*आज की प्रेरणा .....* 
*प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण ......*   
*प्रस्तुति - अमृतवाणी ......*    
*आलेखन - संस्कार चेनेल के श्रवण से -*       

                
शास्त्रकार ने एक श्लोक में चार ऐसी शिक्षाएं प्रदान की है, जो हमारे जीवन व्यवहार से पूरी तरह जुडी हुई है | पहली – बिना पूछे व अनपेक्षित मत बोलो, मौन रक्खो | बिना अर्थ व प्रयोजन बोलने से अपने समय व शक्ति का भी अपव्यय होता है व दूसरों के समय का भी | वाणी में हित व अहित दोनों निहित है अतः अनावश्यक व अनपेक्षित मत बोलो| न बोलना व कम बोलना अच्छी बात है | मौन पंडितों का एक  आभूषण है| दूसरी बात - यथार्थ बोलो, झूठ बात मत कहो | सत्य बोलने वाले का सब विश्वास भी करते हैं | लेकिन सत्य बोलने के लिए साहस भी चाहिए | सत्य के सामने संघर्ष तो आता है | सत्य परेशान तो हो सकता है पर परास्त नहीं, सत्य की सदा विजय होती है | सत्य बोलने की किसी की हिम्मत न हो तो मौन रहा जा सकता है | तीसरी बात है – हितकर बोलो | ऐसी बात बोलो जो खुद के लिए भी हितकर हो व दूसरों के लिए भी हितकर हो व जिस बात को कहने से किसी का भी अहित न हो | चौथी बात है – मृदु बोलो | किसी के साथ कटु भाषा का व गुस्से का प्रयोग मत करो | ऐसे शब्दों का चयन करो जो मधुर भी हो व दूसरों को प्रभावित करने वाले हो | हर परिस्थिति में सम रहने का प्रयास करो | सुख में भुत ज्यादा ख़ुशी मत मनाओ व हर दुःख में ज्यादा दुखी मत बनो | प्रिय व अप्रिय दोनों में समता भाव का अभ्यास हो |      

*दिनांक – २९ दिसम्बर, १७ शुक्रवार*
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