प्रात: क़ालीन वन्दना
१- सिद्ध शिला पर विराजमान अनन्तानन्त सिद्ध परमेष्ठी भगवन्तों को मेरा बारमबार नमस्कार है ।
२- वृषभादिक महावीर पर्यन्त अंगुलियों के २४ पोरो में विराजित २४ तिर्थंकरों को मेरा नमस्कार है ।
३- सीमंधर आदि विधमान २० तीर्थंकरों को मेरा नमस्कार है ।
४- सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र को मेरा बारम्बार नमस्कार है ।
५- चारों दिशा विदिशाओं में जितने अरिहन्त , सिद्ध , आचार्य , उपाध्याय व सर्व साधु , जिनधर्म , जिनागम व जितने भी कृत्रिम व अकृत्रिम चैत्य चैत्यालय है , उनको मेरा मन -वचन और काय से बारम्बार नमस्कार है ।
६- पॉच भरत , पॉच ऐरावत् , दश क्षेत्र सम्बन्धी तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनालयो में स्थित जिनवरों को मेरा बारम्बार नमस्कार है । जितने
भी अतिशय क्षेत्र , सिद्ध क्षेत्र , जिनवाणी, शास्त्र , मुनिराज , माताजी ,क्षुल्लक , क्षुल्लकाणी जी है उन सबके चरणों में मन , वचन और काय से बारम्बार नमस्कार हो ।
७- हे भगवान् ! तीन लोक सम्बन्धी ८ करोड़ ५६ लाख ९७ हज़ार ४८१ अकृत्रिम जिन चैत्यालयो को मैं नमस्कार करती / करता हूँ । उन चैत्यालयो में सिथत ९२५ करोड़ ५३ लाख २७ हज़ार ९४८ जिन प्रतिमाओं की वन्दना करती / करता हूँ ।
८ - हे भगवान ! मैं यह भावना भाती / भाता हूँ कि मेरा यह आज का दिन ख़ूब मंगलमय हो , अगर मेरी मृत्यु भी आती हो तो भी मैं तनिक भी नहीं घबराऊँ । मेरा अत्यन्त सुखद समाधि पूर्वक मरण हो । जगत के जितने भी जीव है वे सभी सुखी रहे , उन्हें कोई भी प्रकार का कष्ट , दु:ख , दरिद्र , रोग न सताये और सभी जीव मुझको क्षमा करे और सभी जीवों पर मेरा क्षमाभाव रहे ।
मेरे समस्त कर्मों का क्षय हो , समस्त दु:ख दूर हो , रत्नत्रय धर्म की प्राप्ति हो , बोधि की प्राप्ति हो मोक्ष की प्राप्ति हो, आपके गुण रुपी रत्नों की प्राप्ति हो । जब तक मैं मोक्ष पद को प्राप्त न कर लूँ तब तक आपके चरण कमल मेरे ह्रदय में विराजे और मेरा ह्रदय आपके चरणों में रहे ।
सम्यक्त्व धारण करु , रत्न त्रय पालन करु , आर्यिका / मुनि व्रत धारण करुं । समाधि पूर्वक मरण करु , यही मेरी भावना है ।
हे भगवन् '! आज के लिए मैं यह नियम लेती हूँ कि मेरे से जो भी खाने में , लेने में , देने में , चलने में , फिरने मे आयेगा उन सब की छूट है बाक़ी सब का त्याग है अगर कोई गल्ती हो तो मिथ्या होवें । जिस दिशा मे रहूँ , आऊ , जाऊँ उस दिशा की मेरी छूट है बाक़ी सब दिशाओं में आवा गमन का मुझे त्याग रहेगा अगर कोई गल्ती हो तो मिथ्या होवें ।
जिस दिशा में रहूँ उस दिशा में कोई पाप हो उस पाप की मै भागीदार न बन सकूँ अगर किसी प्रकार की अड़चनें हारी - बीमारी आ जायें , दर्शन नहीं कर सकूँ पूजा नहीं कर सकूँ उसके लिए मैं क्षमा चाहूँगी / चाहूँगा , मन्दिर जी में रहूँ , पूजा बोलूँ , व्रत करु , मेरे शरीर पर जो भी परिग्रह है , और जो भी मन्दिर जी में मेरे प्रयोग में आयेगा , उन सबको छोड़कर , बाक़ी अन्य समस्त परिग्रह का मुझे त्याग रहेगा । अगर इसी बीच मेरी मृत्यु हो जाये तो मेरे शरीर पर जो भी परिग्रह है उसका भी मुझे त्याग रहेगा ।
अच्चेमी, पुज्जेमी , वन्दनामि, नमस्सामि , सुक्खखओ , कम्मक्खओ , बोहिलाओ , सुगईगमणं , समाहिमरणं , जिन गुणसम्पति होऊँ मज्झं ।
बोलिए पंच परमेष्ठी भगवान की जय ।
३५ बार णमोकार मन्त्र बोलना ।
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🙏जय जिनेन्द्र
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