श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज के मंगल प्रवचन 26-02-2018 दिन- सोमवार
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नहीं सताऊं किसी जीव को झूठ कभी नहीं कहा करू .........🌿
श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर अशोकनगर (म. प्रदेश) में श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज ने मेरी भावना के ऊपर अपना मंगल प्रवचन देते हुए बताया कि महावीर भगवान के पांच सिद्धान्त - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ।इन पाँच सिद्धान्तों को जो जीवन में अपना ले वह व्यक्ति दुखी नही रह सकता। ये पांच सिद्धान्त 24 तीर्थंकरों में पहले तीर्थंकर आदिनाथ ने और उनके बाद जो तीर्थंकर भगवान हुए इन सभी ने इनका उपदेश दिया।
🌼मुनिश्री ने बताया कि यदि आप इन पांच सिद्धान्तों को अपने जीवन मे अपना ले तो न ही किसी पुलिश की आवश्यकता पड़ेगी,न वकील की न अदालत की ,न कोतवाली की ,न जेल की ,न ही मिलेट्री की, न बोडर की किसी भी चीज की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।सारे संसार मे शांति का वातावरण अपने आप ही आ जायेगा जहाँ इन सिंद्धातों को अपना लिया ।
🌼मुनिश्री ने बताया के महावीर के पांच सिद्धात थे उन पांच सिधांतों को आज व्यक्तियों ने पांच पापो में परिवर्तित कर दिया। अहिंसा में से अ निकाला तो हिंसा  करने लगे। दूसरा सिद्धान्त सत्य था उसमें अ जोड़ दिया तो असत्य  हो गया। तीसरा सिद्धान्त में अचौर्य में अ निकाल दिया तो चोरी करने लगे। चौथा सिद्धान्त ब्रह्मचर्य था उसमें अ जोड़ दिया तो अब्रह्मचर्य अर्थात कुशील करने लगे और पांचवा सिद्धान्त अपरिग्रह था उसमें से अ निकाला तो परिग्रह करने में आसक्त हो गए। अर्थात पांच पाप आज हर व्यक्ति करने को ततपर है।
🌼मुनिश्री ने बताया आगम में चार प्रकार की हिंसा का वर्णन है ।पहली हिंसा आरंभी हिंसा - हम घर गृहस्थी के जो काम करते है उन सब में आरम्भ ही कराता है। कपड़े धोने, बर्तन माँजना ,साफ सफाई करना रोटी बनाना आदी कोई भी क्रियाये वो सब आरंभी हिंसा के अंतर्गत आता है। जिनका गृहस्थ जीवन में रहने वाले त्याग नहीं कर सकते। दूसरी हिंसा है उद्योगी हिंसा- इसका तातपर्य व्यापार सम्बन्धी हिंसा ।जब व्यक्ति व्यापार करता है तो उसमें जो हिंसा होती है वह उद्योगी हिंसा कहलाती है। उसका भी त्याग नही कर सकता। तीसरी हिंसा है विरोधी हिंसा- जब कोई आपको मारने को तैयार होता है तो अपने बचाब के लिए यदि आपके द्वारा हिंसा हो जाती है तो वह विरोधी हिंसा कहलाती है। जिसका त्याग भी श्रावक नही कर सकता  लेकिन चौथी हिंसा संकल्पी हिंसा- जिसका हर श्रावक को त्याग करना ही चाहिए ।संकल्प पूर्वक किसी जीव को नहीं मारना चाहिए ।चाहे वह कोई भी जीव हो उन सभी जीव जंतुओं को गृहस्थ जीवन मे आपके द्वारा हिंसा पहुँच जाती है तो भगवान की वाणी कहती है कम से कम श्रावक को संकल्प पूर्वक इन जीवों की हिंसा नहीं करनी चाहिए।
🌼मुनिश्री ने बताया पांच पापो को सर्व देश त्याग करना महाव्रत कहलाता है और एक देश त्याग करना अणु व्रत कहलाता है। मुनिराज महाव्रत के धारी होते है और श्रावक अणु व्रत के धारी होते है। जैन धर्म का सार ही यही है अहिंसा का पालन करना ।आप कोई भी क्रिया करते है उन सारी क्रियाओं का सार एक ही है अहिंसा इसी धर्म का पालन करने के लिए श्रावक को अष्टमूल गुण का विधान है अर्थात मूलगुण पालन करना चाहिए ।
🌼मुनिश्री ने विस्तार से आठ मूलगुण के संस्कार बताते हुए कहा कि जब बच्चा 45 दिन का होता है और उसको सबसे पहले जिनेन्द्र भगवान के दर्शन कराए जाते है तो आठ मूलगुण के संस्कार दिए जाते है। उसके मस्तक पर स्वस्तिक बनाकर पुष्पो का क्षेपण करके उसके कान में णमोकार मन्त्र ,चत्तारि मंगल पाठ और  शांति पाठ सुनाया जाता है और उसका नामकरण संस्कार करके आठ मूलगुण के संस्कार दिए जाते है। जब बच्चा आठ वर्ष का होता है तो पुनः उपनयन और यग्योपवीत नाम का संस्कार किये जाते है ।उसका मुंडन कराया जाता है और स्वस्तिक बनाकर उसके मस्तक पर पुष्पो का क्षेपण करके पुनः आठ मूलगुण के संस्कार दिए जाते है। इसके बाद जब बच्चा 21 वर्ष का हो जाता है जब वह अपना बांप्रस्थ आश्रम छोड़कर गृहस्थ आश्रम में प्रेवेश करता है तो पुनः उसके संस्कार किये जाते है जो आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने रत्नकरंडक श्रावकाचार में बताए है। मद्य, मांस ,मधु का त्याग और पांच अणुव्रतों का पालन करना ये आठ मूलगुण के संस्कार गृहस्थ जीवन मे रहने बाले श्रावक को करना चाहिए। इसी का ही सार पं. जुगल किशोर मुक्ततार जी ने मेरी भावना के माध्यम से बताया और कहा -' नहीं सताऊं किसी जीव को' जिनागम किसी को मारने के लिए हिंसा मात्र नही कहता मारने के मात्र विचार आने को भी हिंसा कहता है। एक द्रव हिंसा होती है और एक भाव हिंसा होती है ।द्रव हिंसा हाँथ से मारना ,द्रव्य से मारना ओर भाव हिंसा मन में मारने के भाव बना लेना ।आज  देश की सरकार अपराध की सजा तो दे देती है लेकिन पाप की सजा नहीं दे सकती। अपराध प्रकट हो जाता है ,पाप प्रकट नहीं हो पाता। अपराध जब सामने आ जाता है जब कोई मनुष्य को मार दिया जाए तो सरकार अपराधी को आजीवन कारागार या फाँसी की सजा सुना देती है या 20 साल, 25 साल, या 30 साल की कैद सुना देती है लेकिन तिर्यंच गति के जीवों को जब लोग मरते है तब उन्हें कोई सरकार सजा नहीं देती। न जाने हमारे द्वारा प्रतिदिन कितने हजारो ,लाखो लोगो की हिंसा होती है ।कितने ही छोटे -छोटे सूक्ष्म जीव मारे जाते है। उनकी सजा कोई सरकार नहीं देती लेकिन उनकी सजा हमारे कर्म देते है। हम जैसे कर्म करते है वैसा फल हमें भोगना ही पड़ता है।
🌼मुनिश्री ने बताया पं. जुगल किशोर मुक्ततार जी ने मेरी भावना के माध्यम से मात्र दो लाइनों में पांच महाव्रत और पांच अणुव्रत का वर्णन दे दिया। श्रावक गृहस्थ जीवन मे रहे तो किसी जीव को सताए न चाहे वो छोटे से छोटा कोई जीव न हो ।उत्कृष्ट संयमधारी कोई मुनिराज एक चीटी और साँप में भी अंतर नही समझते ।दोनो को समान मानते है और किसी को कष्ट नही पहुँचाते है। झूठ कभी नही बोलना ।मुनिराज को बोलने के लिए सत्य महाव्रत भाषा समिति, उत्तम सत्य धर्म, और वचन गुप्ति इन चार बातों को ध्यान में रखते हुए कुछ बोलने का निर्देश दिया गया ।श्रावक भी अपने विवेक को ध्यान में रख कर शब्दो को बोले ओर सत्य बोले। तीसरा व्रत बताते हुए कहा -'पर धन वनिता पर न लुभाऊ ,सन्तोषअमृत पिया करू' अर्थात दुसरो का धन न चुरा लू ,दूसरे की स्त्री को अपनी स्त्री न बना लू ,उसको लुभाऊ न, आकर्षित न बना लू अर्थात अचौर्य ओर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करू और पांचवा व्रत है परिग्रह प्रमाण व्रत अर्थात सन्तोषअमृत पिया करू अर्थात जो है ,जितना है, उस मे ही सन्तोष रखु, उसमे ही खुश रहूं। खुश रहने के लिए अपने से ऊपर बाले को मत देखो ,अपने से नीचे बाले को देखो जब व्यक्ति अपने से नीचे बाले को देखता है तो प्रसन्न रहता है और अपने से ऊपर बाले को देखता है तो दुखी होता है ,कष्ट होता है इसलिए जीवन मे खुश रहने का प्रयाश करना चाहिए और खुश रहना चाहिए इसलिए महावीर भगवान के इन पांच सिद्धान्तों को अपने जीवन मे अपनाने का प्रयाश करना चाहिए ।
🌼सनचालक जी ने बताया कल प्रातः काल आठ बजे से पुज्य विभंजनसागर जी मुनिराज का 7 वां मुनि दीक्षा दिवस बड़े हर्षोल्लास के साथ बड़े मन्दिर प्रांगण में मनाया जाएगा। आप सभी आये और उस संयम दिवस को बड़े धूमधाम से मनाए। जिसमे मुनिश्री को संयम का उपकरण पिच्छिका भेंट की जाएगी और मुनिश्री के द्वारा मंगल आशीर्वाद दिया जाएगा।🌿🌿🌿