दशलक्षण महापर्व ये पर्व संयम से जीना सिखाता है,आत्मा को जानना,अनुभव करना सिखाता है।*

*तो आओ हम सब अपनी शक्ति और परिणामों को देखते हुए ये दस दिन संयमित जीवन जीने का प्रयास करें।*
१.रात्रि भोजन का त्याग।
२. रात्रि अन्न जल आदि सबका त्याग।
३. बाजार की मिठाई,नमकीन,बिस्किट आदि सबका त्याग।
४. दिन में कम से कम दो घंटे का स्वाध्याय।
५. प्रतिदिन मंदिर जी जाकर जिनदर्शन,भक्ति,पूजा करना।
६. सिनेमा,टेलीविजन नहीं देखना।
७. हरी सब्जियों का त्याग।
८. चार महादान(शास्त्र दान,अभय दान आदि) में से कोई भी एक दान रोजाना या जितना हो सके करना।
९. पाँचों पापों का यथाशक्ति त्याग करना।
१०. जितना हो सके जिनधर्म की प्रभावना करना।
११. कषाय रहित परिणाम रखना।
१२. एकाशन या पूर्ण व्रत या जितना हो सके।
१३. इन्द्रियों को अपने Control में रखने का हरसंभव प्रयास।
१४. हमेशा धर्म के कार्यों में संलग्न रहना।
१५. व्यापारादि कम से कम करना,यदि हो सके तो ना करना।
१६. कन्दमूल आदि वस्तुओं का त्याग
१७. रोजाना एक धण्टे का मौनव्रत
१८. हर दिन एक धण्टे मोबाइल का त्याग(जाग्रत अवस्था में अर्थात जागते हुए ही,सोने के बाद नहीं)
१९. चमड़े इत्यादि की वस्तुओं का त्याग
२०. भोजन में झूठा ना छोड़े
२१. सभी प्रकार के अचारों का त्याग
२२. वाहनों का सीमित उपयोग
२३. हरी वनस्पति पर चलने का त्याग
२४. जितना हो सके धर्ममय प्रवृति रखना।
२५. पाँच अणुव्रतों का यथाशक्ति पालन करना।
२६.तीन गुणव्रत व चार शिक्षाव्रत का यथाशक्ति पालन करना।
२७. गमन करने की व परिग्रह की यथाशक्ति सीमा बाँध लेना
२८. पुण्य को हेय रूप जानते हुए आत्म सम्मुख होने की ओर प्रयास करते हुए प्रत्येक धर्म को अंगीकार करने का प्रयास करना।
२९. ये दस धर्म नहीं बल्कि धर्म के दस लक्षण है।इसीलिए वस्तु के स्वभाव धर्म को जानकर ज्ञाता दृष्टा रहने का पुरुषार्थ करना।
३०. अपना ज्ञाता दृष्टा स्वरूप समझकर कर्तत्व बुद्धि को छोड़कर धर्म के दस लक्षणों को ध्याना।
किसी भी नियम की मर्यादा को यथाशक्ति कम या ज्यादा किया जा सकता है।
इन सभी नियमों का यथाशक्ति पालन करते हुए संयमित जीवन जीने का प्रयास करना।
*स्वाध्याय करते हुए हम सबको शीघ्र ही तत्वज्ञान हो तथा हम भेदज्ञान करके इस भवसमुद्र को पार करें।*