।। यह दिवस अपनी साधना का द्योतक है । व्यवहार पक्ष से त्याग धर्म का स्वरूप् अनेक तरह से कहा जाता है । जैसे - मोह राग द्वेष का त्याग करना , अपनी वस्तु दूसरे के उपकार के लिए दे देना , चार प्रकार का दान करना और अपनी साधना के लिए किया गया त्याग इत्यादि अनेक तरह से व्यवहार मै त्याग धर्म को परिभाषित किया जाता है । निश्चय पक्ष से आत्मा उत्तम त्याग धर्म स्वभावी ही है । मात्र त्याग धर्म स्वभावी आत्मा का ज्ञान कर लेना ही परिणति मै उत्तम त्याग धर्म की प्रगटता है ।। एक बार नदी और तालाब मै बहस हो गई । तालाब ने कहा- तुम अपना पूरा पानी समुद्र मे डाल देती हो, ऐसे तो एक दिन तुम खाली हो जाओगी । नदी ने कहा- मै अपना देना नही छोड सकती हूँ । अगर मै बहना छोड दूं और अपना पानी समुद्र मै न डालूं तो मेरा होना व्यर्थ है । गर्मियां आईं तालाब सूख गया किन्तु नदी की धार पतली जरूर हुई लेकिन सूखी नही । शिक्षा- जो देता है वही भरता है और जो मात्र ग्रहण करता है उसका ग्रहण उसे स्वयम् ग्रसित कर लेता है ।। प्रायः लोग दान को ही त्याग समझते हैं और त्याग धर्म सम्बन्धी बड़ी भूल रहती जिसकी वजह से वास्तविक त्याग धर्म प्रगट नही हो पाता है ।। वह भूल मिटाने के लिए यहां दान और त्याग दोनोँ में जमीन आसमान का अंतर है । इसमें अंतर स्पष्ट करते हैं - दान और त्याग में अंतर - 1.दान प्रवृत्ति है , त्याग निरवृत्ति है । 2. दान शुभभाव है, त्याग शुद्ध भाव है । 3.दान स्वर्ग का कारण है, त्याग मोक्ष का कारण है । 4. दान साधन है, त्याग साधना है । 5.दान बहिरंग है, त्याग अंतरंग है । 6. दान असमझ पूर्वक हो सकता है किन्तु त्याग समझ पूर्वक ही होता है ।। इस तरह दान और त्याग में अनेक अंतर समझना चाहिए । त्याग धर्म स्वरूप् सम्बन्धी काव्य कहते हैं - भोग्य वस्तु तजने के पहले, इच्छाओं का त्याग करो ।।। इच्छाओं के त्याग बिना ही, त्यागी का मत वेश धरो ।।। आत्मप्रशंशा पर की निन्दा, महत्वाकांछाओं की त्यागो । ईर्ष्या व पद लिप्सा त्यागो, बदले मे अरु कुछ मत मांगो।। जिस प्रकार से सूर्य अपनी किरणों का त्याग करता है तो ही वह अपने सम्मान को प्राप्त करता है और वह सम्पूर्ण अँधेरे को मिटा देता है । उसी प्रकार अपने जीवन मै उत्तम त्याग धर्म धारण करने से ही जीवन की सार्थकता सिद्ध होती है । इससे जीवन का अज्ञान अंधकार मिटकर ज्ञान का प्रकाश हो जाता है । अतः सभी जीव व्यवहार से उत्तम त्याग धर्म ग्रहण करके अपने स्वाभाव सन्मुख होकर अपनी अंतरंग परिणति मै उत्तम त्याग धर्म प्रगट कर अपने जीवन को धन्य करते हुए, मोक्ष प्राप्त करें ।। बोलिये उत्तम त्याग धर्म की जय हो
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