श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज के मंगल प्रवचन 14-01-2018 दिन - रविवार
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ज्ञान का फल अज्ञान का नाश है और चरित्र का फल जन्म मरण रूपी संसार का नाश है......🍃
श्री दिगम्बर जैन ,अटा मन्दिर ,ललितपुर (उ. प्र.) में युगल मुनिराज विराजमान है। मुनिश्री ने अपने मंगल देशना में बताया आत्मा का शुद्ध स्वभाव जानना और देखना है ।रत्नत्रय की पूर्णता आत्मा का शुद्ध स्वभाव नहीं है ।जहाँ तक गुणस्थान शब्द लगा है वहाँ तक आत्मा का अशुद्ध स्वभाव है। भैया !14 वें गुणस्थान में 18 हजार शील की पूर्णता हो जाती है और पूर्णता होने पर भी वह आत्मा का शुद्ध स्वभाव नहीं है ।जब यहाँ पर 14 वें गुणस्थान में 18 हजार शील की पूर्णता होने पर भी आत्मा अपने शुद्ध स्वभाव को नहीं मानता तो जो अज्ञानी चौथे गुणस्थान में आत्मा को शुद्ध मान रहे है वे घोर अज्ञानी जीव है। नय दृष्टि से स्वीकारा जा सकता है लेकिन प्रमाद दृष्टि से तभी कहेंगे जब सिद्ध बन चुका होगा ।बस्तु स्वभाव दृष्टि से व्यक्त रूप में एवं नय भूत की दृष्टि से जब सिद्धालय में होंगे तभी आत्मा अपने शुद्ध स्वभाव में होगी।
मुनिश्री ने बताया रत्नत्रय की पूर्णता शुद्ध स्वभाव नहीं है ,रत्नत्रय का फल जो है वो शुद्ध स्वभाव है ।चारो अनुयोगों की भाषा अलग -अलग है और चारो अनुयोगों के ज्ञान का जो फल है, अज्ञान का नाश है। ज्ञान का फल अज्ञान का नाश है पर चारित्र का फल जन्म मरण संसार का नाश है ।संसार के नाश से तातपर्य संसार का घात मत समझ लेना ,संसार के नाश से तातपर्य संसार की हमारी जो पर्याय है इनका नाश है।
मुनिश्री ने बताया साधन को धर्म कहते -कहते संतुष्टि मत कर बैठना ,धन धर्म की प्राप्ति के लिए है ।उसे भी छोड़ा नहीं जा सकता ,साधन भूत धर्म नहीं होगा तो साध्य भूत धर्म प्रगट नहीं हो सकता ,इस दृष्टि से भगवान का अभिषेक, पूजन भी धर्म हो जाता है। इस दृष्टि से पात्रों को धान भी धर्म हो जाता है। इस दृष्टि से स्वाध्याय, जप, तप सब धर्म हो जाते है। ये सब धर्म के साधन है ।व्यवहारिक जीवन जीने वालो को यही धर्म दिखाई देते है।
मुनिश्री ने बताया जो धर्म है वो अनुभूति का विषय है वो किसी को दिखाने का विषय नहीं है ।संसार में रहोगे तब तुम स्वयं भी नहीं देख पाओगे और दिखा क्या पाओगे। सिद्ध बनके ही वेधन करोगे, वह मेरा अशरीरी स्वभाव है। जिस क्षेत्र का वक्ता होगा अपनी भाषा में व्याख्यान करेगा और स्रोता उसी भाषा में आनंदित होंगे उसको वही धर्म दिखेगा। यदि मैं पूजन पाठ की महिमा का व्याख्यान करू तो आपके सामने श्री जी नजर आयेंगे, अभिषेक कलश दिखाई देंगे। पौराणिक पुरुषों का व्याख्यान प्रारम्भ कर दू तो आपको पुराण पुरुष दिखाई देंगे ।उनको व्याख्यान का आनन्द ही धर्म दिखेगा ।बोलोगे की मैं धर्म में हूँ यदि आपके यहाँ कोई संगीत विशेष का व्याख्यान कर दे, फिर आपको उसी संगीत में बाहर के प्रपंच में ही धर्म दृष्टिगोचर होगा। वो ही वक्ता आपको सर्व श्रेष्ठ नजर आएगा।
मुनिश्री ने बताया गुण गुणी में भिन्ननत्व है ।भिन्ननत्व नहीं होता तो द्रव्य की पहचान कैसे होती? द्रव्य की पहचान कराने वाला विश्व में कोई है तो वो गुण है जो वस्तु को भिन्न से भिन्न करके दिखा दे ।भिन्न बस्तुओं में से भिन्न करके दिखा दे वह गुण है लक्षण है ।मेरी आत्मा में ज्ञान दर्शन है यह आत्म भूत लक्षण है। जो ज्ञान दर्शन है उससे आत्म द्रव्य को जाना जाता है जब लक्षण से देख रहे है तो ज्ञान दर्शन भिन्न दिख रहा है और आत्म द्रव्य भिन्न है ।जब अधिकरण में देखते है तो ज्ञान ,दर्शन भिन्न तो है आत्मा से ।वो किसमें है? आत्मा में ही है इसलिए अभिन्न है जो केवली भगवान है ,जो रत्नत्रय से युक्त है ,रत्नत्रय के फल को पूर्ण प्राप्त कर चुके है पुराण प्रख्यात चारित्र से युक्त है वो केवली भगवान है। वे केवली भगवान 2 गुणस्थानों में होते है ।संसार में हम केवली को देखेंगे तो 2 गुणस्थान इर मिलते है ,2 गुणस्थानों की अपेक्षा शेष गुणस्थानों में केवली नहीं होते। संयोग केवली ,वियोग केवली ये 2 गुणस्थान केवली के है ।जीव केवल ज्ञान प्राप्त करके शुद्ध आत्म द्रव्य को प्राप्त करता है और उस मोक्ष अवस्था को प्राप्त करता है इसलिए जीवन में ज्ञान का होना अति आवश्यक है।
मुनिश्री के पावन सान्निध्य में कल सुबह 7 बजे से
श्री 1008  प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान का मोक्ष कल्याणक महोत्सव मनाया जायेगा, जिसमें श्री आदिनाथ महा मण्डलविधान और 11 किलो का निर्वाण लाडू चढ़ाया जाएगा। एवं साथ ही श्रमण श्री विश्वाक्षसागर जी मुनिराज के भव्य केशलोंच भी होंगे...
आप भी आएं।
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