7 तत्व ...

तत्व :- वस्तु के स्वाभाव को तत्व कहते हैं !
तत्वों के यथार्थ श्रद्धान को ही सम्यक्दर्शन कहा है ! तत्वों को समझना और जैसा स्वरुप है वैसे ही मानना सम्यक्दर्शन है !
तत्व 7 होते हैं :-
1 - जीव
2 - अजीव
3 - आस्रव
4 - बंध
5 - संवर
6 - निर्जरा और
7 - मोक्ष


1- जीव - याने लिविंग थिंग्स, जो प्राणों से युक्त है ! इस संसार में आत्मा जीव है ! बाकी सब अजीव .आत्मा का उपयोग है देखना और जानना ! 

2- अजीव - जीव (आत्मा) के अलावा जो भी पदार्थ हम देखते हैं वो अजीव है ! जैसे अपना शरीर, कंप्यूटर, फ़ोन इत्यादि सब कुछ अजीव तत्व हैं ! अजीव को "पुदगल" भी कहते हैं !

3- आस्रव - आस्रव माने कर्मों का आना , कर्म ही हैं जिनके कारण हम संसार मे भटक रहे हैं , कर्म 8 होते हैं , (कर्म वाला लेख पढ़ें) !आस्रव हर समय होता रहता है, जिस वक़्त 1 सेकेंड/समय के लिए भी आस्रव रुक गया हम भगवान बन जायेंगे !!!

4- बंध - जब कर्म आके आत्मा के साथ जुड़ जाते हैं उसे बंध कहते हैं, ये कर्म जब तक अपना फल नही देते तब तक आत्मा क प्रदेशों क साथ बँधे रहते हैं ! 

5- संवर - संवर कर्मों को आने से रोकने को कहते हैं. मतलब की जो कर्म पहले से हैं उनके अलावा नये कर्मों को आने से रोकना.

6- निर्ज़रा- आत्मा मे जो कर्म आके बंध गये हैं, उन्हे हटाना ही निर्ज़रा है. ये 2 प्रकार की होती है :- १ - सविपाक निर्जरा और २ - अविपाक निर्जरा ! तप करना, नियम लेना, व्रत उपवास, विनय, प्रायश्चित, उनोदर, रस-परित्याग से निर्ज़रा होती है.

7- मोक्ष - निर्ज़रा के द्वारा जब यह जीव 8 कर्मों का नाश कर लेता है तो उसकी आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर लेती है और इस संसार के जन्म-मरण से मुक्त हो तीन लोक के अग्र/ऊपरी भाग सिद्ध-शिला पर जाके विराजमान हो जाती है. 

7 तत्वो को समझने का उदाहरण :-
मानलो की हम एक बोट(नाव) मे बैठे हुए हैं, नाव हो गयी आजीव तत्व , ओर वो नाव है हमारा शरीर(बॉडी)
हम जो उस नाव मे हैं वो हो गयी हमारी आत्मा, याने जीव तत्व. अब नाव चल रही है उसमे 1 छेद हो गया, तो उसमे से पानी अंदर आने लगा.. पानी हुआ कर्म , अब पानी नाव क अंदर आ रहा है याने आस्रव तत्व.
जो पानी(कर्म) नाव मे जमा(आत्मा) हो गया वो हुआ बंध तत्व. उस पानी को रोकने के लिए हमने उस छेद मे कुछ रोक लगादी, तो अब हुआ ये कि नया पानी अंदर नही आ रहा नाव के, याने नये कर्म नहीं आ रहे आत्मा मे, ये हुआ संवार तत्व. अब बाहर से तो पानी(कर्म) रुक गया लेकिन अंदर वाले पानी(कर्मों) को नाव मे से मेहनत(तप,त्याग,इत्यादि जो ऊपर बताये करके) निकालना हुई निर्ज़रा तत्व. और जब सारा पानी(कर्म) निकल गया तो नाव नदी(संसार) से पार कर लेगी सिद्ध-शिला पर जाकर विराजमान हो जायेगी ये हुआ मोक्ष तत्व.