उपाध्याय परमेष्ठीजी के पच्चीस (25) मूल गुण

प्र :- उपाध्याय परमेष्ठी होते कौन हैं ?

उ :- मुनि संघ में सबसे अधिक ज्ञानी, अन्य मुनियों को पढ़ाने वाले "उपाध्याय परमेष्ठी" होते हैं !

ग्यारह अंग और चौदह पूर्व का पाठीपना इन पच्चीस गुणों से युक्त उपाध्याय भगवान्, अंग पूर्वादि शास्त्रों के पढ़ने और मुनि संघ को पढ़ाने वाले होते हैं !!!

11 - अंग और,

14 - पूर्व

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का ज्ञान रूप उपाध्याय परमेष्ठी के 25 गुण हैं ...

*** ग्यारह अंग ***

1 - आचारांग,

2 - सूत्रकृतांग,

3 - स्थानांग,

4 - समवायांग,

5 - व्याख्याप्रज्ञप्ति,

6 - ज्ञातृकथा

7 - उपासकअद्ध्ययन

8 - अन्तः क्रतदशांग

9 - अनुत्तरोत्पादक दशांक

10 - सूत्रविपाक और,

11 - प्रश्न व्याकरण

ये ग्यारह अंग शास्त्र हैं !

*** चौदह पूर्व ***

1 - उत्पादपूर्ण,

2 - अग्रयाणी,

3 - वीर्यवाद,

4 - आस्तिनास्ति प्रवाद,

5 - ज्ञान प्रवाद,

6 - कर्म प्रवाद,

7 - सत प्रवाद,

8 - आत्म प्रवाद,

9 - प्रत्याख्यान,

10 - विद्यानुवाद,

11 - कल्याण पूर्व,

12 - प्राणवाद,

13 - क्रिया विशाल और,

14 - लोक बिन्दुसार ...

ये चौदह पूर्व शास्त्र हैं !

- इनका ज्ञान होना, इन्हे पढ़ना पढना सो उपाध्याय भगवन के गुण हैं !!!

अब इन ग्यारह अंग और चौदह पूर्व शास्त्रों में कितने कितने पद हैं तथा उनमे किस किस विषय के बारे में लिखा है, ये "णमोकार ग्रन्थ" में पढ़ सकते हैं !

नोट :- अपने इन 25 मुलगुणों के अलावा उपाध्याय परमेष्ठी, मुनियों वाले 28 मूलगुण भी पालते ही हैं !

अब इन ग्यारह अंग और चौदह पूर्व शास्त्रों में कितने कितने पद हैं तथा उनमे किस किस विषय के बारे में लिखा है, ये "णमोकार ग्रन्थ" में पढ़ सकते हैं !

--- णमो उवज्झायाणं ---