पर्यूषण पर्व के विषय मे गुरुदेव अमित सागर जी महाराज द्वारा दिये गए प्रवचन के कुछ अंश:-

पर्यूषण = परि + ऊषण। 'परि' का अर्थ है चारों ओर से, तथा 'ऊषण' का अर्थ है मिलाना। पर्यूषण पर्व हमे चारो ओर बिखरे अपने परिणामो को एकाग्र करने का अवसर देता है। आचार्यो ने भाद्रपक्ष को महीनो का राजा कहा है, क्योकि इसमे पर्वों और व्रतो का खजाना है। पर्व और व्रत हमे आत्म-कल्याण का अवसर देते है। 'भाद्र' शब्द 'भद्र' से बना है। अतः 'भाद्र' से तात्पर्य है परिणामो मे भद्रता या विशुद्धि उत्पन्न करने वाला। पर्व का अर्थ गाँठ भी होता है। गन्ने मे जितनी गाँठे होती है, उसका मूल्य उतना अधिक होता है। इसी प्रकार पर्व हमे अपनी आत्मा का मूल्य बढाने का अवसर देते है। जैसे खराब हो चुके गन्ने को भी यदि भूमि मे बो दे दिया जाए तो वह उत्तम गन्ने के रूप मे प्रतिफलित हो जाता है, उसी प्रकार हमे विषयो से ग्रस्त अपने शरीर को धर्म-ध्यान की भूमि मे बो देना चाहिए। पर्यूषण पर्व हमे इसका उत्तम अवसर प्रदान करता है।