अहो ज्ञान की महिमा

एक बार अँधेरा भगवान की अदालत में शिकायत लेकर पंहुचा और बोला : "भगवान! यह उजाला मुझे चैन से जीने नहीं देता, स्वयं आकर मेरे साम्राज्य पैर अधिकार जमा लेता है, आज आप से इसका फैसला करने आया हूँ "।

भगवान ने अँधेरे की अर्जी सुनी और उजाले को दरबार में हाजिर होने का आदेश दिया. उजाला दरबार में हाजिर हो भगवान् की बात सुनने के बाद बोला : " भगवान मैं ने आज तक अँधेरे की शक्ल भी नहीं देखि तोह भला मैं उसे दुःख कैसे दे सकता हूँ ।"

जब तक प्रकाश नहीं आता अंधकार तभी तक अपना प्रभुत्व जताता है, प्रकाश के आते ही वह दम दबाकर भाग खड़ा होता है।

अहो ज्ञान की महिमा !!! ज्ञान के होते ही अज्ञान अपने आप नष्ट हो जाता है । सम्म्कत्व के आने के पैर मिथ्यात्व का पता नहीं चलता, की वह किस दरवाजे से आएगा. ज्ञान चेतना के जगते ही कर्मो की फ़ौज, कर्म चेतना पल में नाश को प्राप्त होती है। ज्ञान व अज्ञान में, प्रकाश व अंधकार में ज्ञान चेतना व कर्म चेतना में परस्पर अत्यंत पृयकत्व है।

ज्ञान मात्र इस शब्द में, है अनंत गुण व्याप्त ।

ज्ञायक भी कहने दूसे, प्रकट पुकारा आप्त ।