प्राण

याने जीवनी शक्ति ... जिसके द्वारा प्रत्येक जीव जीता है, उसे प्राण कहते हैं !!!
- प्राणों के संयोग-वियोग से ही जीव का जन्म-मरण होता है !
प्राण का महत्व इसी बात से पता चलता है कि जीव को "प्राणी" भी कहते हैं !!!
द्रव्य संग्रह में आचार्य श्री नेमीचंद सिद्धान्तिदेव जी ने पहले अधिकार की तीसरी गाथा में जीव का लक्षण कुछ इस तरह से बताया है कि :-
"तिक्काले चदुपाणा इन्दियबलमाउ आणपाणो य !
ववहारा सो जीवो, णिच्चयणयदो दु चेदणा जस्स !!3!! "
यानि कि
"व्यवहारनय से तो जिसके तीनो कालों में चार प्राण हैं वो जीव है, और
निश्चयनय से जिसमे चेतना है वो जीव है !
प्राण चार होते हैं, जिसके उत्तरोत्तर भेद करने से दस हो जाते हैं !
लिखा है, "चदुपाणा इन्दियबलमाउ आणपाणो य"
चदुपाणा = चार प्राण
इन्दियबलमाउ = इन्द्रियां, बल. आयु
य = और
आणपाणो = स्वासोच्छवास (सांस लेना/छोड़ना)
अब इन्द्रियां 5 होती हैं , बल 3 तो इस प्रकार से
कुल मिला कर 10 प्रकार के प्राण हुए जो इस जीव को चेतना शक्ति देते हैं, व्यवहारनय से !!!
और निश्चयनय से तो आत्मा के ज्ञान-दर्शन रूपी उपयोग ही उसके प्राण हैं !!!
व्यवहारनय से कुल मिला कर 10 प्रकार के प्राण होते हैं जो इस जीव को चेतना शक्ति देते हैं!!
१ - स्पर्शन इन्द्रिय प्राण
२ - रसना इन्द्रिय प्राण
३ - घ्राण इन्द्रिय प्राण
४ - चक्षु इन्द्रिय प्राण
५ - कर्ण इन्द्रिय प्राण
६ - मन बल /मनोबल प्राण
७ - वचन बल प्राण
८ - काय बल प्राण
९ - स्वासोच्छवास प्राण, और
१० - आयु प्राण
एक इन्द्रिय जीवों में = चार प्राण (१,८,९,१०)
दो इन्द्रिय जीवों में = छह प्राण (१,२,७,८,९,१०)
तीन इन्द्रिय जीवों में = सात प्राण (१,२,३,७,८,९,१०)
चार इन्द्रिय जीवों में = आठ प्राण (१,२,३,४,७,८,९,१०)
पञ्च इन्द्रिय जीवों में :-
(क) असंज्ञी जीवों में नौ प्राण = ६ याने मनोबल प्राण को छोड़ कर सारे
(ख) संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में = सारे दस प्राण होते हैं !
हमारे दस प्राण हैं
अरिहंत भगवान् के चार प्राण = ७,८,९,१० होते हैं
और सिद्ध भगवान् के इनमे से कोई सा द्रव्य प्राण नहीं होता !