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*।। सत्संग और स्वाध्याय ।।*

*प्रथम तो मनुष्य का शरीर मिलना कठिन है और यदि मिल जाये तो भी भारतभूमि में जन्म होना, कलियुग में होना तथा वैदिक सनातन धर्म प्राप्त होना दुर्लभ है | इससे भी दुर्लभतर शास्त्रों के तत्व और रहस्य बतलाने वाले पुरुषो का संग है | इसलिये जिन पुरुषो को उपयुक्त संयोग प्राप्त हो गए है, वे यदि परमशांति और  परमआनंदायक परमात्मा की प्राप्ति से वंचित रहे तो इससे बढकर उनकी मूढ़ता क्या होगी।*

*चींटी से लेकर देवराज इंद्र की योनी तक को हम लोग भोग चुके है, किन्तु साधन न होने के कारण हमलोग भटक रहे है और जब तक तत्पर होकर साधन नहीं करेंगे तबतक भटकते ही रहेंगे |*

*मनुष्य-जन्म सबसे उतम एवं अत्यंत दुर्लभ और भगवान् की विशेष कृपा का फल है | ऐसे अमूल्य जीवन को पाकर जो मनुष्य आलस्य, भोग,प्रमाद और दुराचार में समय बिता देता है वह महान मूढ़ है | उसको घोर पश्चाताप करना पड़ेगा |*

*समय बड़ा मूल्यवान है |मनुष्य का शरीर मिल गया, यह भगवान की बड़ी दया है | अब भी यदि भगवद प्राप्ति से वंचित रह गए तो हमारे सामान मूर्ख कौन होगा | हमे अपने अमूल्य समय को अमूल्य कार्य में ही लगाना चाहिये | भगवान की स्मृति अमूल्य है | इस प्रकार नित्य विचार करना चाहिये |*

*यह मनुष्य शरीर हमे बार-बार नहीं मिलने का | ऐसे दुर्लभ अवसर को यदि हमने हाथ से खो दिया तो फिर सिवा पछताने के और कुछ हाथ नहीं लगेगा |*

*भगवान ने हमे मुक्ति का पासपोर्ट दे दिया है | अब जो कुछ कमी है वह केवल हमारी ओरसे है !*

*यह जीवन हमे सांसारिक भोग भोगने के लिए नहीं मिला है |*

*बारम्बार विचार करना चाहिये की आप किस लिए आये थे, यहाँ क्या करना चाहिये और आप क्या कर रहे है |*

*जब आपका शरीर छूट जाएगा तब शरीर और रूपये किस का आवेंगे? सब कुछ मिट्टी में मिल जायेगा ।*

*ॐ नमः  ॐ नमः ॐ नमः*

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