पूजा में ,अष्ट द्रव्यों को अर्पित करने का यही क्रम अनिवार्य क्यों है ?*

जल,चंदन,अक्षत,पुष्प,नैवेद्य,दीप,धुप,अष्ट द्रव्यों के अर्पित करने का यही क्रम आवश्यक है l

क्योकि ये पूजाये भगवान् के पञ्च कल्याणकों को क्रम को बताती हैं l
पूजा के प्रारम्भ में हम भगवान् कहते है;आइये आइये,विराजिये,विराजिये,ये गर्भ कल्याणक का प्रतीक है l

भगवान् आये और माताजी के गर्भ में विराजमान हुये !बालक तीर्थंकर का जन्म होते ही इंद्र मेरुपर्वत पर ले जाकर पहले जल से फिर चन्दन से अभिषेक करते है l
उसके बाद इंद्राणियों पहले उनके शरीर को मोतियों (अक्षत) और पुष्पों से सजाती है l
जो कि भगवान् के जन्मकल्याणक की प्रतीका त्मक क्रियाये है l

तपकल्याणक में भगवान् आहार के लिए उठते है तब हम नैवेद्य अर्पित करते है l
नैवेद्य तपकल्याणक का प्रतीक है l

ज्ञानकल्याणक में मोहनीयकर्म का नाश होकर ,केवलज्ञान हो जाता है,इसके प्रतीक स्वरुप हम मोहान्धकार के क्षय के प्रतीक रूप दीप अर्पित करते है l
अष्टकर्मों के नष्ट होने के प्रतीक स्वरुप धुप अर्पित करते है l

अमूल्य सिद्ध पद की प्राप्ति के प्रतीक स्वरुप फल और अर्घ्य अर्पित करते है l

ये अष्ट द्रव्य पूजन में इसी क्रम से अर्पित करने आवश्यक है l
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