विश्व के सभी प्रमुख धर्मों मे धर्म के दस लक्षणो की बात कही गई है। जैन धर्म व अन्य धर्मों मे अन्तर मूल रूप से 2 शब्दों पर आधारित है - उत्तम व सम्यक। उत्तम का अर्थ है दोषरहित। हमारे परिणाम उत्तम होने चाहिए अर्थात कषायो के दोष से रहित होने चाहिए। कषाय सहित क्षमा करना उत्तम क्षमा नही। क्षमा मे महान क्षमता होती है। विश्व के सभी महापुरुषो मे क्षमा का गुण विद्यमान था, जिसके कारण वे महानता को प्राप्त हुए। हमने अचेतन के कारण चेतन से बैर बाँधा हुआ है। कषायो के कारण किसी का भला नही हुआ। कषाएँ हमारी दुर्गति का बीज बोती है। यदि हम अपनी चेतना को कषायो के आवरण से मुक्त कर दें, तो यह संसार हमारे लिये स्वर्ग समान हो जाएगा। जिसके पास उत्तम क्षमा का गुण है, उसके पास तीनो लोको की सम्पदा है।
।। उत्तम क्षमा धर्म की जय ।।
प्रज्ञा श्रमण बालयोगी गुरूवर अमित सागरजी महाराज को शत शत नमन ।