आचार्य परमेष्ठीजी के छत्तीस (36) मूल गुण

प्र:- सबसे पहले तो आचार्य परमेष्ठी होते कौन है ???

उ:- मुनि-संघ के नायक, मुनि दीक्षा देने वाले, मुनियों को प्रायश्चित देने वाले "आचार्य परमेष्ठी" कहलाते हैं !

उनमे अन्य मुनियों के 28 मुलगुणों के सिवाय निम्लिखित 36 गुण और विशेष होते हैं :-

आचार्य भगवन के मूलगुण, ऐसे याद रख सकते हैं :-

"द्वादश तप, दश धर्मयुत, पालें पंचाचार !

षट आवश्यक त्रिगुप्ति गुण, आचारज पदसार"

याने,

12 - तप,

10 - धर्म,

05 - आचार,

03 - गुप्ति और,

06 - आवश्यक

-----

36 - आचार्य परमेष्ठी के गुण ...

----

इनमे से तप, 6 अंतरंग और 6 बहिरंग के भेद से 12 प्रकार का होता है, ये हम पहले (Read in L1) भी पढ़ चुके हैं !

आज आचार्य परमेष्ठी के 10 धर्म रूप मूलगुणों की बात करेंगे :-

यह दस धर्म वही हैं, जिन्हे हम हर साल दस लक्षण पर्व के रूप में मनाते हैं !

इनके बारे में तो हम सब जानते ही हैं ...

"क्षमा मार्दव आर्जव, सत्यवचन चितपाक !

संयम तप त्यागी सरव, आकिंचन तिय त्याग !!"

1 - क्षमा - क्रोध का त्याग

2 - मार्दव - अभिमान का त्याग

3 - आर्जव - छल-कपट का त्याग

4 - शौच - लोभ/लालच का त्याग

5 - सत्य - झूठ का त्याग

6 - संयम - इन्द्रिय,मन को वश में करना, छ्ह काय के जीवों कि रक्षा करना

7 - तप - बारह प्रकार के तप से, इच्छाओं का निरोध करना

8 - त्याग - अभय, ज्ञान आदि का दान करना

9 - आकिंचन्य - सब ममता भाव का त्याग

10 - बरह्मचर्य - 18 हज़ार प्रकार का शील धारण करना !!!

*** 5 आचार ***

"दर्शन ज्ञान चारित्र तप, वीराज पंचाचार !

रोकें मन वाच काय को, आचारज सुखकार !!"

1 - दर्शनाचार :- निर्मल सम्यग्दर्शन का होना !

2 - ज्ञानचार :- विशेष ज्ञान का होना !

3 - चारित्राचार :- निर्मल चारित्र का आचरण होना !

4 - तपाचार :- कठोर तपस्या करना !

5 - वीर्याचार :- भयानक परीषह को सहना और सहने कि क्षमता रखना !

*** 3 गुप्ति ***

1 - मन गुप्ति :- मन में बुरे संकल्प-विकल्प न आने देना !

2 - वचन गुप्ति :- संयम से बोलना और मौन रखना !

3 - काय गुप्ति :- शरीर निश्चल रखना !

*** 6 आवश्यक ***

"समता धरि वंदन करें, नाना थुती बनाय !

प्रतिक्रमण स्वाध्यायजुत, कायोत्सर्ग लगाय !! "

*** षडआवश्याकानाम ***

1 - समता :- समस्त पदार्थों से राग-द्वेष छोड़ कर समता भाव रखना !!

2 - वंदना :- पञ्च परमेष्ठी को नमस्कार करना, सो वंदना है !!

3 - स्तुति :- पञ्च परमेष्ठी का वचन द्वारा स्तवन !!

4 - प्रतिक्रमण :- पहले से लगे हुए, किये हुए दोषों का पश्चाताप करना !!

5 - स्वाध्याय :- जिनवाणी पढ़ना !!

6 - कायोत्सर्ग :- काय(शरीर) से निर्ममत्व होकर खड़े हो या बैठ कर शुद्धात्म का चिन्तवन करना, सो कायोत्सर्ग है !!

इस प्रकार आचार्य परमेष्ठीजी के छत्तीस (36) मूल गुण को हमने पढ़ा ...

इन 36 मुलगुणों के अलावा आचार्य :-

1 - अवपीड़क, आपरिश्रावि आदि अष्ठ गुण युक्त होते हैं,

और

2 - मुनियों वाले 28 मूलगुण तो उनके होते ही हैं !!

--- ऐसे परम पूजनीय आचार्य पद को मेरा नमस्कार हो ---