श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज के मंगल प्रवचन 04-02-2018 दिन- रविवार
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हम महावीर को तो मानते है पर उनकी नहीं मानते.......🖋
श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र ,प्राणपुर, चन्देरी, जिला- अशोकनगर (म. प्र.) में श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज विराजमान है ।आज उनके पावन सांन्निध्य में मन्दिर जी के वार्षिक विमानोत्सव निकाले गए और मानस्तम्भ का महामस्तकाभिषेक किया गया।
मुनिश्री ने बताया पञ्च कल्याणक की स्मृति में जो मन्दिर जी में मानस्तम्भ में महामस्तकाभिषेक किया जाता है और हर वर्ष विमानोत्सव निकाला जाता है ।वह धर्म की प्रभावना के लिए बहुत ही सराहनीय कार्य है। इन कार्यो से धर्म की प्रभावना होती है चाहे वह नगर में रथ यात्रा का कार्यक्रम हो या कोई बड़ा विधान ,अनुष्ठान किया जा रहा हो, या को पञ्च कल्याणक कराया जा रहा हो। श्रुत पंचमी के पावन अवशर पर जिनवाणी की पालकी महोत्सव निकाला जा रहा हो ,या पञ्च कल्याणक की वर्षगाठ पर विमानोत्सव निकाला जा रहा हो। नगर में गुरुओं का आगमन हो रहा हो ,सारी समाज एक जुट होकर जो धार्मिक अनुष्ठान करती है ,इससे जिन धर्म की अनन्य प्रभावना होती है। यह मन्दिर बड़ा ही प्राचीन है और जो जिनेन्द्र भगवान विराजमान है वह भी बहुत प्राचीन है। कुछ प्रतिमायें तो लगभग 1825 वर्ष प्राचीन है जो बड़ी ही मनोज्ञ है। उन प्रतिमाओं के दर्शन करके मन आनन्द से प्रफुल्लित हो जाता है।
मुनिश्री ने बताया आदिनाथ भगवान ,जब उन्होंने दीक्षा ली तो उन्होंने जीवन जीने के लिए श्रावकों को पाँच बाते बताई अगर खुश रहना चाहते हो तो इन पाँच बातो को हमेशा याद रखना-
🌼1. अपने आपको बदलो दूसरे को बदलने की कोशिश मत करो ।ये पहली बात बताई।
🌼2. अपना काम स्वयं करो।
🌼3. स्वतंत्र रहना।
🌼4. स्वछंद मत बन जाना।
🌼5. जहाँ रहो जिस स्थिति में रहो सदा मुस्कराते रहो।
इन पाँच बातो को आदिनाथ भगवान ने बताया जो इन बातों को अपने जीवन में अपना लेगा वह बड़ा ही खुश, प्रसन्न और संतोषित रहेगा।
मुनिश्री ने महावीर भगवान के सिद्धांत की चर्चा करते हुए बताया महावीर भगवान ने पांच सिद्धान्तों को बताया-
🍁अहिंसा
🍁सत्य
🍁अस्तेय
🍁ब्रह्मचर्य,और
🍁अपरिग्रह
इन पाँच सिद्धान्तों को जीवन में तभी अपनाया जा सकता है जब हम पाँच पापो का त्याग कर दे। आज व्यक्ति पाँच पापो में तो रत रहता है लेकिन महावीर के पाँच सिद्धान्तों को अपनाने का प्रयाश नहीं करता। यदि उन पाँच सिद्धान्तों को अपना लिया जाये तो गाँव, कसवा, शहर ,जिला, प्रान्त, देश और विश्व में शान्ति स्थापित हो जायेगी ।न किसी फ़ौज की आवश्यकता ,न पुलिश की आवश्यकता ,न जेल की आवश्यकता पड़ेगी बस इन पाँच सिद्धान्तों को अपना लिया जाये ।लेकिन आज सबसे बड़ी बिडम्बना यही है कि किसी भी धर्म का अनुयायी हो वह अपने भगवान को तो मानता है पर उनकी नहीं मानता ।उन्होंने जो बताया उसको जीवन में अपनाने का प्रयाश नहीं करता। धर्म की प्रभावना तभी है जब भगवान के साथ -साथ हम भगवान की भी माने ,जो भगवान ने उपदेश दिया उन सूत्रों को अपने जीवन में उतारने का प्रयाश करें।
मुनिश्री ने बताया हम भगवान के मात्र चरणों को ही पूजते न रह जाये ।चरणों को पूजने से कभी आत्मा का कल्याण नहीं होता। चरणों के साथ- साथ आचरण को पूजे ,जीवन में उतारे ।जैन दर्शन चहरे की पूजा नहीं करता ,चरणों की पूजा नहीं करता, नाम की पूजा नहीं करता अपितु गुणों की पूजा करता है। जिसके पास गुण विद्यमान है वह पुज्यनीय है चाहे वह कोई भी हो। जब भगवान को पूजते है तो वीतरागता, सर्वज्ञपना और हितोपदेशीपना ये तीन गुण होना अनिवार्य है। जब साधु को नमस्कार करते है या पूज्य मानते है तो उसमें भी तीन गुण होते है- जो विषय और आशा से रहित है, आरम्भ परिग्रह से रहित है, और ज्ञान -ध्यान -तप में लवलीन है वही साधु पूज्य है। उसी प्रकार धर्म में भी तीन गुण पाए जाते है- जो अहिंसा से सहित हो ,सत्य से सहित हो ,और संयम से सहित हो वही उत्कृष्ट धर्म है ,वही मंगल है और वही आत्मा को परमात्मा बनाने में सहकारी है। कहने का मतलब जैनागम गुणों पर आधारित है, गुणों से वंदनीय है, जिसके पास गुण है वह वंदना के योग्य बनता है। चरण कैसे भी हो आचरण सुन्दर होना चाहिए। जिसका आचरण और चारित्र सुन्दर है उसका जीवन आदरणीय, पूजनीय, वंदनीय ,सम्मानीय बन जाता है इसलिए भगवान के साथ- साथ भगवान की भी माने। किसी भी धर्म में ,किसी भी भगवान ने ये नहीं कहाँ की आप हिंसा करे, झूठ बोले, चोरी करे, कुशील करे, परिग्रह करे किसी भी धर्म में नहीं कहा गया है। सभी धर्मों में शान्ति स्थापित की गई है इसलिए सभी अपने जीवन में अहिंसा धर्म को अपनाए।
मुनिश्री ने बताया आज विमानोत्सव निकाला गया साडी समाज एक जुट होकर इस कार्यक्रम में जो उपस्थित हुए और बाहर के सभी गाँव के जो भी इस कार्यक्रम में आये है निश्चित ही वो धर्म प्रभावना का अंग है। सम्यग्दर्शन के आठ अंगों में आठवां अंग है प्रभावना अंग ।इसका तातपर्य एन केन प्रकारेण कैसे भी हो जिन धर्म की प्रभावना होनी चाहिए। आज महती प्रभावना हुई और मानस्तम्भ के श्री जी का अभिषेक किया गया। सभी लोगो ने निश्चित ही पुण्य का अर्जन किया। अंत में मुनिश्री ने सभी को बहुत -बहुत आशिर्बाद प्रदान किया।🍂🍂
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