शरीर

शरीर याने देह ... नाम कर्म का एक भेद होता है शरीर नाम कर्म जिसके उदय से जीव के शरीर की रचना होती है !!!

मुक्त होने से पहले आत्मा जिस पुद्गल के साथ संसार भ्रमण करती है, उसे शरीर कहते हैं !!!

*** यहाँ हम बेहद संक्षिप्त में जानेंगे, किन्तु इस विषय को सूक्ष्मता से जानने के लिए "तत्वार्थसूत्र जी" के दूसरे अध्याय के 36 से लेकर 49 तक के सूत्र पढ़ने परम-आवश्यक हैं !!!

तत्वार्थसूत्र जी के दूसरे अध्याय की 36वें सूत्र में लिखा है :-

"औदारिक-वैक्रियिकाहारक-तैजस-कार्माणानि शरीराणि !!36!!"

याने, शरीर 5 प्रकार के होते हैं ...

१ - औदारिक शरीर

२ - वैक्रियिक शरीर

३ - आहारक शरीर

४ - तैजस शरीर, और

५ - कार्माण शरीर ...

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१ - औदारिक शरीर :-

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- जो शरीर गर्भ या सम्मूर्च्छन जन्म से उत्त्पन्न होता है ! वह औदारिक शरीर है !

- यह सप्त धातु (रस, रुधिर, मांस, मेदा, हड्डी, मज्जा और वीर्य) सहित होता है !

- मनुष्य और त्रियंचों के औदारिक शरीर होते हैं !

- सारे शरीरों में औदारिक शरीर सबसे "स्थूल" है !

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२ - वैक्रियिक शरीर :-

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- विक्रिया माने शरीर के स्वाभाविक आकार के अलावा दूसरे आकार बना लेना !

- जैसे टीवी पर रामायण में हनुमान अपने शरीर के कभी छोटे कभी बड़े आकार करते दिखाई पड़ते हैं !

- यह सप्त धातु (रस, रुधिर, मांस, मेदा, हड्डी, मज्जा और वीर्य) रहित होता है !

- देवों और नारकियों के वैक्रियिक शरीर होता है !

- कह सकते हैं कि "उप्पाद जन्म" लेने वालों के वैक्रियिक शरीर होता है !

महामुनियों को भी विशेष तप से "विक्रिया ऋद्धि" प्राप्त हो जाती है, और वह भी अपना शरीर इच्छा-अनुसार छोटा-बड़ा कर सकते हैं !!!

यह विक्रिया-ऋद्धि भी आगे 11 प्रकार कि होती है !!!

पूजन पाठ प्रदीप में या किसी भी पूजन संग्रह में "अथ परमर्षि स्वस्ति (मंगल) विधान" में 64 ऋद्धियों में इन ऋद्धियों का वर्णन है !

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३ - आहारक शरीर :-

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- सूक्ष्म तत्व की जिज्ञासा होने पर, अन्य क्षेत्र में विराजमान वर्त्तमान केवली या श्रुत केवली के पास भेजने को या असंयम को दूर करने के लिए "छठे गुणस्थानवर्ती प्रमत्त-संयत साधु" जिस शरीर की रचना करते हैं, उसे आहारक शरीर कहते हैं !

- यह शरीर सूक्ष्म होता है, पहाड़ों से टकराता नहीं है, शस्त्रों से छिन्न-भिन्न नहीं होता, अग्नि से जलता नहीं है, पानी में भीगता नहीं है !

- यह केवल ऋद्धिधारी मुनियों के ही हो सकता है !

- मुनि के मस्तक से 1 हाथ के परिमाण वाले सफ़ेद रंग के पुतले के रूप में यह शरीर निकलता है, इसे सीमित समय के लिए ही उत्त्पन्न किया जाता है !

- इसकी अवधि अन्तर्मुहुर्त होती है ! और अपने उद्देश्य को पूर्ण करके 1 अन्तर्मुहुर्त में यह मुनि के शरीर में ही प्रवेश कर जाता है !

- यह शरीर एक क्षण में कई लाख योजन तक जा सकता है !

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४ - तैजस शरीर :-

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तैजस शरीर 2 प्रकार का होता है

१ - एक अत्यंत सूक्ष्म शरीर होता है जो औदारिक शरीर (जैसा हम लोगों का है) में रहकर उसे कांति/तेज देता है, उसे गर्मी देता है, तथा खाये हुए भोजन को पचाने में कारक होता है !

यह वाला तैजस शरीर तो सभी संसारी जीवों के होता है !

२- यह तैजस शरीर से निकल कर बाहर जाने वाला शरीर होता है ! जैसे हमने आहारक शरीर का पढ़ा था !

ऋद्धिधारी मुनियों के दायें/बाएं कंधे से बाहर निकलने वाला शुभ व अशुभ रूप तैजस शरीर होता है !

इसे तैजस समुदघात भी कहते हैं !!!

इसे आगे "समुदघात" में पढ़ेंगे !!!

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५ - कार्माण शरीर :-

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यह सब शरीरों का जनक है, सबमे प्रमुख है ! यह हर जीव के होता है !

ज्ञानावरणीय आदि आठ प्रकार के ही कर्म स्कंध को "कार्माण शरीर" कहते हैं !

और ये तो हम जानते ही हैं कि कर्म अनादिकाल से आत्मा के प्रदेशों के साथ जुड़े हुए हैं !!!

यह सबसे सूक्ष्म शरीर है, इसलिए हर पल साथ होने पर भी दिखायी नहीं देता ...

इसका होना ऐसे समझ सकते हैं कि जैसे, कैसेट में गाने डाले हुए हैं, वो म्यूजिक प्लेयर में बज तो रहे हैं परन्तु अंदर कैसेट में किस रूप में और कहाँ पर हैं वो हम नहीं देख सकते ... उसी तरह कार्माण शरीर है !

अब इनके सम्बन्ध में कुछ अन्य तथ्य :-

*** इन शरीरों की बढ़ते हुए क्रम में "सूक्ष्मता" :-

औदारिक शरीर < वैक्रियिक शरीर < आहारक शरीर < तैजस शरीर < कार्माण शरीर

याने की:- औदारिक शरीर सबसे स्थूल और कार्माण शरीर सबसे सूक्ष्म होता है !

प्र :- एक समय में कितने शरीर हो सकते हैं ???

उ :- प्रत्येक संसारी जीव के हर समय तैजस और कार्माण शरीर तो होते ही हैं ...

अब अगर वह देव/नारकी हुआ तो उसके

वैक्रियिक, तैजस और कार्माण 3 शरीर होंगे !

मनुष्य/त्रियंच हुआ तो उसके

औदारिक, तैजस और कार्माण 3 शरीर होंगे !

ऋद्धिधारी मुनि हुए तो उनके

औदारिक, आहारक, तैजस और कार्माण 4 शरीर हो सकते हैं !

मृत्यु हो जाने के बाद, हमारा औदारिक शरीर तो आत्मा को छोड़ देता है, किन्तु तैजस और कार्माण शरीर आत्मा के साथ भव-भवान्तर तक साथ बने रहते हैं !

सभी कर्मों का नाश हो जाने पऱ, या कहिये कि जीव के सिद्ध हो जाने पर ही ये साथ छोड़ते हैं !!!

इस प्रकार हमने 5 प्रकार शरीरों को जाना ...
--- मैं सहजनान्द स्वरूपी हूँ ---