श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज के मंगल प्रवचन 15-01-2018 दिन- सोमवार
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आदिनाथ भगवान का मोक्ष कल्याणक महोत्सव हर्षोल्लाश से मनाया गया........
अपना काम स्वयं करो और अपने को बदलो......✍🏻🌹🖋🌹🖋🌹
श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज ससंघ श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, ललितपुर ,(उ. प्र.) में विराजमान है। आज मुनि श्री के ससंघ सान्निध्य में मन्दिर जी में 1008 आदिनाथ भगवान का मोक्ष कल्याणक महोत्सव बड़े हर्षोल्लाश के साथ मनाया गया। जिसमे नित्य नियम अभिषेक, शांतिधारा के पश्चात सामूहिक पूजन हुई और निर्वाण काण्ड बोलकर 11 किलो का निर्वाह लाडू भगवान के श्री चरणों में समर्पित किया गया। चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलन ,शास्त्र भेंट होने के पश्चात मुनिश्री द्वारा निकाली गई "वरांग चरित्र" एवं "समग्र" प्रतियोगिता का विमोचन किया गया ,उसके बाद मुनिश्री की मंगल देशना सभी भक्तों को सुनने को मिली।
मुनिश्री ने कहा तृतीय काल में जब कृत योग का प्रारम्भ हो रहा था उस समय सर्व प्रथम इस युग के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान का जन्म हुआ और 84 लाख वर्ष पूर्व की आयु होने के पश्चात तृतीय काल में ही आदिनाथ भगवान को निर्वाण पद की प्राप्ति हुई। 83 लाख वर्ष पूर्व उन्होंने ग्रहस्थ जीवन में निकाला ।उसके बाद दिगम्बर मुनि दीक्षा लेकर इस सृष्टि में विचरण करके मुनि चर्या और मुनि धर्म का उपदेश देकर श्रमण धर्म की परम्परा को आगे बढ़ाया। तृतीय काल में ही भरत भगवान, बाहुबली भगवान, अनन्त वीर्य भगवान बनकर मोक्ष हुआ ।उनके पश्चात चतुर्थ काल में अजित नाथ भगवान से लेकर महाबीर भगवान तक 23 तीर्थंकर और हुए और उनके मध्य अनन्त मुनियो ने कर्म निर्जरा करके निर्वाण पद को प्राप्त किया। सिद्ध पद प्राप्त किया ।माघ कृष्णना चतुर्दशी का दिन जब आदिनाथ भगवान ने अपने अष्ट कर्मो को क्षय करके सिद्ध अवस्था प्राप्त की वो आज का ही दिन है ।भगवान ने जिनागम के सूत्र बताये ,जिनागम के सूत्र के साथ- साथ उनकी पाँच बाते जो सभी श्रावको के लिए ग्रहण करने योग्य है। आदिनाथ भगवान ने कहा- पहली बात अपने को बदलो दूसरे को बदलने की कोशिश मत करो। आज हर व्यक्ति दूसरे को बदलने का प्रयाश करता है ,दूसरे को अपने अनुशार चलाना चाहता है पर स्वयं नहीं बदलना चाहता।
मुनिश्री ने कहा जिनको घुट- घुट कर इज्जत का समापन करके मरना ही वे खूब बड़- बड़ करना सीख ले और जिनको सम्मान के साथ मरना हो वे कम बोलना प्रारम्भ कर दे ।बहुत सारे बिशी देख कर के अनदेखा करना सीख ले ,सम्मान के साथ मरण होगा। हर व्यक्ति किसी न किसी से अपेक्षा रखता है और दूसरे को बदलने की कोशिश करता है ।बहुत बोलता है, बहुत बोलता है और जब व्यक्ति आवश्यकता से अधिक बोलता है तो वह व्यक्ति यह नहीं देखता- वह कहा है ? किस स्थान पर है? किसके सामने है? क्या बोल रहा है? सब कुछ भूल जाता है इसलिए कम बोलो आवश्यकता पड़ने पर ही बोलो ।पहले स्वयं सुधरो बाद में दूसरे को सुधारने की कोशिश करना। जिस व्यक्ति की जैसी दृष्टि होती है उसको वैसी सृष्टि नजर आती है ।अपनी दृष्टि को बदले सृष्टि बदली नजर आएगी। आदिनाथ भगवान ने दूसरी बात कही - अपना काम स्वयं करो किसी दूसरे पर मत डालो ,जितना काम है, जो काम है स्वयं करो किसी से अपेक्षा मत रखो। यदि अपेक्षा रखोगे तो उसकी उपेक्षा हो जायेगी और जब उपेक्षा होती है तो दुःख होता है, कष्ट होता है, पीड़ा होती है ,वेदना होती है इसलिए अपना काम स्वयं करो ।आदिनाथ भगवान ने तीसरी बात कही -स्वतंत्र रहो। जैनों के व्यापार स्वतंत्र हुआ करते थे और जैन स्वतंत्र हुआ करते थे ।क्या करना? कहाँ जाना? क्या खाना -? क्या पीना? क्या पहनना ? सब कुछ स्वतंत्र रहते थे। किसी की गुलामी नहीं करते थे ,अपना व्यापार करते थे ,स्वतंत्र रहते थे इसलिए आदिनाथ भगवान ने कहा स्वतंत्र रहना चाहिए। लेकिन जब आदिनाथ भगवान ने चौथी बात कही तो उन्होंने कहा स्वत्रन्त्र तो रहना पर स्वछंद मत बन जाना। स्वछंद का मतलब होता है मनमानी करने ।स्वतंत्र रहिये खाने, पीने, चलने, उठने ,बैठने में लेकिन मनमानी मत करिए ।अपने बड़ो का सम्मान करना चाहिए ,बड़ो की बात मानना चाहिए, उनके अनुसार चलना चाहिए । और अंतिम पाँचवी बात आदिनाथ भगवान ने कही जहाँ रहो जैसी स्थिति में रहो सदा मुस्कराते रहो । आपके जीवन में परेशानियां आएगी उन परेशानियों में ,दुःख में, संकटो में, पीड़ा में, वेदना में खुश रहना सीख जाओ। जो व्यक्ति दुःख में भी खुश रहता है वह व्यक्ति सफलता को प्राप्त करता है।"दुःख आया है तो जायेगा , दुःख जेएगा तो सुख देकर ,और सुख आया है तो जायेगा, सुख जायेगा दुःख देकर " ये तो जीवन के दो पहलू है । सुख दुःख का आना जाना लगा रहता है इसलिए आदिनाथ भगवान की इन पाँच बातो को आज स्मरण में लाइए और अपने जीवन में उतारिये आपका जीवन उन्नति की ओर अग्रसर होगा ।लेकिन आप भी आदिनाथ भगवान के बताए हुए मार्ग पर चल कर उन जैसे मोक्ष पद को प्राप्त करेंगे।
संचालक जी ने बताया कि वरांग चरित्र एवं समग्र प्रतियोगिता का विमोचन -श्री विनय जैन श्री मति रजनी जैन दिल्ली, श्री मंदिर जी के द्वय प्रबन्दक श्री भगवानदास जी, श्री कपूर चंद जी, एवं श्री सुन्दर लाल जी अनोरा, श्री अखिलेश गदयान,
पंडित निहाल चंद जी,
श्री मान धन्य कुमार जी एडबोकेट जी ने किया इसके पश्चात दिल्ली से आये अतिथि श्री विनय जैन श्री मति रजनी जैन का सम्मानकिया गया मुनि श्री को शास्त्र भेट भी श्री विनय जी रजनी जी ने किया
कार्यक्रम का मंच संचालन- चंचल जैन पहलवान ने किया।
इसके पश्चात मुनि श्री विश्वाक्ष सागर जी के केशलोंच सम्पन्न हुए।
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