जय जिनेन्द्र सुप्रभात
*स्वस्तिक क्या ? क्यों ? कैसे ?*
स्वस्तिक अत्यंत मांगलिक एवं गूढ़ अर्थ रखने वाली मंत्र या आकृति है। जिसे हम हर मांगलिक कार्यक्रम चाहे वह लौकिक हो या धार्मिक अवश्य बनाते हैं।
इसको बनाने का एक क्रम है। सबसे पहले इसके मूल में दो दण्ड (। --) इनमें से खड़ी लाइन जन्म की प्रतीक है , क्यों कि जन्म नीचे से ऊपर की ओर होता है। इसलिये इसे हमेशा नीचे से ऊपर की ओर ही खींचना चाहिये। और आड़ी लाइन मरण की प्रतीक है, क्यों कि मृत्यु के समय व्यक्ति इसी अवस्था में होता है। इसलिये पहले खड़ी लाइन फिर आड़ी लाइन ही खींचना चाहिये , क्यों कि पहले जनम और फिर मरण होता है।
इसके बाद इनसे जुड़ी चार छोटी लाइन चारों गतियों की प्रतीक है। और फिर इन चारों छोटी लाइनों के साथ जुड़ी ऊर्ध्वमुखी रेखाचिह्न चारों गतियों के परिभ्रमण से मुक्ति के सूचक है। इन्हें जरूर बनाना चाहिये, क्यों कि हम चारों गतियों के दुखों से मुक्ति पाना चाहते हैं। यही हमारा अंतिम लक्ष्य है।
इसके बाद हम चारों खानों में बिन्दु बनाते हैं। ये वास्तव में बिन्दु नहीं है कूट अंक है , जो इस प्रकार लिखे जाते हैं --
पहले खाने में 5 , फिर उसके बराबर में 4 फिर नीचे 24 , फिर उसके बराबर में 3
इनमें से 5 अंक पंचपरमेष्ठी का सूचक है , 4 अंक चारों अनुयोगों का सूचक है , 24 अंक चौबीस तीर्थंकरों का सूचक है , और 3 अंक रत्नात्रय का सूचक है।
पूजन की थाली में स्वस्तिक के ऊपर तीन बिन्दु भी बनाते हैं , जो द्रव्य कर्म , भावकर्म और नोकर्म के प्रतीक है। और उसके ऊपर अर्धचन्द्राकार बनाते हैं , जो सिद्ध शिला का प्रतीक है।
पंचपरमेष्ठी (5) और चौबीसों तीर्थंकरों (24) के बताये मार्ग का अनुसरण करते हुये चारों अनुयोगों (4) के माध्यम से अपने आत्मस्वरूप को समझकर व स्वरूप की आराधना करते हुये रत्नात्रय (3) प्राप्त करके , द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म (3बिन्दु) को क्षय करते हुये सिद्धशिला को प्राप्त करने का सुंदर संदेश इस स्वस्तिक से हमें प्राप्त होता है।