दिगंबर जैन धर्म में लोग पर्युषण के दस दिनों में तृतीय दिन को "उत्तम आर्जव धर्म" के रूप में मनाते हैं। पहला दिन था "उत्तम क्षमा धर्म", मनुष्य के जीवन में क्षमा का आगमन क्रोध के आभाव में ही होता है अर्थात पर्युषण के प्रथम दिन क्रोध के त्याग का अभ्यास किया। द्वितीय दिन "उत्तम मार्दव धर्म" हम सभी ने अपने अभिमान को त्यागकर धारण किया।
तीसरा दिन उत्तम आर्जव धर्म का दिन आया। जिज्ञासा होगी आर्जव क्या है? छल-कपट, मायाचारी आदि के आभाव में मनुष्य के अंदर "आर्जव गुण" प्रगट होता है। अर्थात आर्जव का अर्थ है मायाचारी रहित होना।
पर्युषण का तीसरा दिन मनुष्य को अपने जीवन से मायाचारी को समाप्त करने की शिक्षा देता है। क्रोध, मान, तथा मायाचारी आदि के आभाव में ही मनुष्य अनंत शक्ति संपन्न अपनी आत्मा के यथार्थ स्वरूप से परिचित हो सकता है।