अंतराय कर्म

जिस कर्म के उदय से किसी भी सही या अच्छे काम को करने में बाधा/दिक्कत उत्त्पन्न होती है, उसे अंतराय कर्म कहते हैं ।

उदाहरण :- जैसे दो भाई हैं, एक ने सोचा कि मंदिरजी में चटाइयां रखके आयेंगे, किन्तु दूसरे ने मना कर दिया ... एक बच्चा रोटी खा रहा है, और बन्दर रोटी छीन कर ले गया इत्यादि अंतराय कर्म के उदाहरण समझे जा सकते हैं ... बंध के कारण :- किसी को लाभ नहीं होने देना, नौकर-चाकर को धर्म सेवन नहीं करने देना, दान देने वाले को रोकना, दुसरो को दी जाने वाली वस्तु में विघ्न पैदा करना इत्यादि अंतराय कर्म के बंध के कारण बतलाये हैं । इसी कर्म के उदय में आने के कारण भगवान आदिनाथ को छह महीने तक आहार नहीं मिला था !!!

प्रकृतियाँ:-
गोत्र कर्म की 5 प्रकृतियाँ होती हैं
श्रेणी :- घातिया कर्म -प्रभाव :- दान आदि में बाधा होना -इसके नाश होने पर उत्त्पन्न
गुण :- अनन्तवीर्य गुण -
उत्कृष्ठ(ज्यादा से ज्यादा)
स्थिति :- 3० कोड़ा-कोड़ी सागर
जघन्य(कम से कम)
स्थिति :- अन्तर्मुहुर्त

यह अंतराय कर्म घातिया कर्म" है अघातिया नहीं और इस प्रकार हमने आठ कर्मों को जाना ...
अन्तराय कर्म के विषय में
अन्तराय का शाब्दिक अर्थ है बाधा । आत्मा का गुण है - अनंत बल , अनंत शक्ति लेकिन अन्तराय कर्म के कारण वह गुण प्रकट नही हो पाता ।
अन्तराय कर्म को कोषाध्यक्ष ( भंडारी ) की उपमा दी है । जैसे राजा ने दान देने की आज्ञा दी किन्तु भंडारी के प्रतिकूल ( ANTI ) होने के कारण मांगने वाले याचक को ख़ाली लौटना पड़ता है । राजा की इच्छा होते हुए भी याचक को दान नही मिल पाता । वैसे ही जीव दान देने की इत्यादि इच्छा करता है लेकिन अन्तराय कर्म के कारन दे नही पाता