श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज के मंगल प्रवचन 29-01-2018 दिन- सोमवार
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फैले प्रेम परसपर जग में, मोह दूर ही रहा करे.......🖋
श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अटा मन्दिर, ललितपुर (उ. प्र.) में श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज ने मेरी भावना के अंतिम काव्य पर अपने मंगल प्रवचन देते हुए बताया कि वे लोग श्रेष्ठ और महान होते है जो एक साथ संगठन में रहते है। वे अच्छे नहीं माने जाते जो चार होने पर चार दिशाओ में जाते है। रथ के चार पहिए यदि चार दिशाओँ में जाने लगे तो रथ गन्तव्य स्थल तक नहीं पहुँच सकता व उसमे बैठने वाला भी असुरक्षित हो जायेगा, उसी प्रकार एक परिवार के चार सदस्य चार दिशाओँ में जाये तो परिवार की अविनाती हो जाती है।
मुनिश्री ने बताया जुड़ना कठिन है टूटना आसान है ।यदि परिवार के सदस्य ठान ले की हम कभी नहीं टूटेंगे तो स्वर्ग का देव भी नहीं तोड़ सकता। चार रस्सियां संगठित हो जाये तो रस्सा बन जाता है और उसे फिर हाथी जैसे बलशाली प्राणी भी नहीं तोड़ पाते। यदि वे रस्सियां अलग -अलग हो तो आसानी से तोडा जा सकता है। अंग्रजो ने तोड़ने का ही काम किया और 'फूट डालो ,राज करो' नीति के द्वारा देश को परतंत्र कर दिया। फूट अच्छी नहीं होती है ,घर में यदि फूट हो जाते तो वह घर तहस- नहस हो जाता है।
मुनिश्री ने बताया रावण विद्वान् राजा था साडी उपलब्धियां थी ,अक्षुणी सेना थी पर उसे भी घर के भेदी के द्वारा ही मृत्यु को प्राप्त होना पड़ा। शत्रु भी हो तो भी वह शत्रु को छल कपट से नहीं मरता था ,यद्ध भी नीति के अनुसार होते थे। विभीषण ने जब राम, लक्षमण में पास जाकर रावण के उस रहस्य को बताया तब विभीषण सोचता है कि एक ओर न्याय नीति है दूसरी ओर समर्पण, व धर्म है। न्याय नीति कहती है कि पक्ष भई का लेना चाहिए। धर्म व समर्पण कहता है पक्ष राम का रख्खू, जो भी हो जिसके प्रति समर्पित हुए है उसी का पक्ष रखने चाहिए। यद्यपि विभीषण ने न्याय का पक्ष लिया था फिर भी कुल कलंकी के नाम से जाना जाता है ।विभीषण के कारण ही रावण का मरण हुआ। भेद कहि का भी हो भेद व्यक्ति को तोड़ देता है।
मुनिश्री ने बताया चार प्रकार के न्यायों में एक भेद नीति होती है,जब कोई सेना कमजोर होती है तो भेद नीति अपनाती है -शाम ,दाम, दण्ड व भेद के रूप से चार प्रकार की नीतियां होती है। अंग्रेजो ने फूट डालो राज करो की नीति अपनाई थी ।आज हमारे परिवार में भी गम्भीरता नहीं रह पाती घर- घर में विवाद खड़े हो जाते है ।भाई -भाई में, पिता- पुत्र में, चाचा- भतीजे में, मामा- भान्जे में, देवरानी -जेठानी में, माँ- बेटे में झगड़े होते है ।वहाँ हर्ष व आनन्द समाप्त हो जाता है ।घर के झगड़े बाहर होते है तो पड़ोसी आनंद मनाता है। ऐसे कदम उठाओ की घर के झगड़े बाहर नहीं अपितु घर के लोग ही समाप्त कर सकते है। ऐसे कदम उठा सकते है कि झगड़े ही न हो। सहनशीलता ,गम्भीरता रखें। एक पक्ष गर्म हो व् दूसरा भी गर्म हो जाये तो गरमा- गर्मी में विसंवाद बाड जाता है।
मुनिश्री ने बताया प्रेम व स्नेह ,करुणा व दया से उत्पन्न होता है । दयालु का सारा वातावरण दया से भीग जाता है। दयालु को देख लोगो का डर ,भय, शत्रुता समाप्त हो जाती है। महावीर भगवान ने जब दीक्षा ली तो उनके पास जन्म जात के बैरी भी शेर गाय एक घाट पर पानी पीते हुए देखे जाते थे। जहाँ सीता जी वृक्ष के नीचे बैठती थी उनके चारो ओर जानवर बैठा करते थे। हमारे देश के नेता चाचा नेहरू भी जहाँ जाते थे उनके हाँथ पर कबूतर आके बैठ जाता ,वो बच्चो से बहुत प्यार करते थे। आगम में गाय व बछड़े का उदाहरण वात्सल्य के रूप में शास्त्रो में कहा गया है ।सम्यग्दृष्टियो के अन्दर धर्मात्माओं के प्रति अन्तरंग प्रेम होता है ,धर्मात्मा के कष्ट को देखकर दूसरा धर्मात्मा ही पिघलता है। जैसे अकम्पनाचार्य आदि 700 मुनिराजों पर जब उपसर्ग हुआ तो विष्णुकुमार मुनिराज ने आकर उनके उपसर्ग को दूर किया। यही वात्सल्य अंग कहलाता है।
मुनिश्री ने बताया मात्र दुसरो के प्रति निस्वार्थ प्रेम, सेवा, दुसरो के दुःख में मलहम पट्टी करने की भावना जगे तो हमारा जीवन सार्थक होगा। आज का व्यक्ति सहयोग तो करता है परन्तु दुसरो के सम्मान को गिरा कर उसको बेइज्जत कर के, गुप्त रूप में नहीं करता ।बहुत बड़ा मंच बना हो ,मंच पर उसे बुलाया जाएगा और फिर उसकी कमजोरी बताई जायेगी उसके बाद उसका सम्मान किया जाता है।
मुनिश्री ने बताया कि प्रेम व्यवहार श्रेष्ठ है ,यही इस पंक्ति का सारांश है। कवि भावना भा रहा है -सर्वत्र प्रेम फैल जाये ,सारा संसार प्रेम भाव से युक्त हो जेर। परन्तु मोह हो की आत्मा का अहित करता है, दूर ही बना रहे। प्रेम उदारता का सूचक है जबकि मोह में सनकीर्ड्ता है, प्रेम से विशुद्धि अंश जगते है जबकि मोह विशुद्धि का विनाश कर देता है, प्रेम आत्मा शक्ति को अद्भुत करता है तो मोह आत्मा की शक्ति को क्षीण कर देता है इसलिए सारे संसार में प्रेम की सुगंध तो फैले परन्तु मोह जाल न फैले। प्रेम उत्थान के रास्ते को उद्घाटित करता है ,दो टूटे हृदयों को जोड़ नई उपलब्धि कराता है। सच्चा प्रेम है तो सारे रास्ते आसान हो जाते है ,सहयोग मिलता है। यदि तुम पुरुषार्थी हो तो घवराओ नहीं ,कुछ लोग पुरुषरार्थ तो करते है परन्तु भाग्य साथ नहीं देता तो वे घवराने लगते है। किसी भी परिस्थिति से घवराना नहीं चाहिए। घवराहट से समस्या हल नहीं होती। शान्ति से रास्ते निकालने चाहिए।
मुनिश्री ने बताया हम जितना अच्छा सोचते है उतना ही बुरा होता है यह अधिक समय तक नहीं चलेगा ।आपकी सोच अच्छी है तो बुरा नहीं होगा। समय बदलेगा तो सोच भी बदल जायेगी फिर वह इतना पिघल जायेगा की आपकी कल्पना के बाहर होगा। हमारी व्यवहारिकता में प्रेम भरा व्यवहार हो रुखा नहीं होना चाहिए। इसलिये किसी ने जय जिनेन्द्र कहा तो आप भी उसको जय जिनेन्द्र करे। किसी के पूछने से दुःख न घटता है, न बढ़ता है परंतु सन्तोष अवश्य हो जाता है। जहाँ से ये शब्द आये की हम आपके व् आप हमारे है तो एकता के सूत्र प्रारम्भ हो जाते है, और जहाँ पर ये शब्द आये की मैं आपका नहीं व् आप मेरे नहीं तो टूटने के सूत्र प्रारम्भ हो जाते है। साधु प्रेम व्यवहार, वात्सल्य रखते है, स्नेह रखते है यह सब संपत गुण की महिमा है। अपने पास प्रेम, बात्सल्य, स्नेह है तो किसी को बुलाना नहीं पड़ता अपितु स्वयं खिंचे चले आते है ।हमारे अन्दर प्रेम बात्सल्य होना चाहिए ,हम अनुशान में भले कठोर हो परन्तु अंदर से मुलायम हो ,जैसे नारियल बाहर से कठोर व् अन्दर से मुलायम होता है वैसे ही गुरु जन बाहर से कठोर व् अन्दर से मुलायम होते है। यदि वे कठोर न हो तो हमारी चर्या अच्छी नहीं हो सकेगी ।साधुओं के अन्दर बात्सल्य ,प्रेम गुण पाया जाता है ।दुनिया चाहती है कि संसार के प्राणियों में प्रेम व्यवहार संगठन हो परन्तु हो नहीं पाता। आप दूसरों को प्रेम दीजिये ,बात्सल्य दीजिये व्यक्ति आपसे जुड़ जाएगा ,कोई व्यक्ति आया है तो प्रेम से दो शब्द बोल लीजिए वह कहि भी जायेगा पर आपसे जुड़ा ही रहेगा।
मुनिश्री ने बताया प्रेम व्यवहार तो सब में हो परन्तु स्वार्थ दूर ही रहे, वासनाएं दूर हो, विकारी परिणामं दूर हो, शरीर के प्रति, कुटुम्ब परिवार के प्रति ,आदि -आदि के प्रति मोह दूर हो तथा घट -घट में एकता प्रेम संगठन हो। एक दूसरे को सब प्रेम की निगाहों से देखे, विपत्ति में सभी दुसरो का सहयोग करे वह प्रेम व्यवहार घर को स्वर्ग बना देगा। सभी अपने हृदय में इस प्रेम भाव को धारण करे वही हमारी आत्मा को कल्याण पथ में पहुचायेंगा।🍄🍄
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