बंध
# हर पुद्गल-स्कंध या कर्म जो हमारी आत्मा के साथ बंधता है वह अपने साथ 4 चीज़ें लेकर आता है :-
1- प्रकृति बंध,
2- स्थिति बंध,
3- अनुभाग बंध
और,
4- प्रदेश बंध ...
1- प्रकृति बंध :- उस कर्म का स्वभाव , जैसे अंतराय कर्म है तो उसका स्वभाव बाधा उत्त्पन्न करने का है ... 8 कर्मों की कुल 148 प्रकृतियाँ होती हैं, ये हम पढ़ चुके हैं !
2- स्थिति बंध :- कितने समय तक एक कर्म आत्मा से बंधा रहेगा, सो उसका "स्थिति बंध" है ...
स्थिति बंध उत्कृष्ट(maximum) :- 70 कोड़ा कोड़ी सागर (दर्शन मोहनीय) का है और
जघन्य (minimum) :- अन्तर्मुहुर्त का होता है, ये भी हम जान चुके !!!
3- अनुभाग बंध :- कर्म के फल देने की शक्ति (तीव्र,मंद इत्यादि) का होना, अनुभाग बंध है !!!
कर्मों का अनुभाग कषायों की तीव्रता और मंदता पर निर्भर करता है !!!
4- प्रदेश बंध :- आत्मा के प्रदेशों से बंधे हुए कर्म/पुद्गल-स्कंधों की संख्या को "प्रदेश बंध" कहा है !!!
==> कर्म सिद्धांत में अनुभाग और स्थिति की प्रधानता है, प्रकृति और प्रदेश की नहीं !!!
ये चारों बंध प्रति समय इस जीव के होते रहतें हैं .. इनसे मुक्ति पाना ही मोक्ष है ...
सो, इस प्रकार कर्म का विषय समाप्त हुआ ...
आग्रह :- जब कभी खाली समय हो, तो पुनः पढ़ें ...
हमने हर कर्म की उत्कृष्ठ(ज्यादा से ज्यादा) स्थिति और जघन्य(कम से कम) स्थिति पढ़ीं ...
कुछ सागर में, कुछ अन्तर्मुहुर्त में ... सो अब इन्हे जानना ज़रूरी है !
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