"सौ बार चोट करने से पत्थर टूटता है, तो भले ही श्रेय सौवी चोट को मिले, पर पहली चोट का भी अपना महत्व होता है। प्रत्येक चोट पत्थर को कमजोर करती है, जिससे वह अंतत: टूटता है। निरंतर एक स्थान पर गड्ढा खोदने से अंत मे पानी का झरना फूट पडता है। उसी प्रकार यदि हम निरन्तर आत्महित का चिन्तन करते रहे, तो एक दिन हमारी चेतना मे अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग अवश्य उत्पन्न होगा।"
[: शारदे! शरद-सी शीतल, शुभ वाणी दे दो  मुझे ,
आपके द्वारे हम , भिक्षा लेने आये हैं ।
ज्ञान का प्रकाश करो , मोहतम नाश करो ,
कण्ठ में विराजो मेरे , दीक्षा लेने आये हैं।
आपकी चतुर्भुज , चार अनुयोग धरें  ,
ज्ञान - हंस रूप  भेद-, विज्ञान धारें हैं।
ऐसी जिनवाणी मेरी, आत्मा सुधार करें,
जिनके " अमित"बार चरण पखारे हैं ॥
जिनवाणी माता की जय ।

गुरूवर अमित सागर जी के चरणों में शत-शत नमन ।

गुरूवर अमित सागर जी महाराज ससंघ श्रवण बेलगोलामें विराजमान हैं ।