एक आदमी प्रतिदिन लाख स्वर्ण मुद्राओं का दान करता है और दूसरा आदमी मात्र दो घडी की सामायिक करता है, तो वह स्वर्ण मुद्राओं का दान करनेवाला व्यक्ति,सामायिक करनेवाले की समानता प्राप्त नहीं कर सकता ।
करोड़ो जन्म तक निरन्तर उग्र तपश्चरण करनेवाला साधक जिन कर्मो को नष्ट नहीं कर सकता,उनको समभाव पूर्वक सामायिक करनेवाला साधक मात्र आधे ही क्षण में नष्ट कर डालता है ।
जो भी साधक अतीत काल में मोक्ष गए है । वर्तमान में जा रहे है और भविष्य में जायेंगे,यह सब
सामायिक का ही प्रभाव है ।
सामायिक व्रत भली-भांति ग्रहण कर लेने पर श्रावक भी साधु जैसा हो जाता है, अतः आध्यात्मिक उच्च दशा को पाने के लिए अधिक से अधिक सामायिक करनी चाहिए ।
चंचल मन को नियंत्रण में रखते हुए जब तक सामायिक व्रत की अखण्डधारा चालू रहती है, तब तक अशुभ कर्म बराबर क्षीण होते रहते है
सामायिक में आत्मा की विशुध्दि के साथ साथ मन,वचन और शरीर रूप सब योगों की भी विशुद्धि हो जाती है, अतः परमार्थ दृष्टी से सामायिक सात्विक,
एकान्त निरवद्य अर्थात पाप रहित है ।
सामायिक से विशुद्ध हुई आत्मा
ज्ञानावरणीय आदि घातिकर्मो का सर्वथा अर्थात पूर्ण रूप से नाश होकर लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञान प्राप्त कर लेती है ।
एक सामायिक करने से 92,59,25,925 पल्योपम(एक पल्योपम यानि असंख्य वर्ष) से अधिक स्थिति का नरक गति नाम कर्म का क्षय होता है ।
सामायिक एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे--
1. 48 मिनट तक पापों का त्याग किया जाता है ।
2. संसार से हटकर अपनी आत्मा से समीप पहुँचा जाता है।
3. सामायिक से समभाव की प्राप्ति होती है ।
4. पूर्व के बंधे अनन्त कर्मो की निर्जरा होती है ।
5. नये कर्म आने बन्द हो जाते है
6. सुदेव--सुगुरु--सुधर्म के प्रति श्रद्धा बढ़ती है ।
7. 14 रज्जुलोक के सभी जीवों को अभयदान मिलता है ।
सामायिक में क्या-क्या करना चाहिये⌛
1---धार्मिक पुस्तकें पढ़नी चाहिए।
2---सूत्र की गाथाओ को सिखना और
आगमो का अर्थ पढना चाहिए ।
3---आत्मगुणों का चिंतन करना चाहिए ।
4--व्याख्यान श्रवण,प्रार्थना,ध्यान
काउसग्ग आदि करना चाहिए ।
5--जिग्यासा का समाधान गुरु से
करना।
इस तरह बार बार सामायिक करने से
जीव सम्यक्त्व की मौजुदगी मे आयुष्य का बन्धन कर 3-5-15 भव मे सर्व कर्म नष्ट कर अनन्त सुखों को पाृप्त कर लेगा।