1-क्षमा वीरों का आभूषण है और क्रोध कायरों का।
2-क्रोध,वस्तुस्वरूप की अजानकारी का फल है।
3-क्रोध करना अर्थात दूसरे के अपराध का स्वयं को दंड देना है।
4-आत्मा की अरुचि का नाम,अनंत क्रोध है।
5-जीव को पर का कर्ता मानना,अनंत क्रोध है।
6-दूसरे के बड़े से बड़े अपराध को भी क्षमा करो और अपने छोटे से छोटे अपराध की भी क्षमा मांगो।
7-अपराध न करना ही,सबसे बड़ी क्षमा है।
8-क्रोध प्रशंसनीय नही,निंदनीय ही होता है।
9-मिथ्यात्व अर्थात स्वयं से अनंत बैर।
10-धर्म और धर्मी के प्रति अनुत्साह ही,अनंत क्रोध है।
11-निमित्त को कर्ता मानना,अनंत क्रोध है।
12-राग की आग में जलना, क्रोध ही तो है।
13-ईर्ष्या,क्रोध का ही एक अन्य रूप है।
14-शुद्धात्मा का अनादर ही,अनंत क्रोध है।
15-आत्मा को कर्मदंड दिलाना,आत्मा पर क्रोध है।
16-सबसे क्षमा और सबको क्षमा।
17-क्षमा माँगने से जीव छोटा नही होता और मोटा होता है।
18-होनी को सहज न स्वीकारना ही,क्रोध है।
19-क्रोध अंधा होता है इसलिए उसे कुछ भी सही दिखाई नही देता है।
20-किसी को पर्यायदृष्टि से देखना,अनंत क्रोध है।
21-पर में इष्ट-अनिष्ट बुद्धि का नाम ही तो अनंतक्रोध है।
22-क्रोध बंध कराता है और क्षमा निर्जरा।
23-क्रोध की आग को क्षमा के जल से बुझाये बिना,मुक्ति(सुख) असंभव है।
24-योग्यता से अधिक अपेक्षा रखने से क्रोध होता है।
25-क्षमा आपके धार्मिक होने की पहचान है और क्रोध आपके अधार्मिक होने की पहचान।
                   (श्रेणिक 14-9-18)