आदिनाथ चालीसा

शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करू प्रणाम ।
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम ।।
सर्व साधु और सरस्वती जिन मन्दिर सुखकार ।
आदिनाथ भगवान को मन मन्दिर में धार ।। 

जै जै आदिनाथ जिन स्वामी, तीनकाल तिहूं जग में नामी ।
वेष दिगम्बर धार रहे हो, कर्मों को तुम मार रहे हो ।। 

हो सर्वज्ञ बात सब जानो सारी दुनियां को पहचानो ।
नगर अयोध्या जो कहलाये, राजा नाभिराज बतलाये ।। 

मरुदेवी माता के उदर से, चैत वदी नवमी को जन्मे ।
तुमने जग को ज्ञान सिखाया, कर्मभूमी का बीज उपाया ।। 

कल्पवृक्ष जब लगे बिछरने, जनता आई दुखड़ा कहने ।
सब का संशय तभी भगाया, सूर्य चन्द्र का ज्ञान कराया ।। 

खेती करना भी सिखलाया, न्याय दण्ड आदिक समझाया ।
तुमने राज किया नीति का, सबक आपसे जग ने सीखा ।। 

पुत्र आपका भरत बताया, चक्रवर्ती जग में कहलाया ।
बाहुबली जो पुत्र तुम्हारे, सबसे से पहले मोक्ष सिधारे ।। 

सुता आपकी दो बतलाई, ब्राह्मी और सुन्दरी कहलाई ।
उनको भी विद्या सिखलाई, अक्षर और गिनती बतलाई ।। 

एक दिन राजसभा के अन्दर, एक अप्सरा नाच रही थी ।
आयु उसकी बहुत अल्प थी, इसीलिए आगे नहीं नाच रही थी ।। 

विलय हो गया उसका सत्वर, झट आया वैराग्य उमड़कर ।
बेटों को झट पास बुलाया, राज पाट सब में बंटवाया ।। 

छोड सभी झंझट संसारी, वन जाने की करी तैयारी ।
राव (राजा) हजारों साथ सिधाए, राजपाट तज वन को धाये ।। 

लेकिन जब तुमने तप किना, सबने अपना रस्ता लीना ।
वेष दिगम्बर तजकर सबने, छाल आदि के कपड़े पहने ।। 

भूख प्यास से जब घबराये, फल आदिक खा भूख मिटाये ।
तीन सौ त्रेसठ धर्म फैलाये, जो अब दुनियां में दिखलाये ।। 

छैः महीने तक ध्यान लगाये, फिर भोजन करने को धाये ।
भोजन विधि जाने नहिं कोय, कैसे प्रभु का भोजन होय ।। 

इसी तरह बस चलते चलते, छः महीने भोजन बिन बीते ।
नगर हस्तिनापुर में आये, राजा सोम श्रेयांस बताए ।। 

याद तभी पिछला भव आया, तुमको फौरन ही पड़धाया ।
रस गन्ने का तुमने पाया, दुनिया को उपदेश सुनाया ।। 

तप कर केवल ज्ञान पाया, मोक्ष गए सब जग हर्षाया ।
अतिशय युक्त तुम्हारा मन्दिर, चांदखेड़ी भंवरे के अन्दर ।। 

उसका यह अतिशय बतलाया, कष्ट क्लेश का होय सफाया ।
मानतुंग पर दया दिखाई, जंजीरें सब काट गिराई ।। 

राजसभा में मान बढ़ाया, जैन धर्म जग में फैलाया ।
मुझ पर भी महिमा दिखलाओ, कष्ट भक्त का दूर भगाओ ।। 

सोरठाः
नित चालीस ही बार, पाठ करे चालीस दिन ।
खेवे धूप अपार, चांदखेड़ी में आय के।।
होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो।
जिनके नहीं सन्तान, नाम वंश जग में चले।।