम को देखे अगर आगम प्रमाणित बात है तो उसको स्वीकार करे वरना कोई भी अपनी आकर परम्परा चला सकता है और आप उसको मानना प्रारम्भ कर देगें ?नहीं आगम को प्रमाण माने, आगम को ही जाने, समझे ,सुने ,गुने और जीवन में उतारने का अभ्यास करें।🌹🌹