श्‍लाका पुरुष ...

जैन धर्म में 169 महापुरुष बताये गए हैं !
इनमे :- 63 श्‍लाका पुरुष हैं और 106 अन्य पुरुष हैं !
श्‍लाका पुरुषों को उत्तम पुरुष, दिव्य पुरुष और पुराण पुरुष भी कहते हैं ! श्‍लाका पुरुष :- धर्मतीर्थ का सेवन करने वाले अत्यंत पुण्यवान पुरुष श्‍लाका पुरुष कहे जाते हैं ! भरत क्षेत्र के आर्यखण्ड में अंतिम-कुलकर के बाद पुण्योदय से मनुष्यों में श्रेष्ठ और लोक में प्रसिद्द 63 श्‍लाका पुरुष होने लगते हैं ! 
24 तीर्थंकर,
12 चक्रवर्ती,
9 बलदेव,
9 नारायण, और
9 प्रतिनारायण

63 श्‍लाका पुरुष  

ये सभी "वज्रऋषभ नाराच संहनन" वाले होते हैं, संहनन हम पढ़ चुके हैं ! इनके दाढ़ी-मूंछ नहीं होते, इनके मल-मूत्र भी नहीं होता है ! भरत क्षेत्र की ही तरह ऐरावत क्षेत्र में भी 63 श्‍लाका पुरुष होते हैं ! तीर्थंकर हमे पता ही हैं  चक्रवर्ती और बाकी के श्‍लाका पुरुषों के बारे में आगे जानेंगे !!! 9 नारद,  11 रूद्र, 24 कामदेव 14 कुलकर  और 48 (24 तीर्थंकरों के माता-पिता)

106+63 = 169 महापुरुष होते हैं !
ये सभी 169 महापुरुष "भव्य जीव" होने के कारण नियम से मोक्ष जाते हैं ! अब इनके मोक्ष जाने का नियम :-
24 तीर्थंकर और कामदेव --> नियम से उसी भव से मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं ! चक्रवर्ती, बलदेव, कुलकर और 24 तीर्थंकरों के माता-पिता --> उसी या अगले कुछ भवों से मोक्ष नारायण, प्रतिनारायण, नारद, रूद्र --> अपनी आयु पूरा करके नियम से नरक जाते हैं और आगे के भवों से मोक्ष *** कुछ ऐसे भी पुरुष हुए जो इनमे से एक से ज्यादा पदों के धारी हुए ! श्री शांतिनाथ, कुंथनाथ और अरहनाथ 3-3 पदों (तीर्थंकर, चक्रवर्ती और कामदेव) के धारी थे ! 63 श्‍लाका पुरुषों में से हम तीर्थंकर पद पढ़ चुके हैं ...
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2– 12 चक्रवर्ती :-
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- यह छह खण्डों (1 आर्य और 5 म्लेच्छ) के राजा होते हैं ! - 32,000 मुकुटबद्ध राजाओं के राजा होते हैं ! 
शांतिनाथ भगवन चूकिं चक्रवर्ती पद के धारी थे, उनकी आरती से भी हमें चक्रवर्ती पद के गौरव का पता चलता है ! जैसे कि :- - इनके चौदह रत्न और नौ निधियां होती हैं !
- इनके पट-रानी सहित कुल 96,000 रानियां होती हैं !
वर्त्तमान अवसर्पिणी काल में 12 चक्रवर्ती हुए हैं :-
१ - भरत चक्रवर्ती
२ - सगर चक्रवर्ती
३ - मघवा चक्रवर्ती
४ - सनत्कुमार चक्रवर्ती
५ - शांतिनाथ चक्रवर्ती (तीर्थंकर)
६ - कुंथुनाथ चक्रवर्ती (तीर्थंकर)
७ - अरहनाथ चक्रवर्ती (तीर्थंकर)
८ - सुभौम चक्रवर्ती
९ - पद्म चक्रवर्ती
१० - हरिषेण चक्रवर्ती
११ - जयसेन चक्रवर्ती, और
१२ - बरह्मदत्त चक्रवर्ती
यदि चक्रवर्ती का जीव संयम के साथ मरण करता है तो स्वर्ग अथवा मोक्ष जाता है, अन्यथा नरक जाता है !
वर्त्तमान चक्रवर्तियों में से :- मघवा, सनत्कुमार स्वर्ग गए हैं, सुभौम और बरह्मदत्त नरक गए हैं, और शेष 8 चक्रवर्ती ने मोक्ष को प्राप्त किया !
चक्रवर्ती की सेना :- एक चक्री से सेना में चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख रथ, अट्ठारह करोड़ घोड़े, और
चौरासी लाख पैदल सैनिक होते हैं !!!
चक्रवर्ती के चौदह रत्न :- 7 जीवित/चेतन रत्न :- गज, अश्व, गृहपति, स्थपति, सेनापति, पुरोहित, स्त्रीरत्न 
7 निर्जीव/अचेतन रत्न :- छत्र, असि, दण्ड, चक्र, कांकिणी, चूडामणी और चर्म
चक्रवर्ती की नौ निधियां :-ये नव-निधियां अपने क्रम से ऋतु के योग्य द्रव्य, भजन, धान्य, आयुध, वस्त्र इत्यादि दिया करती हैं !
१ - काल निधि से ऋतु के योग्य पदार्थ मिलते है !
२ - महाकाल निधि से असि,मसि,कृषि, शिल्प सम्बन्धी वस्तुएं मिलती है !
३ - नैसर्प निधि से बर्तन मिलते है !
४ - पांडुक निधि से हर प्रकार के रस और धन मिलते हैं !
५ - पद्म निधि से हर प्रकार के वस्त्र मिलते हैं !
६ - माणवक निधि से सब प्रकार के आयुध/शस्त्र मिलते हैं !
७ - पिंगल निधि से सब प्रकार के आभूषण मिलते हैं !
८ - शंख निधि से सब प्रकार के गाजे/बाजे मिलते हैं !
९ - सर्व रत्न निधि से सब प्रकार के रत्न मिलते हैं !

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3 - 9 बलदेव :-
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- ये नारायण के बड़े भाई होते हैं !
- इन्हे बलभद्र या हलधर भी कहते हैं !
- बलभद्र, क्यूंकि ये बल में श्रेष्ठ और भद्र परिणाम वाले होते हैं !
- इनके चार महारत्न (हलायुध, बाण, गदा और माला) होते हैं !
- अपार वैभव,पराक्रम और यश होता है !
- बलदेव मरकर स्वर्ग या मोक्ष जाते हैं !
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4 - 9 नारायण :- 
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- तीन खण्डों (1 आर्य और 2 म्लेच्छ) के स्वामी होते हैं !
- इनके 7 रत्न होते हैं !
- 16,000 रानियां होती हैं !
- हिंसा का समर्थन करने कारण, भव्य-जीव होते हुए भी नरक जाते हैं !
- आगे के कुछ भवों में मोक्ष को प्राप्त कर सिद्ध हो जाते हैं !!!
इस काल के कुछ प्रमुख बलदेव-नारायण :-
१ - राम - लक्ष्मण
२ - बलराम - श्रीकृष्ण
३ - नंदीशेण - पुरुष-पुण्डरीक
बलदेव-नारायण में प्रगाढ़ प्रेम होता है !
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5 - प्रति-नारायण :-
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- ये नारायण के जन्म-जात शत्रु होते हैं !
- ये कर्म-भूमि के नीचे के तीन खण्डों (1 आर्य और 2 म्लेच्छ) के जीतते हैं !
- इनका वध नियम से नारायण के ही द्वारा होता है !
- ये भी मरकर नरक ही जाते हैं !
इस काल के कुछ प्रमुख बलदेव-नारायण व प्रति-नारायण :-
१ - राम-लक्ष्मण-रावण
२ - नंदीशेण-परुषपुण्डरीक-बलि
३ - बलराम-श्रीकृष्ण-जरासंध
==> चक्रवर्ती के तो "चक्र" रूपी रत्न उनकी आयुधशाला (ARSENAL) में उत्त्पन्न होता है, किन्तु नारायण के रत्नों में ये नहीं होता ! प्रति-नारायण की आयुधशाला में "चक्र" उत्त्पन्न होता है ! कोई विशेष-कारण पाकर जब इनका महायुद्ध होता है, तब खुद को हारता देख, प्रति-नारायण अपना चक्र नारायण पर चलाते हैं, किन्तु पुण्य के प्रभाव से यह चक्र नारायण की प्रदिक्षणा देकर विचित्र प्रभाव से उन्ही का आज्ञाकारी हो जाता है ! नारायण, प्रति-नारायण का चक्र उन्ही पर चलाकर उनका वध करते हैं !!!! टीवी वाली रामायण से एक और भ्रांति हुई है कि श्रीराम ने रावण को मारा था, किन्तु ऊपर पढ़ने से स्पष्ट हो जाता है कि श्रीराम नहीं लक्ष्मण के द्वारा रावण का वध हुआ था ! 
==> "राम-लक्ष्मण-रावण", मुनिसुव्रत नाथ भगवान् और नमिनाथ भगवान् के अंतराल में हुए थे ! श्रीराम - उसी भव से मोक्ष को प्राप्त किया ! लक्ष्मण - बारह हज़ार साल की आयु को पूरा कर, नरक को गए ! रावण - नरक में हैं ... और आने वाले तीर्थंकरों में से एक होंगे !

प्र :- हमने इन्हे देखा ही नहीं तो क्यूँ पढ़ें इनके बारे में ???
उ :- क्यूंकि, ये हमारे धर्म के महान पुरुष हुए हैं, ये एक ऐसे इतिहास का हिस्सा हैं, जो हर काल में खुद को दोहराता है, और ये क्रिया आदि-अनंत है ! इन महापुरुषों कि कथा पढ़ने से हमे विरक्त होने का भाव मिलता है !
सर्वप्रथम पढ़े जाने वाले प्रथमानुयोग के शास्त्रों में भी जिन-धर्म-कथा, कला, साहित्य, इतिहास इत्यादि ही पढ़ाया जाता है !हमारा उपयोग इतना दृढ़ नहीं है कि सिर्फ तत्व सात और द्रव्य छह होते हैं पढ़लेने से हमारा भला हो जायेगा ! धर्म का इतिहास, भूगोल भी आवश्यक है ताकि हम इनके जीवन की, उन कालों कि जब ये महापुरुष हुए और इनके संयम/तप/त्याग कि कथा सुनकर अपना उपयोग और दृढ़ कर सकें !
आपस में मिलाप :- 63 श्‍लाका पुरुषों में से, किसी भी एक समय में प्रत्येक में 1-1 ही हो सकते हैं ! याने कि 2 या उस से अधिक तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि श्लाका पुरुष एक समय में नहीं हो सकते ! जैसे आदिनाथ भगवान के बाद अजितनाथ भगवान् हुए, उनके ही समय में नहीं ! ऐसे ही एक समय पर एक ही चक्री होते हैं ! दो चक्रवर्ती कभी एक समय पर नहीं होते ! सिर्फ - बलदेव, नारायण व प्रति-नारायण का आपस में मिलाप होता है !
169 महापुरुषों की ही श्रंखला में 63 श्‍लाकापुरुषों के बाद आगे बाकी के 106 भव्य पुरुष :-
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11 रूद्र :- 
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जैन-मुनि दीक्षा लेने के बाद कर्म के तीव्र उदय से विषय-वासना वश संयम से भ्रष्ट होकर रौद्र कार्य करने वाले जीव को "रूद्र" कहते हैं ! ये 11 अंगों के ज्ञायक होते हैं ... किन्तु तप से भ्रष्ट होकर मिथ्यात्व को ग्रहण कर यह नियम से नरक को जाते हैं !!!  सबसे पहले रूद्र "भीमावलि" भगवान् आदिनाथ के काल में हुए, और सबसे आखिरी 11वें रूद्र "सात्यिक पुत्र" भगवान् श्री महावीर के युग में हुए !
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9 नारद :- 
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- यह कलह-प्रिय और युद्ध-प्रिय जीव होते हैं !
- इधर की बात उधर करने में कुशल !
- नारायण और प्रति-नारायण को लड़ाने में नारद की ही प्रमुख भूमिका होती है !
- धर्म-कार्यों में तत्पर रहते हुए भी, हिंसा/कलह में रूचि रखने के कारण नरक-गामी होते हैं !
- जिनेन्द्र भक्ति के प्रभाव से शीघ्र ही मोक्ष पद को प्राप्त कर लेते हैं !!!
इनके अलावा 24 तीर्थंकरों के माता/पिता भी दिव्य-पुरुष होते हैं, वह भी भव्य होने के कारण नियम से मोक्ष पद को प्राप्त कर लेते हैं !!! नारद और रूद्र अपनी आयु पूरी करके नरक जाते हैं और अगले कुछ भवों में मोक्ष प्राप्त करते हैं !!!
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24 कामदेव :-
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- यह भव्य पुरुष अपने युग के सबसे सुंदर आकृति और अनुपम सौंदर्य के धारी होते हैं !
- संयम धारण करके, "कामदेव" उसी भव से मोक्ष जाते हैं !
- ये सभी कामदेव रूप, विद्या और बल में अत्यंत श्रेष्ठ होते हैं !
- वर्त्तमान काल के कुछ प्रमुख कामदेव :-
बाहुबलीजी, शांतिनाथजी, कुंथुनाथजी, अरहनाथजी, हनुमानजी और जम्बूस्वामीजी !
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14 कुलकर :- 
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- कर्म-भूमि के शुरू होने में आर्य-पुरुषों को कुल यानि कुटुंब की तरह इक्ट्ठे रहकर जीने का उपदेश देने वाले महापुरुष "कुलकर" कहलाते हैं !
- प्रत्येक कुलकर जीवों को जीने की कोई न कोई कला या शिक्षा देते हैं !
- जैसे, जीव-जंतुओं से अपनी रक्षा करना, पानी में नाव से आना-जाना, हाथी की सवारी करना इत्यादि !

प्र :- ये ऐसा कैसे करते हैं ? इन्हे क्या पता की ऐसा करना चाहिए ???
उ :- इनमे से किसी को जाति-स्मरण या किसी को अवधि-ज्ञान होता है, जिसके उपयोग से यह ऐसा कर पाते हैं !
- भव्य-जीव होने का कारण शीघ्र ही अगले कुछ भवों से मोक्ष पद को प्राप्त कर लेते हैं !!! इस प्रकार हमने 169 महापुरुष पढ़े ...