जैन मुनि की तपचर्या

1.जैन मुनि कभी वाहन का उपयोग नही करते ,पैदल ही विहार करते हे
2.पुरे दिन में सिर्फ एक ही बार जलपान ग्रहण करते हे वो भी सिर्फ अपने हाथो की अंजुलियों को पात्र बना बिना किसी चम्मच व थाली के खड़े खड़े ही ग्रहण करते हे ,एक बार जलपान ग्रहण कर लेने के बाद पुरे दिन व रात अन्न जल सबका त्याग रखते हे
3.एक रु की सम्पत्ति अपने पास नही रखते इनका कोई घर मकान नही रहता ये पुरे देश में अलग अलग जगहों पर घूमते रहते हे वहा के मन्दिर भवन में ही विश्राम करते हे
जैन मुनि वर्षाकाल के चार माह छोड़कर किसी भी नगर में ज्यादा दिनों तक नही ठहरते
ये हमेशा पैदल ही चलकर अलग अलग नगरो में अहिंसा व शान्ति की प्रभावना करते रहते हे
4.अपने सर,दाढ़ी व मुछ के बाल भी बिना किसी औजार के अपने हाथो से एक एक उखाड़ते हे जिसे केशलोंच कहते हे |
ये केशलोचन एक जैन मुनि तीन-चार माह में एक बार करते हे
5.ये निर्वस्त्र रहते हे क्योकि इनके मन में कोई विकार नही रहता सभी विषय वासना से ये सर्वदा दूर रहते हे
6.जैन मुनि चप्पलो का भी त्याग रखते हे
7.ये सर्दी गर्मी और वर्षा सभी ऋतुओ में ऐसे ही तप को धारण रखते हे
8.जैन मुनि कठोर तपस्वी और महाज्ञानी होते हे तप करना ,ज्ञानार्जन करना व निवेदन पर उपदेश देना यही इनका मुख्य कार्य होता हे इनका तप त्याग एक अजूबा हे
9.जैन मुनि दया के भण्डार होते हे
ये तो इनकी चर्या के सिर्फ बाहरी महान रूप हे जबकि ऐसे कई अनेक तप त्याग को धारण करते हे